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1. मङ्गलम् (शुभ या कल्‍याणकारी)

1. मङ्गलम् (शुभ या कल्‍याणकारी)

पाठ परिचय- इस पाठ में पाँच मन्त्र क्रमशः ईशावास्य, कठ, मुण्डक तथा श्वेताश्वतर नामक उपनिषदों से संकलित है। ये मंगलाचरण के रूप में पठनीय है। वैदिकसाहित्य में शुद्ध आध्यात्मिक ग्रन्थों के रूप में उपनिषदों का महत्व है। इन्हें पढ़ने से परम सत्य (मुख्य शक्ति अर्थात् ईश्वर) के प्रति आदरपूर्ण आस्था या विश्वास उत्पन्न होती है, सत्य के खोज की ओर मन का झुकाव होता है तथा आध्यात्मिक खोज की उत्सुकता होती है। उपनिषदग्रन्थ विभिन्न वेदों से सम्बद्ध हैं ।

उपनिषद् का अर्थ- गुरू के समीप बैठना

 

(उपनिषदः वैदिकवाङ्मयस्य अन्तिमे भागे दर्शनशास्त्रस्य परमात्मनः महिमा प्रधानतया गीयते। तेन परमात्मना जगत् व्याप्तमनुशासितं चास्ति। स एव सर्वेषां तपसां परमं लक्ष्यम्। अस्मिन् पाठे परमात्मपरा उपनिषदां पद्यात्मकाः पंच मंत्राः संकलिताः सन्ति।)

अर्थ- उपनिषद वैदिक साहित्य के अंतिम भाग में दार्शनिक सिद्धांत को प्रकट करते हैं। सब जगह श्रेष्ठ पुरूष परमात्मा की महिमा का प्रधान रूप से गायन हुआ है। उसी परमात्मा से सारा संसार परिपूर्ण और अनुशासित है। सबों की तपस्या का लक्ष्य उसी को प्राप्त करना है। इस पाठ में उस परमात्मा की प्राप्ति हेतु उपनिषद के पाँच मंत्र श्लोक के रूप में संकलित हैं।

 

 

हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् ।

तत्वम् पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ।।

 

अर्थ- हे प्रभु ! सत्य का मुख सोने जैसा आवरण से ढ़का हुआ है, सत्य धर्म की प्राप्ति के लिए उस आवरण को हटा दें ।।

 

व्याख्या- प्रस्तुत श्लोक ‘ईशावास्य उपनिषद्‘ से संकलित तथा मङ्गलम पाठ से उद्धृत है। इसमें सत्य के विषय में कहा गया है कि सांसारिक मोह-माया के कारण विद्वान भी उस सत्य की प्राप्ति नहीं कर पाते हैं, क्योंकि सांसारिक चकाचैंध में वह सत्य इस प्रकार ढ़क जाता है कि मनुष्य जीवन भर अनावश्यक भटकता रहता है। इसलिए ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि हे प्रभु ! उस माया से मन को हटा दो ताकि परमपिता परमेश्वर को प्राप्त कर सके।

 

 

अणोरणीयान् महतो महीयान्

आत्मास्य जन्तोर्निहितो गुहायाम् ।

तमक्रतुरू पश्यति वीतशोको

धातुप्रसादान्महिमानमात्मानः ।।

अर्थ- मनुष्य के हृदयरूपी गुफा में अणु से भी छोटा और महान से महान आत्मा विद्यमान है। विद्वान शोक रहित होकर उस श्रेष्ठ परमात्मा को देखता है ।

 

व्याख्या- प्रस्तुत श्लोक ‘कठ‘ उपनिषद् से संकलित तथा ‘मङ्गलम‘ पाठ से उद्धृत है। इसमें आत्मा के स्वरूप तथा निवास के विषय में बताया गया है।

विद्वानों का कहना है कि आत्मा मनुष्य के हृदय में सूक्ष्म से भी सूक्ष्म तथा महान से भी महान रूप में विद्यमान है। जब जीव सांसारिक मोह-माया का त्यागकर हृदय में स्थित आत्मा से साक्षात्कार करता है तब उसकी आत्मा महान परमात्मा में मिल जाती है और जीव सारे सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है। इसलिए भक्त प्रार्थना करता है कि हे प्रभु ! हमें उस अलौकिक (पवित्र) प्रकाश से आलोकित करो कि हम शोकरहित होकर अपने-आप को उस महान परमात्मा में एकाकार कर सकें।

 

सत्यमेव जयते नानृतं

सत्येन पन्था विततो देवयानः ।

येनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा

यत्र तत् सत्यस्य परं निधानम् ।।

अर्थ- सत्य की ही जीत होती है, झुठ की नहीं। सत्य से ही देवलोक का रास्ता प्राप्त होता है। ऋषिलोग देवलोक को प्राप्त करने के लिए उस सत्य को प्राप्त करते हैं । जहाँ सत्य का भण्डार है ।

 

व्याख्या- प्रस्तुत श्लोक ‘मुण्डक‘ उपनिषद् से संकलित तथा ‘मङ्गलम्‘ पाठ से उद्धृत है। इसमें सत्य के महत्व पर प्रकाश डाला गया है।

ऋषियों का संदेश है कि संसार में सत्य की ही जीत होती है, असत्य या झूठ की नहीं। तात्पर्य यह कि ईश्वर की प्राप्ति सत्य की आराधना से होती है, न कि सांसारिक विषय-वासनाओं में डूबे रहने से होती है। संसार माया है तथा ईश्वर सत्य है। अतः जीव जब तक उस सत्य मार्ग का अनुसरण नहीं करता है तब तक वह सांसारिक मोह-माया में जकड़ा रहता है। इसलिए उस सत्य की प्राप्ति के लिए जीव को सांसारिक मोह-माया से दूर रहनेवाला भाव से कर्म करना चाहिए, क्योंकि सिर्फ ईश्वर ही सत्य है, इसके अतिरिक्त सबकुछ असत्य है।

 

 

यथा नद्यः स्यन्दमानाः समुद्रे-

ऽस्तं गच्छन्ति नामरूपे विहाय।

तथा विद्वान नामरूपाद् विमुक्तः

परात्परं पुरुषमुपैति दिव्यम्।।

 

अर्थ- जिस प्रकार नदियाँ बहती हुई अपने नाम और रूप को त्यागकर समुद्र में मिल जाती है, उसी प्रकार विद्वान अपने नाम और रूप को त्यागकर परमपिता परमेश्वर की प्राप्ति करते हैं।

 

व्याख्या- प्रस्तुत श्लोक ‘मुण्डक‘ उपनिषद् से संकलित तथा ‘मङ्गलम‘ पाठ से उद्धृत है। इसमें जीव और आत्मा के बीच संबंध का विवेचन किया गया है।

ऋषियों का कहना है कि जिस प्रकार बहती हुई नदियाँ समुद्र में मिल जाती है, उसी प्रकार विद्वान ईश्वर के अलौकिक (पवित्र) प्रकाश में मिलकर जीव योनि से मुक्त हो जाता है। जीव तभी तक माया जाल में लिपटा रहता है जब तक उसे आत्म-ज्ञान नहीं होता है। आत्म-ज्ञान होते ही जीव मुक्ति पा जाता है।

 

वेदाहमेतं पुरुषं महान्तम्

आदित्यवर्णं तमसः परस्तात्।

तमेव विदित्वाति मृत्युमेति

नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय।।

 

अर्थ- मुझे ही महान पुरूष (परमात्मा) जानो, जो प्रकाश स्वरूप में अंधकार के आगे है। उसी को जानकर मृत्यु को प्राप्त किया जाता है। इसके अलावा दूसरा कोई मार्ग नहीं है। अर्थात् आत्मज्ञान के बिना मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं है।

 

व्याख्या- प्रस्तुत श्लोक ‘श्वेताश्वतर‘ उपनिषद् से संकलित तथा ‘मङ्गलम‘ पाठ से उद्धृत है। इसमें परमपिता परमेश्वर के विषय में कहा गया है।

ऋषियों का मानना है कि ईश्वर ही प्रकाश का पुंज है। उन्हीं के भव्य दर्शन से सारा संसार आलोकित होता है। ज्ञानी लोग उस ईश्वर को जानकर सांसारिक विषय-वासनाओं से मुक्ति पाते हैं। इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है।

 

 

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Questions)

प्रश्‍न 1. ‘मङ्गलम्‘ पाठ में कितने मंत्र हैं ?

(क) एक

(ख) दो

(ग) चार

(घ) पाँच

उत्तर- (घ) पाँच

 

प्रश्‍न 2. सत्य का मुँह किस पात्र से ढ़का हुआ है ?

(क) असत्य से

(ख) हिरण्मय पात्र से

(ग) स्वार्थ से

(घ) अशांति से

उत्तर- (ख) हिरण्मय पात्र से

 

प्रश्‍न 3. ‘सत्यमेव जयते‘ किस उपनिषद् से लिया गया है ?

(क) ईशावास्योपनिषद्

(ख) मुण्डकोपनिषद्

(ग) कठोपनिषद्

(घ) वृहदारण्यकोपनिषद्

उत्तर- (ख) मुण्डकोपनिषद्

 

प्रश्‍न 4. ‘हिरण्मयेन पात्रेण…..दृष्टये‘ किस उपनिषद् से लिया गया है ?

(क) ईशावास्योपनिषद्

(ख) मुण्डकोपनिषद्

(ग) कठोपनिषद्

(घ) वृहदारण्यकोपनिषद्

उत्तर- (क) ईशावास्योपनिषद्

 

प्रश्‍न 5. ‘वेदा हमेतं पुरुषं महान्तम्…..विद्यतेऽयनाय‘ किस उपनिषद् से लिया गया है ?

(क) ईशावास्योपनिषद्

(ख) मुण्डकोपनिषद्

(ग) श्वेताश्वतरोपनिषद्

(घ) वृहदारण्यकोपनिषद्

उत्तर- (ग) श्वेताश्वतरोपनिषद् 

 

 

प्रश्‍न 6. ‘मंगलम्‘ पाठ कहाँ से संकलित है ?

(क) वेद से   

(ख) उपनिषद् से

(ग) पुराण से 

(घ) वेदांग से

उत्तर- (ख) उपनिषद् से

 

प्रश्‍न 7. ‘अणोरणीयान् महतो………महिमानमात्मनः‘ किस उपनिषद् से लिया गया है ?

(क) ईशावास्योपनिषद्

(ख) मुण्डकोपनिषद्

(ग) कठोपनिषद्

(घ) वृहदारण्यकोपनिषद्

उत्तर- (ग) कठोपनिषद्

 

प्रश्‍न 8. महान से महान क्या है?

(क) आत्मा

(ख) देवता

(ग) ऋषि

(घ) दानव

उत्तर- (क) आत्मा 

 

प्रश्‍न 9. किसकी विजय होती है ?

(क) सत्य की

(ख) असत्य की

(ग) धर्म की

(घ) सत्य और असत्य दोनों की

उत्तर- (क) सत्य की 

 

प्रश्‍न 10. नदियाँ नाम और रूप को छोड़कार किसमें मिलती है?

(क) समुद्र में

(ख) मानसरोवर में

(ग) तालाब में

(घ) झील में

उत्तर- (क) समुद्र में 

 

 

प्रश्‍न 11. किसकी विजय नहीं होती है ?

(क) सत्य की

(ख) असत्य की

(ग) धर्म की

(घ) सत्य और असत्य दोनों की

उत्तर- (ख) असत्य की

 

प्रश्‍न 12. यह संपूर्ण संसार किसके द्वारा अनुशासित है?

(क) आत्मा

(ख) परमात्मा

(ग) साहित्य

(घ) इनमें कोई नहीं

उत्तर- (ख) परमात्मा

 

Mangalam Path Sanskrit Class 10 Subjective Questions

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विषयनिष्‍ठ प्रश्‍न (Subjective Questions)

लघु-उत्तरीय प्रश्न (20-30 शब्दों में)___दो अंक स्तरीय

प्रश्‍न 1. ‘सत्य का मुँह‘ किस पात्र से ढंका है?           

उत्तर- सत्य का मुँह सोने जैसा पात्र से ढंका हुआ है।

 

प्रश्‍न 2. नदियाँ क्या छोड़कर समुद्र में मिलती हैं?

उत्तर- नदियाँ अपने नाम और रूप को छोड़कर समुद्र में मिलती हैं।

 

प्रश्‍न 3. मङ्गलम् पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें।

उत्तर- इस पाठ में पाँच मन्त्र ईशावास्य, कठ, मुण्डक तथा श्वेताश्वतर नामक उपनिषदों से संकलित है। वैदिकसाहित्य में शुद्ध आध्यात्मिक ग्रन्थों के रूप में उपनिषदों का महत्व है। इन्हें पढ़ने से परमात्‍मा (मुख्य शक्ति अर्थात् ईश्वर) के प्रति आदरपूर्ण आस्था या विश्वास उत्पन्न होती है, सत्य के खोज की ओर मन का झुकाव होता है तथा आध्यात्मिक खोज की उत्सुकता होती है। उपनिषदग्रन्थ विभिन्न वेदों से सम्बद्ध हैं।

 

प्रश्‍न 4. मङ्गलम् पाठ के आधार पर सत्य की महत्ता पर प्रकाश डालें।

उत्तर- सत्य की महत्ता का वर्णन करते हुए महर्षि वेदव्यास कहते हैं कि हमेशा सत्य की ही जीत होती है। झुठ की जीत कभी नहीं होती है । सत्य से ही देवलोक का रास्ता निकलता है । ऋषिलोग देवलोक को प्राप्त करने के लिए उस सत्य को प्राप्त करते हैं । जहाँ सत्य का भण्डार है ।

 

प्रश्‍न 5. मङ्गलम् पाठ के आधार पर आत्मा की विशेषताएँ बतलाएँ।

उत्तर- मङ्गलम् पाठ में संकलित कठोपनिषद् से लिए गए मंत्र में महर्षि वेदव्यास कहते हैं कि प्राणियों की आत्मा हृदयरूपी गुफा में बंद है। यह सूक्ष्म से सूक्ष्म और महान-से-महान है । इस आत्मा को वश में नहीं किया जा सकता है। विद्वान लोग शोक-रहित होकर परमात्मा अर्थात् ईश्वर का दर्शन करते हैं।

 

प्रश्‍न 6. आत्मा का स्वरूप क्या है ? पठित पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।

उत्तर- कठोपनिषद में आत्मा के स्वरूप का बड़ा ही अच्छा तरीका से विश्लेषण किया गया है । आत्मा मनुष्य की हृदय रूपी गुफा में अवस्थित है। यह अणु से भी सूक्ष्म है। यह महान् से भी महान् है। इसका रहस्य समझने वाला सत्य की खोज करता है। वह शोकरहित उस परम सत्य को प्राप्त करता है।

 

प्रश्‍न 7. महान लोग संसाररूपी सागर को कैसे पार करते हैं ?

उत्तर- श्वेताश्वतर उपनिषद् में ज्ञानी लोग और अज्ञानी लोग में अंतर स्पष्ट करते हुए महर्षि वेदव्यास कहते हैं कि ईश्वर ही प्रकाश का पुंज (समुह) है। उन्हीं के भव्य दर्शन से सारा संसार आलोकित होता है। ज्ञानी लोग उस ईश्वर को जानकर सांसारिक विषय-वासनाओं (मोह-माया) से मुक्ति पाते हैं। इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है।

 

प्रश्‍न 8. विद्वान पुरुष ब्रह्म को किस प्रकार प्राप्त करता है?

उत्तर- मुण्डकोपनिषद् में महर्षि वेद-व्यास का कहना है कि जिस प्रकार बहती हुई नदियाँ अपने नाम और रूप अर्थात् व्यक्तित्व को त्यागकर समुद्र में मिल जाती हैं उसी प्रकार महान पुरुष अपने नाम और रूप, अर्थात् अपने व्यक्तित्व को त्यागकर ब्रह्म (ईश्‍वर) को प्राप्त कर लेता है।

 

प्रश्‍न 9. उपनिषद् को आध्यात्मिक ग्रंथ क्यों कहा गया है?

उत्तर- उपनिषद् एक आध्यात्मिक ग्रंथ है, क्योंकि यह आत्मा और परमात्मा के संबंध के बारे में विस्तृत व्याख्या करता है। परमात्मा संपूर्ण संसार में शांति स्थापित करते हैं। सभी तपस्वियों का परम लक्ष्य परमात्मा को प्राप्त करना ही है

 

प्रश्‍न 10. उपनिषद् का क्या स्वरूप है? पठित पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।

उत्तर- उपनिषद् वैदिक वाङ्मय (वैदिक साहित्‍य) का अभिन्न अंग है। इसमें दर्शनशास्त्र के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। सभी जगह परमपुरुष परमात्मा का गुणगान किया गया है। परमात्मा के द्वारा ही यह संसार व्याप्त और अनुशासित है। सबों की तपस्या का लक्ष्य उसी को प्राप्त करना है।

 

प्रश्न 11. नदी और विद्वान में क्या समानता है ? (2020A)

उत्तर- जिस प्रकार बहती हुई नदियाँ अपने नाम और रूप को त्यागकर समुद्र में विलीन हो जाती है, उसी प्रकार विद्वान भी अपने नाम और रूप के प्रवाह किए बिना ईश्वर की प्राप्ति करते हैं।

 

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2. पाटलिपुत्रवैभवम् ( पाटलिपुत्र का वैभव )

2. पाटलिपुत्रवैभवम् ( पाटलिपुत्र का वैभव )

पाठ परिचय- इसमें बिहार की राजधानी पटना के प्राचीन महत्व का निरूपण करने के साथ ऐतिहासिक परम्परा से आधुनिक राजधानी के प्रसिद्ध स्थलों का भी निरूपण किया गया है।

 

बिहारराज्यस्य राजधानीनगरं पाटलिपुत्रं सर्वेषु कालेषु महत्वमधारयत्। अस्येतिहासः सार्धसहस्रद्वयवर्षपरिमितः वर्तते। अत्र धार्मिकक्षेत्रं राजनीतिक्षेत्रम् उद्योगक्षेत्रं च विशेषेण ध्यानाकर्षकम्।

बिहार राज्य की राजधानी पटना शहर सभी समयों में महत्वशाली रहा है । इसका इतिहास 2500 वर्षों का है । यहाँ धार्मिक स्थान, राजनितिक स्थान और औद्योगिक स्थान विशेष रूप से आकर्षक है।

 

 

वैदेशिकाः यात्रिणः मेगास्थनीज-फाह्यान-हुयेनसांग-इत्सिंगप्रभृतयः पाटलीपुत्रस्य वर्णनं स्व-स्व संस्मरणग्रन्थेषु चक्रुः। पाठेऽस्मिन् पाटलिपुत्रवैभवस्य सामान्यः परिचयो वर्तते।

विदेशी यात्री मेगास्थनीज, फाह्यान, ह्वेनसांग तथा इत्सिंग आदि ने पटना का वर्णन अपने-अपने ग्रंथों में किया है ।

 

#Class10 sanskrit patliputra vaibhavam

 

प्राचिनेषु भारतियेषु नगरेष्वन्यतमं पाटलिपुत्रमनुगङ्गं वसद्विचित्रं महानगरं बभूव । तद्विषये दामोदरगुप्तो नाम कविः कुट्टनीमताख्ये काव्य कथयति-

प्राचीन भारतीय नगरों में अग्रणी पटना गंगा किनारे बसा विचित्र महानगर है । इसके विषय में दामोदर गुप्त नामक कवि ने कुट्टनीमताख्य काव्य में कहा है कि-

अस्ति महीतलतिलकं सरस्वतीकुलगृहं महानगरम् ।नाम्ना पाटलिपुत्रं परिभूतपुरन्दरस्थानम् ।।

 

 

पृथ्वी पर पाटलिपुत्र नामक नगर शिक्षा और वैभव की दृष्टि से अतिगौरवशाली इन्द्रलोक के समान है ।

 

 

इतिहासे श्रुयते यत् गंगायास्तीरे बुध्दकाले पाटलिग्रामः स्थितः आसीत् । यत्र च भगवान बुध्दः बहुकृत्वः समागतः । तेन कथितमासीत् यद् ग्रामोऽयं महानगरं भविष्यति किन्तु कलहस्य अग्निदाहस्य जलपूरस्य च भयात् सर्वदाक्रान्तं भविष्यति ।

इतिहास में सुना जाता है कि भगवान बुध्द के समय गंगा नदी के तट पर पाटलि नामक ग्राम अवस्थित था और भगवान बुद्ध कई बार आए थे । उनके द्वारा कहा गया था कि यह गाँव महानगर होगा । लेकिन लडाई-झगड़ा, अगलगी और बाढ़ के भय से हमेशा घिरा होगा ।

 

कालान्तरेण पाटलिग्रामः एव पाटलिपुत्रमिति कथितः । चन्द्रगुप्तमौर्यस्य काले अस्य नगरस्य शोभा रक्षाव्यवस्था च अत्युत्कृष्टासीदिति। यूनानराजदूतः मेगास्थनीजः स्वसंस्मरणेषु निरूपयति । अस्य नगरस्य वैभवं प्रियदर्शिनः अशोकस्य समये सुतरां समृध्दम् ।

बाद में यही पाटलि ग्राम पाटलिपुत्र नगर के रूप में प्रसिद्ध हुआ । चन्द्रगुप्तमौर्य के समय इस नगर की शोभा तथा रक्षा व्यवस्था अति उतम थी, जिसका वर्णन यूनानी राजदूत मेगास्थनीज ने अपनी आत्मकथा में लिखा है । इस नगर की सम्मपन्नता अशोक के समय में और अधिक थी।

 

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बहुकालं पाटलिपुत्रस्य प्राचीना सरस्वतीपरम्परा प्रावर्तत इति राजशेखरः स्वकाव्यमीमांसा-नामके कविशिक्षाप्रमुखे ग्रन्थे सादरं स्मरति ।

बहुत समय तक पाटलिपुत्र की प्राचीन शिक्षा-परंपरा चलती रही । यह राजशेखर नामक कवि ने अपनी काव्यमीमांसा नामक ग्रंथ में आदरपूर्वक वर्णन करता है ।

 

अत्रोपवर्षवर्षाविह पाणिनिपिङ्गलाविह व्याडिः ।

वररूचिपतञ्जलि इह परीक्षिताः ख्यातिमुपजग्मुः ।।

 

 

यहाँ वर्ष-उपवर्ष पाणिनि, पिंगल, व्याडि, वररूचि, पतंजली, आदि लोगों ने ज्ञान का विस्तार किया और ख्याति पाई ।

 

 

कतिपयेषु प्राचीनसंस्कृतग्रन्थेषु पुराणादिषु पाटलिपुत्रस्य नातान्तरं पुष्पपुरं कुसुमपुरं वा प्राप्यते । अनेन ज्ञायते यत् नगरस्यास्य समीपे पुष्पाणां बहुमुत्पादनं भवति स्म ।

कुछ प्राचीन ग्रंथों तथा पुराणों में पाटलिपुत्र का दूसरा नाम पुष्पपुर या कुसुमपुर भी देखने को मिलता है । इससे पता चलता है कि नगर के समीप फूलों का उत्पादन अधिक होता था ।

 

पाटलिपुत्रमिति शब्दोपि पाटलपुष्पाणां पु पुत्तलिकारचनामाश्रित्य प्रचलितः शरतकाले नगरेस्मिन् कौमुदीमहोत्सवः इति महान् समारोहः गुप्तवंशशासनकाले अतीव प्रचलितः । तत्र सर्वे जनाः आनन्दमग्नाः अभूवन् । सम्प्रति दुर्गापूजावसरे तादृशः एव समारोहः दृश्यते ।

पाटलिपुत्र शब्द भी गुलाब फुलों के नाम का आश्रय लेकर रखा गया, ऐसा पुतलिका रचना में वर्णित है । गुप्तवंश के शासन काल में इस नगर में शरद् ऋतु में कौमुदी महोत्सव अति प्रचलित था । इस अवसर पर लोग अति प्रसन्न रहते थे । इस समय दुर्गापूजा के अवसर पर वैसा ही दृश्य देखने को मिलते है।

 

कालचक्रवशाद् यद्यपि मध्यकाले पाटलिपुत्रं वर्षसहस्रपरिमितं जीर्णत्रामन्वभूत् । तस्य संकेतः अनेकेषु साहित्यग्रन्थेषू मुद्राराक्षसादिषू लभ्यते । मुगलवंशकाले अस्य नगरस्य समुध्दारो जातः । आंग्लशासनकाले च पाटलिपुत्रस्य सुतरां विकासो जातः ।

समय परिवर्तन के कारण मध्यकाल में पाटलिपुत्र हजार वर्षों तक पिछड़ा रहा। इसकी जानकारी अनेक साहित्य ग्रंथों एवं मुद्राराक्षस नाटक में मिलती है। मुगल शासनकाल में इस नगर का विकास हुआ तथा अंग्रेज शासनकाल में इस नगर का काफी विकास हुआ।

 

नगरमिदं मध्यकाले एव पटनेति नाम्ना प्रसिध्दिमगात् । अयं च शब्दः पत्तनमिति शब्दात् निर्गतः । नगरस्य पालिका देवी पटनदेवीति अद्यापि पूज्यते ।

यह नगर मध्यकाल में ही पटना नाम से प्रसिद्ध हुआ और यह शब्द पत्तन शब्द से बना है । नगर का पालन और रक्षा करने वाली पटनदेवी आज भी पूजी जाती है ।

 

सम्प्रति पाटलिपुत्रम् (पटना नाम नगरम्) अति विशालं वर्तते बिहारस्य राजधानी चास्ति । अनुदिनं नगरस्य विस्तारः भवति । अस्योत्तरस्यां दिशि गंगा नदी प्रवहति । तस्या उपरि गाँधीसेतुर्नाम एशियामहादेशस्य दीर्घतमः सेतुः किञ्च रेलयानसेतुरपि निर्मीयमानो वर्तते ।

इस समय पाटलिपुत्र अर्थात् पटना नामक नगर अति विशाल बिहार राज्य की राजधानी है। आये दिन इसका विस्तार हो रहा है। इस नगर की उत्तर दिशा में गंगा नदी बहती है। इसके ऊपर एशिया महादेश का सबसे लम्बा पुल गाँधी सेतु बना हुआ है और रेलपुल का निमार्ण हो रहा है ।

 

नगरेस्मिन् उत्कृष्टः संग्रहालयः, उच्चन्यायालयः, सचिवालयः, गोलगृहम्, तारामण्डलम्, जैविकोद्यानम्, मौर्यकालिकः अवशेषः, महावीरमन्दिरम्-इत्येते दर्शनीयाः सन्ति । प्राचीनपटनानगरे सिखसम्प्रदायस्य पूजनीयं स्थलं दशमगुरोः गोविन्दसिंहस्य जन्मस्थानं गुरूद्वारेति नाम्ना प्रसिद्धं वर्तते । तत्र देशस्यास्य तीर्थयात्रिणः दर्शनार्थमायन्ति ।

इस नगर में उत्कृष्ट संग्रहालय, उच्च न्यायालय, सचिवालय, गोलघर, तारामण्डल, जैविक उद्यान, मौर्यकालिक अवशेष, महावीर मन्दिर आदि दर्शनीय स्थल है। प्राचीन पटना नगर में सिख सम्प्रदाय के पूजनीय स्थल गुरूद्वारा दसवें गुरू गोविंद सिंह का जन्म स्थान है । यहाँ देश के विभिन्न क्षेत्रों के तीर्थ यात्रा दर्शन के लिए आते हैं ।

 

 

एवं पाटलिपुत्रं प्राचीनकालात् अद्यावधि विभिन्नेषु क्षेत्रेषु वैभवं धारयति सर्वं च संकलितरूपेण संग्रहालये दर्शनीयमिति । पर्यटनमानचित्रे नरमिदं महत्त्वपूर्णम् ।

इस प्रकार पाटलिपुत्र प्राचीन काल से आजतक विभिन्न क्षेत्रों में वैभव धारण किया है और संग्रहालय के समान दर्शनीय है । पयर्टन की दृष्टि से यह नगर अति महत्वपुर्ण है। 

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अभ्यास प्रश्नोत्तर (Objective Questions)

 

प्रश्‍न 1. मेगास्थनीज पटना किसके समय में आया था?

(A) अशोक के समय में

(B) मुगलवंश काल में

(C) चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में

(D) अंग्रेजों के समय में

 

उत्तर- (C) चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में

 

प्रश्‍न 2. ‘पाटलपुष्पों की पुत्तलिका‘ रचना के आधार पर पटना का कौन-सा नाम है ?

(A) पुष्पपुर

(B) कुसुमपुर

(C) पाटलिपुत्र

(D) पटना

 

उत्तर- (A) पुष्पपुर

 

प्रश्‍न 3. पटना में कौमुदी महोत्सव कब मनाया जाता था ?

(A) गुप्तवंश काल में

(B) मुगलवंश काल में

(C) मध्यकाल में

(D) अंग्रेजों के समय में

 

उत्तर- (A) गुप्तवंश काल में

 

प्रश्‍न 4. पाटलिपुत्र पटना के नाम से कब से प्रसिद्ध हुआ ?

(A) गुप्तवंश काल से

(B) मुगलवंश काल से

(C) मध्यकाल से

(D) अंग्रेजों के समय से

 

उत्तर- (C) मध्यकाल से

 

प्रश्‍न 5. पटना का इतिहास कितना पुराना है?

(A) 2500 वर्ष

(B) 2000 वर्ष

(C) 1500 वर्ष

(D) 1000 वर्ष

 

उत्तर- (A) 2500 वर्ष

 

Class 10 sanskrit patliputra vaibhavam

 

प्रश्‍न 6. कुटनिमताख्य काव्य के कवि कौन हैं ?

(A) राजशेखरः

(B) दामोदर गुप्तः

(C) विशाखादत्त

(D) कालिदासः

 

उत्तर- (B) दामोदर गुप्तः

 

प्रश्‍न 7. यूनान का राजदूत कौन था ?

(A) फाह्यान

(B) ह्वेनसांग

(C) मेगास्थनीज

(D) इत्सिंग

 

उत्तर- (C) मेगास्थनीज

 

प्रश्‍न 8. राजशेखरः की रचना कौन-सी है ?

(A) काव्यमीमांसा

(B) कुट्टनीमताख्य

(C) मुद्राराक्षस

(D) यात्रा संस्मरण

 

उत्तर- (A) काव्यमीमांसा

 

प्रश्‍न 9. कौमुदी महोत्सव किस ऋतु में मनाया जाता था ?

(A) बसन्त ऋतु में

(B) वर्षा ऋतु में

(C) ग्रीष्म ऋतु में

(D) शरद ऋतु में

 

उत्तर- (D) शरद ऋतु में

 

प्रश्‍न 10. पटना नगर की पालिका देवी कौन है ?

(A) शीतला देवी

(B) काली

(C) चंडी

(D) पटन देवी

 

उत्तर- (D) पटन देवी

 

प्रश्‍न 11. सरस्वती का कुलगृह कौन-सा महानगर था? (2018A ІІ)

(A) भागलपुर

(B) नालन्दा

(C) पाटलिपुत्र

(D) दरभंगा

 

उत्तर- (C) पाटलिपुत्र

 

प्रश्‍न 12. ‘परिभूतपुरन्दरस्थानम्‘ की संज्ञा किसे दी गई है ?

(A) पाटलिपुत्र नगर

(B) गुप्तवंश

(C) बुद्ध

(D) राजशेखर

 

उत्तर- (A) पाटलिपुत्र नगर

 

Class 10 sanskrit patliputra vaibhavam

 

प्रश्‍न 13. गुरु गोविंद सिंह का जन्म स्थल कहाँ है ?

(A) पटना

(B) भागलपुर

(C) राजगीर

(D) पंजाब

 

उत्तर- (A) पटना

 

प्रश्‍न 14. ‘वैरेण वैरस्य शमनम् असम्भवम्‘ यह किसकी कथन है ?

(A) महात्मा गाँधी

(B) महात्मा बुद्ध

(C) कर्ण

(D) चन्द्रगुप्त

 

उत्तर- (B) महात्मा बुद्ध

 

प्रश्‍न 15. किसके काल में पाटलिपुत्र की रक्षा व्यवस्था उत्कृष्ट थी ?

(A) चन्द्रगुप्त मौर्य

(B) समुद्रगुप्त

(C) कुमारगुप्त

(D) इनमें कोई नहीं

 

उत्तर- (A) चन्द्रगुप्त मौर्य

 

प्रश्‍न 16. सिखों के दसवें गुरु कौन थे ?

(A) गुरु नानक

(B) गुरु तेगबहादुर

(C) गुरु गोविंद सिंह

(D) गुरु रामदास

 

उत्तर- (C) गुरु गोविंद सिंह

 

प्रश्‍न 17. पाटलिपुत्र किस प्रांत की राजधानी है ?

(A) बिहार

(B) केरल

(C) झारखंड

(D) पश्चिम बंगाल

 

उत्तर- (A) बिहार

 

प्रश्‍न 18. ‘पाटलिपुत्र वैभवम्‘ पाठ में किस शहर का वर्णन है ?

(A) भागलपुर

(B) इलाहाबाद

(C) पटना

(D) कलकत्ता

 

उत्तर- (C) पटना

 

प्रश्‍न 19. दामोदर गुप्त ने किस काव्य की रचना की ?

(A) कुटनीमताख्‍य

(B) काव्य मीमांसा

(C) मुद्राराक्षस

(D) मृच्छकटिक

 

उत्तर- (A) कुटनीमताख्‍य

 

#Class10 sanskrit patliputra vaibhavam subjective questions #gurudiksha

 

लघु-उत्तरीय प्रश्‍नोत्तर (20-30 शब्‍दों में)____दो अंक स्‍तरीय

प्रश्‍न 1. पटना के मुख्य दर्शनीय स्थलों का उल्लेख करें। (2018A,2020A ІІ)

उत्तर- संग्रहालय, उच्चन्यायालय, सचिवालय, गोलघर, तारामण्डल, जैविक उद्यान, मौर्यकालिक अवशेष, महावीर मन्दिर, गुरुद्वारा आदि पटना के मुख्य दर्शनीय स्थल हैं।

 

प्रश्‍न 2.पाटलिपुत्र शब्द कैसे बना ?

उत्तर- पाटलिपुत्र शब्‍द गुलाब फुलों के नाम का आश्रय लेकर रखा गया, ऐसा पुत्तलिका रचना में वर्णित है। पाटलिग्राम ही आगे चलकर पाटलिपुत्र नाम से प्रसिद्ध हुआ। कुछ प्राचीन संस्कृत ग्रंथों एवं पुराणों में पाटलिपुत्र का दूसरा नाम पुष्पपुर या कुसुमपुर प्राप्त होता है।

 

प्रश्‍न 3. सिख संप्रदाय के लोगों के लिए पटना नगर क्यों महत्त्वपूर्ण है?  (2013A)

अथवा, पटना का गुरुद्वारा किसके लियेऔर क्यों प्रसिद्ध है ? (तीन वाक्यों में उत्तर दें।) (2014C)

उत्तर- सिख संप्रदायके लोगों के लिए पटना नगर में पूजनीय स्थल अवस्थित है। यहाँ उनके दसवें गुरु गोविंद सिंह का जन्म स्थान है। यह स्थल गुरुद्वारा के नाम से जाना जाता है।

 

प्रश्‍न 4. प्राचीन ग्रंथों में पटना के कौन-कौन से नाम मिलते हैं? (2018A)

उत्तर- प्राचीनग्रंथों में पटना के नाम पुष्पपुर, कुसुमपुर, पाटलिपुत्र आदि मिलते हैं।

 

प्रश्‍न 5. कविदामोदर गुप्त के अनुसार पाटलिपुत्र कैसा नगर है?

अथवा, दामोदर गुप्त ने पटना के संबंध में क्या लिखा है ? (2018C)

उत्तर- कविदामोदर गुप्त के अनुसार पाटलिपुत्र (पटना) महानगर पृथ्वी पर बसे नगरों में श्रेष्ठ है। यहाँ विद्वान लोग बसते हैं। कवि ने इस महानगर की तुलना इन्द्रलोक से की है। इसे सरस्‍वती का गृह कहा है।

 

प्रश्‍न 6. कौन-कौन से विदेशी यात्री पटना आये थे? (2018A)

उत्तर- मेगास्थनीज, फाह्यान, ह्वेनसांग और इत्सिंग आदि विदेशी यात्री पटना आये थे।

 

प्रश्‍न 7. चंद्रगुप्तमौर्य तथा अशोक के समय पाटलिपुत्र कैसा नगर था ?

उत्तर- चन्द्रगुप्तमौर्य के समय पाटलिपुत्र की रक्षा-व्यवस्था काफी मजबूत (उतकृष्‍ट) थी। यह सुंदर नगर था। अशोक के शासन काल में इस नगर का वैभव और अधिक समृद्ध था। Class #10sanskrit patliputra vaibhavam #gurudiksha

 

प्रश्‍न 8. पाटलिपुत्र के प्राचीन महोत्सव का वर्णन करें।

उत्तर- पाटलिपुत्र में शरतकाल में कौमुदी महोत्सव बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता था। सभी नगरवासी आनंदमग्न हो जाते थे। इस समारोह का विशेष प्रचलन गुप्तवंश के शासनकाल में था। आजकल, जिस तरह दुर्गापूजा मनाई जाती है, उसी प्रकार प्राचीनकाल में कौमुदी महोत्सव मनाया जाता था।

 

प्रश्‍न 9. राजशेखर ने पटना के सम्बन्ध में क्या लिखा है ? (2018A)

उत्तर- राजशेखर ने अपने काव्यमीमांसा में लिखा है कि पाटलिपुत्र शिक्षा का एक प्राचीन केन्द्र था। यहाँ अनेक संस्कृत विद्वान हुए हैं। यहाँ से पाणिनी, पिंगल, व्‍याडि, वररूचि, पतञ्जलि आदि ख्‍याति पाई थी।

 

प्रश्‍न 10. प्राचीन पाटलिपुत्र में शिक्षा के संबंध में लेखक के क्या विचार हैं?

उत्तर- प्रस्तुतपाठ में लेखक ने बताया है कि दामोदरगुप्‍त नामक कवि से हमें जानकारी मिलती है कि पाटलिपुत्र सरस्वती का गृह था अर्थात  यह शिक्षा का केन्‍द्र था। राजशेखर कवि के अनुसार पाणिनी, पिंगल, व्‍याडि, वररूचि, पतञ्जलिआदि यहाँ ख्‍याति पाई थी। इससे ज्ञात होता है कि प्राचीन पाटलिपुत्र शिक्षा का एक महान केंद्र था।

 

प्रश्‍न 11. भगवान् बुद्ध ने पाटलिपुत्र नाम के बारे में क्या कहा था ?

अथवा, भगवान बुद्ध ने पटना के संबंध में क्या कहा था ? (2018A 2020AІІ)

उत्तर- भगवान बुद्ध प्राचीन काल में अनेक बार पाटलि ग्राम आये थे। यहाँ आकर इस गाँव के महत्त्व को बढ़ाया था और उसी समय उन्होंने कहा था— यह गाँव एक दिन महानगर होगा, परन्तु यह नगर आग, जल और कलह से हमेशा भयभीत रहेगा।

 

प्रश्‍न 12. पटना में कौमदी महोत्सव कब मनाया जाता था? (2018C)

उत्तर- पाटलिपुत्र में शरत्काल में कौमुदी महोत्सव मनाया जाता था। यह महोत्‍सव गुप्‍त वंश के काल में होता था। उस समय सभी लोग आनंद मग्न होते थे।

 

प्रश्‍न 13. पाटलिपुत्रवैभवम् पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें।

अथवा, ‘पाटलिपुत्रवैभवम्’ पाठ के आधार पर पटना के वैभव का वर्णन पाँच वाक्यों में करें। (2016A)

अथवा, पाटलिपुत्र के वैभव पर प्रकाश डालें। (2020A,І)

उत्तर- पाटलिपुत्रवैभवम् पाठ में बिहार की राजधानी पटना के प्राचीन महत्त्व का निरूपण है। ऐतिहासिक परम्परा से आधुनिक राजधानी के प्रसिद्ध स्थलों का निरूपण किया गया है। चन्द्रगुप्त मौर्य के समय यहाँ की शोभा तथा रक्षा व्यवस्था उत्कृष्ट थी। अशोक के समय यहाँ की रक्षा व्‍यवस्‍था और अधिक समृद्ध थी । यहाँ से बड़े-बड़े कवि तथा विद्वान जैसे पाणिनी, पिङ्गल, व्‍याडि, वररूचि, पतञ्जली आदि ख्‍याति पाए। यहाँ संग्रहालय, गोलघर, जैविक उद्यान, तारामंडल मार्यकालिक अवशेष आदि दर्शनीय स्थल है।

 

प्रश्‍न 14. पाटलिपुत्रनगर के वैभव का वर्णन करें। (2013C, 2014A,2016C)

उत्तर- पाटलिपुत्र प्राचीनकाल से ही अपने वैभव परम्परा के लिए विख्यात रहा है। विदेशी यूनानी लोगों ने आकर अपने संस्मरणों में यहाँ की अनेक उत्कृष्ट सम्पदाओं का वर्णन किया है। मेगास्थनीज ने लिखा है कि चन्द्रगुप्तमौर्य काल में यहाँ की शोभा और रक्षाव्यवस्था अति उत्कृष्ट थी। अशोक काल में यहाँ की रक्षा व्‍यवस्‍था और अधिक समृद्धि रही। कवि राजशेखर ने अपनी रचना काव्यमीमांसा में लिखें हैं कि यहाँ से बड़े-बड़े कवि तथा विद्वान जैसे पाणिनी, पिङ्गल, व्‍याडि, वररूचि, पतञ्जली आदि ख्‍याति पाए । आज पाटलिपुत्रनगर “पटना’ नाम से जाना जाता है । यहाँ संग्रहालय, गोलघर, जैविक उद्यान इत्यादि दर्शनीय स्थल हैं। इस प्रकार पाटलिपुत्र प्राचीनकाल से आज तक विभिन्न क्षेत्रों में वैभव धारण करता रहा है । #Class10 sanskrit patliputra vaibhavam

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3. अलसकथा (आलसी की कहानी)

3. अलसकथा (आलसी की कहानी)

 

पाठ परिचय- यह पाठ विद्यापति द्वारा रचित पुरुषपरीक्षा नामक कथाग्रन्थ से संकलित एक उपदेशात्मक लघु कथा है। विद्यापति ने मैथिली, अवहट्ट तथा संस्कृत तीनों भाषाओं में ग्रन्थ-रचना की थी। पुरुषपरीक्षा में धर्म, अर्थ, काम इत्यादि विषयों से सम्बद्ध अनेक मनोरंजक कथाएँ दी गयी हैं। अलसकथा में आलस्य के निवारण की प्रेरणा दी गयी है। इस पाठ में संसार की विचित्र गतिविधि का भी परिचय मिलता है।

 

आलस- किसी भी काम को देर से करने या उसके करने से बचने को कहा जाता है।

आलसी- जो सुस्त यानी निकम्मा होता है उसे आलसी कहा जाता है। आलसी व्यक्ति जीवन में सक्रिय नहीं होता है और समय पर अपना काम नहीं करता है। इस स्वभाव के लोग काम से बचने के बहाने ढ़ूँढ़ते हैं या फिर अपना काम दूसरों से करवाते हैं।

 

तृतीय पाठः अलस कथा (आलसी की कहानी)

 

अयं पाठः विद्यापतिकृतस्य कथाग्रन्थस्य पुरुषपरीक्षेतिनामकस्य अंशविशेषो वर्तते। पुरुषपरीक्षा सरलसंस्कृतभाषायां कथारूपेण विभिन्नानां मानवगुणानां महत्त्वं वर्णयति, दोषाणां च निराकरणाय शिक्षां ददाति।

यह पाठ विद्यापति रचित कथा ग्रन्थ पुरूष परीक्षा नामक ग्रंथ का अंश विशेष है। पुरूष परीक्षा कथा ग्रंथ में मानवीय गुणों पर प्रकाश डाला गया है और दोषों को दुर करने की शिक्षा दी गयी है ।

 

विद्यापतिः लोकप्रियः मैथिलीकविः आसीत्। अपि च बहूनां संस्कृतग्रन्थानां निर्मातापि विद्यापतिरासीत् इति तस्य विशिष्टता संस्कृतविषयेऽपि प्रभूता अस्ति। प्रस्तुते पाठे आलस्यनामकस्य दोषस्य निरूपणे व्यंगयात्मिका कथा प्रस्तुता विद्यते। नीतिकाराः आलस्यं रिपुरूपं मन्यन्ते।

विद्यापति लोकप्रिय मैथली कवि थे और अनेक संस्कृत ग्रंथों के निर्माता भी विद्यापति थे। उनकी विशेषता संस्कृत विषय में भी बहुत है। प्रस्तुत पाठ में आलस्य दोष है। इसे साबित करने के लिए व्यंग्यात्मक कथा प्रस्तुत किया गया है। नीतिकार लोग आलस्य को शत्रु मानते हैं।

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आसीत् मिथिलायां वीरेश्वरो नाम मन्त्री। स च स्वभावाद् दानशीलः कारुणिकश्च सर्वेभ्यो दुर्गतेभ्योऽनाथेभ्यश्च प्रत्यहमिच्छाभोजनं दापयति। तन्मध्येऽलसेभ्योऽप्यन्नवस्त्रे दापयति। यतः –

मिथिला मे वीरेश्वर नाम का एक मंत्री था। वह स्वभाव से दानी और दयावान था। वह दीन-दु:खीयों तथा अनाथ लोगों को प्रतिदिन इच्छा भर भोजन देता था। वह आलसीयों को भी अन्न-वस्त्र देता था। क्योंकि-

 

निर्गतीनां च सर्वेषामलसः प्रथमो मतः।

किंचिन्न क्षमते कर्तुं जाठरेणाऽपि वहि्नना ।।

 

 

दुखी मनुष्यों में पहला स्थान आलसीयों का होता है। इनका मुख्य सिद्धांत भूखे रहना अच्छा है लेकिन कोई काम नहीं करना है। अर्थात् आलसी लोग पेट की आग सह लेते है किंतु परिश्रम करना नहीं चाहते हैं।

 

ततोऽलसपुरुषाणां तत्रेष्टलाभं श्रुत्वा बहवस्तुन्दपरिमृजास्तत्र वर्त्तुलिबभूवुः यतः –

इसके बाद आलसी व्यक्ति को वहाँ खूब धन लाभ सुनकर बहुत से तोंद बढ़े लोग जमा हो गये। क्योंकि-

 

स्थितिः सौकर्यमूला हि सर्वेषामपि संहते।

सजातीनां सुखं दृष्ट्वा के न धावन्ति जन्तवः।।

 

सुविधाजनक स्थिति को देखकर सभी लोग उसे प्राप्त करना चाहते हैं। कौन ऐसा जीव है जो अपने जाति का सुख देखकर नहीं दौड़ता हो। अर्थात् सभी कोई अपने जाति का सुख देखकर आकृष्ट होते हैं।

 

 

पश्चादलसानां सुखं दृष्ट्वा धूर्ता अपि कृत्रिममालस्यं दर्शयित्वा भोज्यं गृह्णन्ति। तदनन्तरमलसशालायां बहुद्रव्यव्ययं दृष्ट्वा तन्नियोगिपुरुषैः परामृष्टम् – यदक्षमबुद्ध्या करुणया केवलमलसेभ्यः स्वामी वस्तूनि दापयति, कपटेनाऽनलसा अपि गृह्णन्ति इत्यस्माकं प्रमादः।

बाद में आलसियों का सुख देखकर धूर्त भी बनावटी आलस्य दिखाकर भोजन करते थे। इस बीच आलसियों पर अधिक खर्च देखकर राज पुरूषों के द्वारा विचार किया गया कि बुद्धि से हीन पर दया करके स्वामी द्वारा केवल आलसियों को वस्तुएँ दी जाती हैं। कपट से आलस्यहीन भी वस्तुएँ पाते हैं। यह हमारे आलस्य हैं ।

 

यदि भवति तदालसपुरुषाणां परीक्षां कुर्मः इति परामृश्य प्रसुप्तेषु अलसशालायां तन्नियोगिपुरुषाः वह्निं दापयित्वा निरूपयामासुः।

इसलिए उन आलस्यहीनों की जाँच की जाए, ऐसा विचारकर सोए अवस्था में आलसियों के घर में आग लगाकर जाँचा जाता है।

 

ततो गृहलग्नं प्रवृद्धमग्निं दृष्ट्वा धूर्ताः सर्वे पलायिताः। पश्चादीषदलसा अपि पलाचिताः।

इसके बाद घर में लगे आग को बढ़ते देखकर सभी धूर्त्त लोग भाग गये। इसके बाद कुछ आलसी लोग भी भाग गये।

 

चत्वारः पुरुषास्तत्रैव सुप्ताः परस्परमालपन्ति। एकेन वस्त्रावृतमुखेनोक्तम्- अहो कथमयं कोलाहलः ? द्वितीयेनोक्तम्- तर्क्यते यदस्मिन् गृहे अग्निर्लग्नोऽस्ति। तृतीयेनोक्तम्- कोऽपि तथा धार्मिको नास्ति य इदानीं जलाद्रैर्वासोभिः कटैवांस्मान् प्रावृणोति ? चवुर्थेनोक्तम्- अये वाचालाः। कति वचनानि वक्तुं शक्नुथ ? तूष्णीं कथं न तिष्ठथ ?

चार व्यक्ति वहीं सोये थे तथा परस्पर बात कर रहे थे। एक ने कपड़े से मुख ढ़क कर बोला- अरे हल्ला कैसा ? दूसरे ने कहा-लगता है कि इस घर में आग लग गयी है। तीसरे ने कहा- कोई भी ऐसा धार्मिक नहीं है, जो इस समय पानी से भीगें वस्त्रों से या चटाई से हमलोगों को ढ़क दे। चौथे ने कहा- अरे, बक-बक करने वालों कितनी बातें करते हो? चुपचाप क्यों नही रहते हो?

 

 

ततश्चतुर्णामपि तेषामेवं परस्परालापं श्रुत्वा वह्निं च प्रवृद्धमेषामुपरि पतिष्यन्तं दृष्ट्वा नियोगिपुरुषैर्वधभयेन चत्वारोऽप्यलसाः केशेष्वावाकृष्य गृहीत्वा गृहाद् बहिःकृताः। पश्चात्तानालोक्‍य तैर्नियोगिभिः पठितम्-

तब चारों की आपसी बात सुनकर और उसके ऊपर फैली हुई आग को देखकर नियोगी पुरूष की मृत्यु होने की भय से चारों आलसी को बाल पकड़ कर खींचते हुए बाहर निकाला गया तब उन्हें इस प्रकार देखकर नियोगी पुरूष द्वारा कहा गया-

 

पतिरेव गतिः स्त्रीणां बालानां जननी गतिः।

नालसानां गतिः काचिल्लोके कारुणिकं बिना।।

 

स्त्रियों का रक्षक पति होता है, बच्चों का रक्षक माँ होती है, लेकिन आलसियों का रक्षक दयावान पुरूष के अलावा संसार में और कोई नहीं होता है।

 

पश्चातेषु चतुर्ष्वलसेषु ततोऽप्यधिकतरं वस्तु मन्त्री दापयामास।

और बाद में उन चारों को पहले से भी अधिक वस्तुएँ मंत्री द्वारा दी जाने लगी। 

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अलसकथा Objective Questions

 

प्रश्‍न 1. वीरेश्वर कौन था?

(A) मिथिला का राजा  

(B) मिथिला का मंत्री

(C) मिथिला का राजकुमार

(D) मिथिला का संतरी

उत्तर- (B) मिथिला का मंत्री

 

प्रश्‍न 2. अलसशाला में आग क्यों लगाई गई ?

(A) आलसियों को भगाने के लिए

(B) आलसियों के परीक्षा करने के लिए

(C) अलसशाला के संपत्ति को हड़पने के लिए

(D) इनमें से किसी के लिए नहीं

उत्तर- (B) आलसियों के परीक्षा करने के लिए

 

 

प्रश्‍न 3. अलसकथा के रचयिता कौन है ?

(A) कालिदासः

(B) विद्यापतिः

(C) विष्णु शर्मा

(D) नारायण पण्डितः

उत्तर- (B) विद्यापतिः

 

प्रश्‍न 4. अलसशाला में आग लगने पर भी कितने लोग नहीं भागे ?

(A) 1

(B) 2

(C) 3

(D) 4

उत्तर- (D) 4

 

प्रश्‍न 5. संसार में बच्चों का सच्चा रक्षक कौन होता है?

(A) माता

(B) पिता

(C) भाई

(D) बहन

उत्तर- (A) माता

 

प्रश्‍न 6. घर में लगी आग को देखकर कौन लोग पलायन हो गये ?

(A) आलसी लोग

(B) समझदार लोग

(C) फुर्तीले लोग

(D) धूर्त लोग

उत्तर- (D) धूर्त लोग

 

प्रश्‍न 7. चारों आलसीयों को कैसे बाहर निकाला गया ?

(A) पैर पकड़कर

(B) हाथ पकड़कर

(C) केश पकड़कर

(D) बाँह पकड़कर

उत्तर- (C) केश पकड़कर

 

 

प्रश्‍न 8. बनावटी आलस्य दिखाकर कौन भोजन ग्रहण करते थे ?

(A) विद्वान

(B) धुर्त

(C) मुर्ख

(D) जानकार

उत्तर- (B) धुर्त

 

प्रश्‍न 9. ‘स्थितिः सौकर्यमूला हि ….. के न धावन्ति जन्तवः‘ यह उक्ति किस पाठ से संकलित है ?

(A) अलसकथा

(B) संस्कृत साहित्य लेखिकाः

(C) नीतिश्लोकाः

(D) व्याघ्र पथिक कथा

उत्तर- (A) अलसकथा

 

प्रश्‍न 10. वास्तविक आलसियों की संख्या कितनी थी?

(A) 1

(B) 2

(C) 3

(D) 4

उत्तर- (D) 4

 

लघु-उत्तरीय प्रश्‍नोत्तर (20-30 शब्‍दों में) ____दो अंक स्‍तरीय

प्रश्‍न 1. ’अलसकथा’ से क्या शिक्षा मिलती है ? (2011C, 2015A 2020A І)

अथवा, ’अलसकथा’ पाठ के लेखक कौन हैं तथा उस कथा से क्या शिक्षा मिलती है? (2016A)

उत्तर- मैथिली कवि विद्यापति रचित ’अलसकथा’ में आलसियों के माध्यम से शिक्षा दी गयी है कि उनका भरण-पोषण करुणाशीलों अर्थात दयावानों के बिना संभव नहीं है। आलसी काम नहीं करते, ऐसी स्थिति में कोई दयावान् ही उनकी व्यवस्था कर सकता है। इसप्रकार आत्मनिर्भर न होकर वे दूसरे पर निर्भर हो जाते हैं। आलस एक शत्रु है, उसे त्याग देना चाहिए।

 

प्रश्‍न 2. अलसशाला के कर्मियों ने आलसियों की परीक्षा क्‍यों ली ? (2020AІІ)

उत्तर- अलसशाला में बहुत सारे बनावटी आलस ग्रहण कर अन्‍न और वस्‍त्र प्राप्‍त करने लगे, जिससे अलसशाला का खर्च बढ़ गया । अधिक खर्च को देखकर को देखकर वहाँ के कर्मियों ने आलसियों की परीक्षा ली।

 

प्रश्‍न ३. अलसशला के कर्मियों ने आलसियों को आग से कैसे और क्‍यों निकाला ? (2020AІІ)

उत्तर- अलसशाला में बनावटी आलस ग्रहण कर लोग अन्‍न और वस्‍त्र ग्रहण करने लगे। तब वहाँ के कर्मियों ने अलसशाला में आग लगा दिया। वहाँ लगे आग को देखकर कृत्रिम आलसी भाग गये, लेकिन चार आलसी वहीं सोये रह गये। शोरगुल के बाद भी चारों आलसी सोये अवस्‍था में बातचीत कर रहे थे। वहाँ के कर्मियों ने सोचा कि अगर इन्‍हें नहीं निकाला जायेगा, तो ये जल जायेंगे। इसलिए अलसशाला के कर्मियों ने चारों आलसियों को उनके बाल पकड़कर बाहर निकाला।

 

 

प्रश्‍न 4. अलसशाला में आग लगने पर क्या हआ? (2018A)

उत्तर- अलसशाला में आग लगने पर सभी धूर्त आलसी तथा कृत्रिम आलस वाले भाग गए। लेकिन चार आलसी सोये हुए रह गए और आपस में बातें कर रहे थे। फैली आग को देखकर नियोगी पुरुष को दया आ गया। उन लोगों ने सोचा कि अगर इन्‍हें नहीं निकाला जाएगा तो जल जाऐंगे। तब उनलोगों ने चारों आलसियों के बाल पकड़कर खींचते हुए बाहर निकाला।

 

प्रश्‍न 5. मिथिला राज्य का मंत्री कौन था ? उन्होंने कृत्रिम आलसी की परीक्षा कैसे ली तथा अग्निलग्न घर देखकर कितने आलसी बच गये? (2016A)

उत्तर- मिथिला का मंत्री वीरेश्वर था। उन्होंने घर में आग लगाकर कृत्रिम आलसी की परीक्षा ली। अग्निलगन घर देखकर चार आलसी बच गए।

 

Bihar board class 10 sanskrit chapter 3 Alas katha sanskrit class 10 #gurudiksha

 

प्रश्‍न 6. विद्यापति कौन थे ? उन्होंने किस ग्रंथ की रचना की? पठित पाठ के आधार पर लिखें।                                          

उत्तर- विद्यापति एक महान मैथली कवि एवं लेखक थे। इन्होंने पुरुष परीक्षा नामक ग्रंथ की रचना की। संस्कृत भाषा में लिखित पुरुष परीक्षा में कथारूप में अनेक मानवीय गुणों के महत्व का वर्णन है तथा दोष के निराकरण के लिए शिक्षा दी गयी है। विद्यापति लोकप्रिय मैथिलकवि थे। ये संस्कृत ग्रंथों के रचयिता भी थे। इनकी ख्याति मैथली विषयों के साथ-साथ संस्कृत विषयों में अत्यधिक थी।

 

प्रश्‍न 7. अलसकथा’ का क्या संदेश है?

अथवा, ’अलसकथा’ पाठ में किस पर चर्चा की गयी है? (2016A)

उत्तर- अलसकथा का संदेश है कि आलस्य एक महान रोग है। जीवन में विकास के लिए व्यक्ति का कर्मठ होना अत्यावश्यक है। आलस्य शरीर में रहनेवाला महान शत्रु है जिससे अपना, परिवार का और समाज का विनाश अवश्य ही होता है।

 

प्रश्‍न 8. किनकी क्या-क्या गतियाँ हैं? पठित पाठ के आधार पर स्पष्ट करें। (2018A)

उत्तर- गति को विद्यापति रचित पाठ ‘अलसकथा’ में व्‍याख्‍या किया गया है। स्त्री, पुरुष एवं बच्चों की गतियाँ अलग-अलग हैं। स्त्रियों की गति पति हैं, बच्चों की गति माँ है तथा आलसियों की गति कारुणिकता (दयालुता) है। अर्थात् स्त्रियों की जीवनभंगिमा उसके पति पर निर्भर करती है। बच्चों की जीवनवृत्ति उसकी माँ ही होती है। आलसियों की जीवनवृत्ति दयालुओं पर ही निर्भर होती है।

 

प्रश्‍न 9. अलसकथा पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें।

उत्तर- यह पाठ विद्यापति द्वारा रचित पुरुषपरीक्षा नामक कथाग्रन्थ से संकलित एक उपदेशात्मक लघु कथा है। विद्यापति ने मैथिली, अवहट्ट तथा संस्कृत तीनों भाषाओं में ग्रन्थ-रचना की थी। पुरुषपरीक्षा में धर्म, अर्थ, काम इत्यादि विषयों से सम्बद्ध अनेक मनोरंजक कथाएँ दी गयी हैं। अलसकथा में आलस्य के निवारण की प्रेरणा दी गयी है। इस पाठ से संसार की विचित्र गतिविधि का भी परिचय मिलता है।

 

प्रश्‍न 10. आलसशाला के कर्मचारियों ने आलसियों की परीक्षा क्यों और कैसे ली? (2018C)

उत्तर- अलसशाला में आलसियों की सुख-सुविधाओं को देखकर कम आलसी एवं कृत्रिम आलसियों की भीड़ जुटी थी। बड़े-बड़े तोंद वाले लोग भी बनावटी आलस्‍य ग्रहण कर भोजन और वस्‍त्र ग्रहण करने लगे। जिससे अलसशाला का खर्च बेवजह बढ़ गया था। अतः अलसशाला के व्यर्थ खर्च को रोकने तथा सही आलसियों की पहचान के लिए अलसशाला में आग लगा दी गई, जिससे नकली आलसी भाग खड़े हुए।

 

प्रश्‍न 11. चारों आलसियों के वार्तालाप को अपने शब्दों में लिखें। (2018A)

उत्तर- चारों आलसी निश्चय ही अपने आलसपन को सिद्ध कर रहे थे। एक ने मुंह ढंककर कहा-अरे हल्ला कैसा? दूसरे ने कहा-लगता है इस घर में आग लग गई है। तीसरे ने कहा-कोई धार्मिक व्यक्ति नहीं है, जो पानी से भींगे वस्त्रों से ढंक दे। चौथे ने कहा-अरे बक-बक करनेवालों ! कितनी बातें करते हो ? चुपचाप क्यों नहीं रहते हो !

 

प्रश्‍न 12. विद्यापति कौन थे? उन्होंने किस ग्रन्थ की रचना की तथा ’अलसकथा’ में किसकी कहानी है ? छः वाक्यों में लिखें।   (2017A)

उत्तर- विद्यापति एक महान मैथली कवि एवं लेखक थे। इन्होंने पुरुष परीक्षा नामक ग्रंथ की रचना की। संस्कृत भाषा में लिखित पुरुष परीक्षा में कथारूप में अनेक मानवीय गुणों के महत्व का वर्णन है। दोष के निराकरण के लिए शिक्षा दी गयी है। विद्यापति एक लोकप्रिय मैथिलकवि थे। ये संस्कृत ग्रंथों के रचयिता थे। उनकी ख्याति संस्कृत विषयों में अत्यधिक थी।

 

प्रश्‍न 13. चारों आलसी पुरुष आग से किस प्रकार बचना चाहते थे?

अथवा, ’अलस कथा’ पाठ के आधार पर बताइए कि आलसी पुरुषों को किसने और क्यों निकाला?  (2014A)

उत्तर- चारों आलसी पुरुष आग लगने पर भी घर से नहीं भागे। शोरगुल सुनकर वे जान गए थे कि घर में आग लगी हुई है। वे चाहते थे कि कोई धार्मिक एवं दयालु व्यक्ति आकर हमारे ऊपर भींगे हुए वस्त्र या कंबल डाल दे। जिससे आग बुझ जाए और वे लोग बच जाएँ। चूँकि आलसी व्यक्ति आग से बचने के लिए भी नहीं भाग सके इसलिए नियोगी पुरुष ने उनकी प्राण रक्षा के लिए उन्हें घर से बाहर किया।

 

प्रश्‍न 14. अलसकथा का सारांश लिखें। (2012A)

उत्तर- मिथिला में वीरेश्वर नामक मंत्री था। वह स्वभाव से दानशील और दयावान था। वह अनाथों और निर्धनों को प्रतिदिन भोजन देता था। इससे आलसी भी लाभान्वित होते थे। आलसियों को इच्छित लाभ की प्राप्ति को जानकर बहुत से लोग बिना परिश्रम तोन्द बढ़ानेवाले वहाँ इकट्ठे हो गए। इसके पश्चात् आलसियों को ऐसा सुख देखकर धूर्त लोग भी बनावटी आलस्य दिखाकर भोजन प्राप्त करने लगे। इसके बाद अत्यधिक खर्च को देखकर अलसशाला चलाने वाले लोगों ने विचार किया कि छल से कपटी आलसी भी भोजन प्राप्त करते हैं। यह हमलोगों की गलती है।

अतः उन आलसियों का परीक्षण करने हेतु उन्होंने आलसशाला में आग लगाकर हल्ला कर दिया। इसके बाद घर में लगी आग को बढ़ती हुई देखकर सभी धूर्त्त भाग गये। लेकिन चार पुरुष अग्नि का आभास पाकर भी अपने स्थान पर वैसे ही बने रहकर बात करने लगे कि उन्हें कोई इस अग्नि से निकाल देता। अंततः व्यवस्थापक इस संबंध में उनकी आपस की वार्तालाप को सुनकर बढ़ी हुई आग की ज्वाला से रक्षण हेतु उन्हें निकाल दिया। आलसियों की पहचान करते हुए उन्होंने पाया कि आलसी स्वयं अपना पोषण नहीं कर सकते। वे दयावान लोगों की दया पर ही जीवित रह सकते हैं। अतः उन्हें मदद की पूर्ण जरूरत है। इसके बाद उन चारों आलसियों को पहले से अधिक चीजें मंत्री देने लगे।लहरी, कथा मुवक्ताली, विचित्र परिषद्यात्रा, ग्रामज्योति इत्यादि अनेक गद्य-पद्य की रचना की। इस समय लेखन कार्य में संलग्न कवित्रियों में पुष्पादीक्षित, वनमाला भवालकर, मिथिलेश कुमारी मिश्र आदि आए दिन संस्कृत साहित्य को पूरा करते है।

 

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4. संस्‍कृत साहित्‍ये लेखिका:

4. संस्‍कृत साहित्‍ये लेखिका:

(संस्‍कृत साहित्‍य की लेखिकाएँ)

विपुलं संस्कृतसाहित्यं विभिन्नैः कविभिः शास्त्रकारैश्च संवर्धितम्। वैदिकालादारभ्य शास्त्राणां काव्यानांञ्च रचने संरक्षणे यथा पुरुषाः दत्तचिताः अभवन् तथैव स्त्रियोऽपि दत्तावधानाः प्राप्यन्ते। वैदिकयुगे मन्त्राणां दर्शका न केवला ऋषयः, प्रत्युत ऋषिका अपि सन्ति। ऋग्वेदे चतुर्विंशतिरथर्ववेदे च पञ्च ऋषिकाः मन्त्रदर्शनवत्यो निर्दिश्यन्ते यथा- यमी, अपाला, उर्वशी, इन्द्राणी, वागाम्भृणी इत्यादयः।

विशाल संस्कृत साहित्य अनेक कवियों तथा शास्त्रकारों द्वारा अत्यधिक समृद्ध किया गया। वैदिक काल के आरंभ से ही शास्त्रों तथा काव्यों की रचना और संरक्षण में पुरूष के समान स्त्रीयाँ भी सावधान थी। वैदिक युग में ऋषि एवं ऋषि-पत्नी दोनों ही मंत्रों की रचना करते थे। ऋगवेद में चौबीस और अथर्ववेद में पाँच ऋषि-पत्नियाँ उल्लिखित हैं- यमी, अपाला, उर्वशी, इन्द्राणी, वागाम्भृणी आदि-आदि।

 

 

बृहदारण्यकोपनिषदि याज्ञवल्क्यस्य पत्नी मैत्रेयी दार्शनिकरुचिमती वर्णिता यां याज्ञवल्क्य आत्मतत्‍वं शिक्षयति। जनकस्य सभायां शास्त्रार्थकुशला गार्गी वाचक्नवी तिष्ठति स्म। महाभारतेऽपि जीवनपर्यन्तं वेदान्तानुशीलनपरायाः सुलभाया वर्णनं लभ्यते।

वृहदारण्यक उपनिषद में याज्ञवल्क्य की पत्नी मैत्रेयी दार्शनिक रूप में वर्णित की गई है। जिनको याज्ञवल्क्य जी ने आत्मतत्‍व की शिक्षा देते हैं। जनक की सभा में शास्त्रार्थ कुशल गार्गी नामक विदुषी रहती थी। महाभारत में भी जीवन-पर्यन्त वेदान्त अध्ययन में स्त्रियाँ रही। यह बात आसानी से वर्णन में मलती है।

 

लौकिकसंस्कृतसाहित्ये प्रायेण चत्वारिंशत्कवयित्रीणां सार्धशतं पद्यानि स्फुटरूपेण इतस्ततो लभ्यन्ते। तासु विजयाङ्का प्रथम-कल्पा वर्तते। सा च श्यामवर्णासीदिति पद्येनानेन स्फुटीभवति-

लौकिक संस्कृत साहित्य में प्रायः चालीस कवयित्रीयों का डेढ़ सौ पदें स्पष्टरूप से जहाँ-तहाँ प्राप्त हैं। उनमें विजयाङ्का का प्रथम कल्प है। वह श्यामवर्ण की थी। यह इस पद से स्पष्ट होता है।

 

 

नीलोत्पलदलश्यामां विजयाङ्कामजानता।

वृथैव दण्डिना प्रोक्ता ‘सर्वशुक्ला सरस्वती‘।।

 

नीले कमल के समान श्यामवर्ण की विजयाङ्का को न जानते हुए सरस्वती को सर्वशुक्ला दण्डी द्वारा व्यर्थ ही कहा गया।

 

तस्याः कालः अष्टमशतकमित्यनुमीयते। चालुक्यवंशीयस्य चन्द्रादित्यस्य राज्ञी विजयभट्टारिकैव विजयाङ्का इति मन्यते। किञ्च शीला भट्टारिका, देवकुमारिका, रामभद्राम्बा-प्रभृतयो दक्षिणभारतीयाः संस्कृतलेखिकाः स्वस्फुटपद्यैः प्रसिद्धाः।

उनका समय आठवीं शताब्दी अनुमान किया जाता है। अनेक विद्वानों का मानना है कि चालुक्यवंश के राजा चन्द्रादित्य की रानी विजय भट्टारिका ही विजयाङ्का है। कुछ और शीला भट्टारिका, देवकुमारिका, रामभद्राम्बा आदि दक्षिण भारतीय संस्कृत लेखिकाओं की कविताएँ प्रसिद्ध है।

 

विजयनगरराज्यस्य नरेशाः संस्कृतभाषासंरक्षणाय कृतप्रयासा आसन्निति विदितमेव। तेषामन्तःपुरेऽपि संस्कृतरचनाकुशलाः राज्ञयोऽभवन्। कम्पणरायस्य ( चतुर्दशशतकम् ) राज्ञी गंगादेवी ‘मधुराविजयम्‘ इति महाकाव्यं स्वस्वामिनो (मदुरै)- विजयघटनामाश्रित्यारचयत्। तत्रालङ्काराणां संनिवेशः आवर्जको वर्तते।

विजयनगर के राजा ने संस्कृत भाषा की रक्षा के लिए जितना प्रयास किया, वह ज्ञात ही है। उनके अन्तःपुर में संस्कृत के कुशल रचनाकार हुए। चौदहवीं शताब्दी में कम्पन राय की रानी गंगा देवी मधुरा विजयम् नामक महाकाव्य की अपने स्वामी विजयघटना के आश्रय में रचना की। उसमें अलंकारां का सुन्दर प्रयोग हुआ है।

 

तस्मिन्नेव राज्ये षोडशशतके शासनं कुर्वतः अच्युतरायस्य राज्ञी तिरुमलाम्बा वरदाम्बिकापरिणय- नामकं प्रौढ़ं चम्पूकाव्यमरचयत्। तत्र संस्कृतगद्यस्य छटा समस्तपदावल्या ललितपदविन्यासेन चातीव शोभते। संस्कृतसाहित्ये प्रयुक्तं दीर्घतमं समस्तपदमपि तत्रैव लभ्यते।

उनके ही राज्य में सोलहवीं शताब्दी में राज्य करते हुए अच्युत राय की रानी तिरूमलाम्बा ने वरदाम्बिका परिणय नामक विशाल चम्पुकाव्य की रचना की। उसमें संस्कृत गद्य की छटा तथा सुन्दर पदविन्यास अति रमणीय हैं। संस्कृत साहित्य में लम्बे समस्त पद का प्रयोग उसी में हुआ है।

 

 

आधुनिककाले संस्कृतलेखिकासु पण्डिता क्षमाराव (1890-1953 ई॰) नामधेया विदुषी अतीव प्रसिद्धा। तया स्वपितुः शंकरपाण्डुरंगपण्डितस्य महतो विदुषो जीवनचरितं ‘शंकरचरितम्‘ इति रचितम्।

आधुनिक काल में संस्कृत लेखिकाओं में पंडित क्षमाराव नाम की विदुषी बहुत प्रसिद्ध है। उन्होनें अपने पिता पंडित शंकर पाण्डुरंग की महान विद्वता जीवन चरित पर ‘शंकर चरितम्‘ की रचना की।

 

गान्धिदर्शनप्रभाविता सा सत्याग्रहगीता, मीरालहरी, कथामुक्तावली, विचित्रपरिषद्यात्रा, ग्रामज्योतिः इत्यादीन् अनेकान् पद्य-पद्यग्रन्थान् प्रणीतवती। वर्तमानकाले लेखनरतासु कवयित्रीषु पुष्पादीक्षित-वनमाला भवालकर – मिथिलेश कुमारी मिश्र-प्रभृतयोऽनुदिनं संस्कृतसाहित्यं पूरयन्ति।

गाँधी दर्शन से प्रभावित होकर उन्होने सत्याग्रहगीता, मीरालहरी, कथा मुवक्ताली, विचित्र परिषद्यात्रा, ग्रामज्योति इत्यादि अनेक गद्य-पद्य की रचना की। इस समय लेखन कार्य में संलग्न कवित्रियों में पुष्पादीक्षित, वनमाला भवालकर, मिथिलेश कुमारी मिश्र आदि आए दिन संस्कृत साहित्य को पूरा करते है। 

#Sanskrit_sahitya_lekhika #class10

 

 

संस्कृतसाहित्ये लेखिकाः (Objective Questions)

 

प्रश्‍न 1. याज्ञवल्क्य ने की शिक्षा किसको दी थी ?

(A) मैत्रेयी को

(B) बाणभट्ट को

(C) जनक को

(D) दाण्डी को

उत्तर-(A) मैत्रेयी को

 

प्रश्‍न 2. ‘सर्वशुक्ला सरस्वती‘ किसने कहा है ?

(A) याज्ञवल्क्य ने

(B) बाणभट्ट ने

(C) जनक ने

(D) दण्डी ने

उत्तर-(D) दण्डी ने

 

 

प्रश्‍न 3. ‘शंकरचरित‘ के रचनाकार कौन है ?

(A) पण्डिता क्षमाराव

(B) वनमाला भवालकर

(C) विजयाङ्का

(D) मिथिलेश कुमारी मिश्र

उत्तर-(A) पण्डिता क्षमाराव

 

प्रश्‍न 4. जनक की सभा में शास्त्रार्थ कुशला कौन थी ?

(A) शुलभा

(B) गार्गी

(C) मैत्रेयी

(D) यमी

उत्तर-(B) गार्गी

 

प्रश्‍न 5. गंगा देवी का समय क्या है ?

(A) चौदहवीं सदी

(B) आठवीं सदी

(C) नौवीं सदी

(D) बारहवीं सदी

उत्तर-(A) चौदहवीं सदी

 

प्रश्‍न 6. ऋगवेद में कितने मन्त्रदर्शनवती ऋषिकाओं का उल्लेख है ?

(A) पंच

(B) चतुर्विंशतिः

(C) विंशतिः

(D) चत्वारिंशत्

उत्तर-(B) चतुर्विंशतिः

 

प्रश्‍न 7. आधुनिक काल की संस्कृत कवयित्री कौन हैं?

(A) तिरुमलम्बा

(B) विजयाङका

(C) सुलभा

(D) पण्डिता क्षमाराव

उत्तर-(D) पण्डिता क्षमाराव

 

 

प्रश्‍न 8. याज्ञवल्क्य की पत्नी कौन है ?

(A) मैत्रेयी

(B) सुलभा

(C) देवकुमारिका

(D) रामभद्राम्बा

उत्तर-(A) मैत्रेयी

 

प्रश्‍न 9. महाभारत में किस लेखिका का उल्लेख मिलता है ?

(A) गार्गी का

(B) मैत्रेयी का

(C) सुलभा का

(D) यमी का

उत्तर-(C) सुलभा का

 

प्रश्‍न 10. वर्त्तमान काल की संस्कृत लेखिका कौन है ?

(A) गंगा देवी

(B) सुलभा

(C) मिथिलेश कुमारी मिश्र

(D) विजयांका

उत्तर-(C) मिथिलेश कुमारी मिश्र

 

प्रश्‍न 11. विजयांका का काल किस शतक में माना जाता है?

(A) पंचम

(B) सप्तम

(C) अष्ठम

(D) नवम

उत्तर-(C) अष्ठम

 

प्रश्‍न 12. आधुनिक काल की संस्कृत लेखिकाओं में कौन अतीव प्रसिद्ध है ?                               

(A) क्षमाराव

(B) मैत्रेयी

(C) आभाराव

(D) विजयांका

उत्तर-(A) क्षमाराव

 

 

प्रश्‍न 13. वनमाला भवालकर किस काल की संस्कृत कवयित्री है ?

(A) प्राचीनकाल

(B) अति प्राचीनकाल

(C) मध्यकाल

(D) वर्त्तमान काल

उत्तर-(D) वर्त्तमान काल

 

प्रश्‍न 14. याज्ञवल्क्य अपनी पत्नी मैत्रेयी को किसकी शिक्षा देते हैं ?

(A) भारतीय संस्कार

(B) न्याय-योग

(C) आत्म तत्व

(D) सांख्य

उत्तर-(C) आत्म तत्व

 

प्रश्‍न 15. विजय भट्टारिका किसकी पत्नी थी ?

(A) चन्द्रादित्य

(B) चन्द्रगुप्त

(C) चन्द्रकिशोर

(D) अच्युत राय

उत्तर-(A) चन्द्रादित्य

 

प्रश्‍न 16. पण्डिता क्षमाराव द्वारा रचित ‘सत्याग्रह गीता‘ किसके दर्शन द्वारा प्रभावित है ?

(A) महात्मा गाँधी

(B) जवाहर लाल नेहरू

(C) रानी लक्ष्मीबाई

(D) इन्दिरा गाँधी

उत्तर-(A) महात्मा गाँधी

 

Chapter 4 संस्कृतसाहित्ये लेखिका: Subjective Questions

(संस्कृत साहित्य की लेखिकाएँ)

 

लघु-उत्तरीय प्रश्‍नोत्तर (20-30 शब्‍दों में) ____दो अंक स्‍तरीय

प्रश्‍न 1. उपनिषद् में नारियों के योगदान काउल्लेख करें। (2018C)

उत्तर- वृहदारण्यकोपनिषद् में याज्ञवल्क्य की पत्नी मैत्रेयी की दार्शनिकरुचि का वर्णन है। जनक की सभा में गार्गी प्रसिद्ध थी।

 

प्रश्‍न 2. संस्कृतसाहित्ये लेखिकाः पाठ से हमें क्या संदेश मिलता है?

उत्तर- इस पाठ के द्वारा संस्कृत साहित्य के विकास में महिलाओं के योगदान के बारे में ज्ञात होता है। वैदिक युग से आधुनिक समय तक ऋषिकाएँ, कवयित्री, लेखिकाएँ संस्कृत साहित्य के संवर्धन में अतुलनीय सहभागिता प्रदान करती रही हैं। संस्कृत लेखिकाओं की सुदीर्घ परम्परा है। संस्कृत भाषा के समृद्धि में पुरुषों के समान महिलाएँ भी चलती रही हैं।

 

प्रश्‍न 3. विजयनगर राज्य में संस्कृत भाषा की क्या स्थिति थी? तीन वाक्यों में उत्तर दें। (2012C)

उत्तर- विजयनगर के सम्राट् संस्कृत भाषा के संरक्षण के लिए किए गए प्रयास बहुत ही सराहनीय है। उनके अन्तःपुर में भी संस्कृत रचना में कुशल रानियाँ थीं। महारानी विजयभट्टारिका ने बहुत सारे संस्‍कृत साहित्‍य की रचना की।

 

प्रश्‍न 4. ‘संस्कृतसाहित्ये लेखिकाः’ पाठ में लेखक ने क्या विचार व्यक्त किए हैं?

उत्तर- ‘संस्कृतसाहित्येलेखिकाः’ पाठ में लेखक का विचार है कि प्राचीन काल से लेकर आज तक महिलाओं ने संस्कृतसाहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। दक्षिण भारत की महान साहित्यकार महिलाओं ने भी संस्कृत साहित्य को समृद्ध बनाया।

 

प्रश्‍न 5. संस्कृत में पण्डिता क्षमाराव के योगदान का वर्णन करें। (2018A)

उत्तर- संस्कृतसाहित्य में आधुनिक समय की लेखिकाओं में पण्डिता क्षमाराव अति प्रसिद्ध हैं। शंकरचरितम् उनकी अनुपम रचना है। गाँधी दर्शन से प्रभावित होकर उन्होंने सत्याग्रहगीता, मीरालहरी, कथामुक्तावली, ग्रामज्योति, विचित्रपरिषद् यात्रा आदि रचनाएँ की हैं।

 

प्रश्‍न 6. संस्कृतसाहित्य में दक्षिण भारतीय महिलाओं के योगदानों का वर्णन करें।

उत्तर- चालुक्यवंश की महारानी विजयभट्टारिका ने लौकिक संस्कृतसाहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। लगभग चालीस दक्षिण भारतीय महिलाओं ने एक सौ पचास संस्कृत-काव्यों की रचना की है। इन महिलाओं में गंगादेवी, तिरुमलाम्बा, शीलाभट्टारिका, देवकुमारिका, रामभद्राम्बा आदि प्रमुख हैं।

 

प्रश्‍न 7. संस्कृतसाहित्य में आधुनिक समय के लेखिकाओं के योगदानों की चर्चा करें।

उत्तर- संस्कृतसाहित्य में आधुनिक समय की लेखिकाओं में पण्डिता क्षमाराव अति प्रसिद्ध हैं। उन्होंने शंकरचरितम्, सत्याग्रहगीता, मीरालहरी, कथामुक्तावली, विचित्र-परिषद् यात्रा, ग्रामज्योति इत्यादि अनेक गद्य-पद्य ग्रन्थों की रचना की। वर्तमान काल में लेखनरत कवत्रियों में पुष्पा दीक्षित, वनमाला भवालकर, मिथिलेश कुमारी मिश्र आदि प्रतिदिन संस्कृत साहित्य को समृद्ध कर रही है।

 

प्रश्‍न 8. संस्कृत साहित्य के संवर्धन में महिलाओं के योगदान का वर्णन करें। (2015A, 2016C)

उत्तर- वैदिककाल से महिलाओं ने संस्कृत साहित्य की रचना एवं संरक्षण में काफी योगदान दिया है। ऋग्वेद में चौबीस और अथर्ववेद में पाँच महिलाओं का योगदान है। यमी, अपाला, उर्वशी, इन्द्राणी और वागाम्भृणी मंत्रों की दर्शिकाएँ थीं। गंगादेवी, तिरुमलाम्बा, शीलाभट्टारिका, देवकुमारिका आदि दक्षिण की महिलाओं ने भी साहित्य की रचना में योगदान दिया है। पंडिता क्षमाराव, पुष्पादीक्षित, वनमाला भवालकर आदि जैसी अनेक आधुनिक महिलाओं ने भी अपना योगदान दिया है। इस प्रकार, भारत में हमेशा संस्कृत साहित्य में महिलाओं का योगदान रहा है।

 

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5. भारतमहिमा (भारत की महिमा)

5. भारतमहिमा (भारत की महिमा)

 

पाठ परिचय- इस पाठ ‘भारत महिमा’ में भारत के महत्व के वर्णन से सम्बद्ध पुराणों के दो पद्य तथा तीन आधुनिक पद्य दिये गये हैं। हमारे देश भारत वर्ष को प्राचीन काल से इतना महत्व दिया गया था कि देवगण भी यहाँ जन्म लेने के लिए तरसते थे। इसकी प्राकृतिक सुषमा अनेक प्रदूषणकारी तथा विध्वंसक क्रियाओं के बाद भी अनुपम है। इसका निरूपण इन पद्यों में प्रस्तुत है।

 

5. भारतमहिमा (भारत की महिमा)

महिमा- बड़ाई, गौरव

 

(अस्माकं देशः भारतवर्षमिति कथ्यते। अस्य महिमा सर्वत्र गीयते। पाठेऽस्मिन विष्णुपुराणात् भागवतपुराणात् च प्रथमं द्वितीयं च क्रमशः पद्यं गृहीतमस्ति। अवशिष्टानि पद्यान्यध्यक्षेण निर्मीय प्रस्तावितानि। भारतं प्रति भक्तिरस्माकं कर्तव्यरूपेण वर्तते।)

हमारे देश को भारतवर्ष कहा जाता है। इसकी महिमा सब जगह गायी जाती है। इस पाठ में विष्णुपुराण और भागवत पुराण से क्रमशः प्रथम और द्वितीय पद्य लिया गया है। बचे अन्य पदों को निर्माण कर प्रस्तुत किये गये हैं। भारत के प्रति भक्ति हमारा कर्तव्य है।

 

गायन्ति देवाः किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे।

स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात्।।

 

 

अर्थ- देवता लोग गीत गाते हुए कहते हैं कि वे लोग धन्य हैं, जिनका जन्म भारत देश में होता है। यह भूमि स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करने योग्य साधन-स्वरूप है। इसलिए यहाँ जन्म लेनेवाले को देवता के समान कहा गया है।

 

व्याख्या- प्रस्तुत श्लोक ‘विष्णुपुराण‘ से संकलित तथा ‘भारतमहिमा‘ पाठ से उद्धृत है। इसमें भारत देश की विशेषताओं के बारे में कहा गया है।

 

यह देश धरती पर स्वर्ग के समान माना जाता है। पुराणकार का कहना है कि यह भूमि स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करने वाली है। यहाँ जन्म लेनेवाले देवतुल्य माने जाते हैं क्योंकि यहाँ राम-कृष्ण जैसे देवताओं ने जन्म ग्रहण कर यह सिद्ध कर दिया है। इसलिए इस देश में जन्म लेनेवाले को देवता रूप में माना जाता है।

 

अहो अमीषां किमकारि शोभनं

प्रसन्न एषां स्विदुत स्वयं हरिः ।

यैर्जन्म लब्धं नृषु भारताजिरे

मुकुन्दसेवौपयिकं स्पृहा हि नः ।।

 

अर्थ- देवता लोग इस देश के गुण-गान करते हुए कहते हैं कि अहो! ईश्वर के द्वारा कितना सुदंर बनाया गया, जिससे मनुष्य भारत भूमि पर हरि के सेवा योग्य बन जाता है। मेरी भी इच्छा भारत भूमि पर जन्म लेने को है। अर्थात् जिस पर ईश्वर की कृपा होती है, वहीं भारत भूमि पर जन्म लेते हैं।

 

व्याख्या- प्रस्तुत श्लोक ‘भागवतपुराण‘ से संकलित तथा ‘भारतमहिमा‘ पाठ से उद्धृत है। इसमें भारत देश की महानता के बारे में कहा गया है।

 

पुराणकार का कहना है कि भारत ही ऐसा देश है जहाँ भगवान भी जन्म लेने की इच्छा प्रकट करते हैं। इस देश में जन्म लेनेवाले मनुष्य धन्यवाद के पात्र होते हैं क्योंकि श्रीहरी के सेवा के इच्छुक होते हैं। जिन लोगों ने यहाँ जन्म लिया, उनमें स्वयं भगवान भी हैं इन्हीं विशेषताओं के कारण देवता इस देश के गुणगान करते हैं।

 

 

इयं निर्मला वत्सला मातृभूमिः

प्रसिद्धं सदा भारतं वर्षमेतत्।

विभिन्ना जना धर्मजातिप्रभेदै-

रिहैकत्वभावं वहन्तो वसन्ति।।

 

अर्थ- यह भारत वर्ष प्रसिद्ध है। यह भारत भूमि हमेशा पवित्र और ममतामयी है। यहाँ भिन्न-भिन्न धर्म जाति के लोग भेद किये बिना एकता के भाव में रहते हैं।

 

व्याख्या- प्रस्तुत श्लोक ‘भारतमहिमा‘ पाठ से उद्धृत है। इसमें भारत देश की विशेषताओं के बारे में कहा गया है।

 

विद्धानों का कहना है कि भारत ही ऐसा देश है जहाँ विभिन्न जाति के लोग आपस में मिलजुल कर एकता का परिचय देते हैं। यहाँ के निवासियों ने शत्रुओं के साथ मित्रता का व्यवहार किया है। भिन्न-भिन्न जाति, धर्म, सम्प्रदाय के होते हुए भी सभी भाई-भाई के समान एक साथ रहते हैं।

 

विशालास्मदीया धरा भारतीया

सदा सेविता सागरै रम्यरूपा।

वनैः पर्वतैर्निर्झरैर्भव्यभूति-

र्वहन्तीभिरेषा शुभा चापगाभिः ।।

 

अर्थ- हमारी भारत भूमि विशाल, मनोहर तथा बहुत सुंदर ऐश्वर्य वाली है। यह सागरों, वनों, पर्वतों, झरनों और बहती हुई नदियों से हमेशा सुशोभित है।

 

व्याख्या- प्रस्तुत श्लोक ‘भारतमहिमा‘ पाठ से लिया गया है। इसमें भारत की विशालता एवं प्राकृतिक संपदा के संबंध में प्रकाश डाला गया है।

 

 

भारत एक विशाल देश है। इसके उत्तर में हिमालय पर्वत प्रहरी के समान है, दक्षिण में हिन्द महासागर पाँव पखार रहा है। गंगा, यमुना तथा बह्मपुत्र जैसी नदियाँ अपने जल से यहाँ की भूमि सींचती है, तो वनों से मुल्यवान लकड़ीयाँ एवं फल-फूल प्राप्त होते हैं। अतः भारत देश सभी प्राकृतिक संपदाओं से परिपूर्ण है।

 

जगद्गौरवं भारतं शोभनीयं

सदास्माभिरेतत्तथा पूजनीयम्।

भवेद् देशभक्तिः समेषां जनानां

परादर्शरूपा सदावर्जनीया।।

 

अर्थ- यह भारत देश शोभनीय और संसार का गौरव है और यह भूमि हमलोगों के द्वारा हमेशा पूजनीय है। यहाँ के सभी लोगों की देशभक्ति सदैव आकर्षणीय, श्रेष्ठ और आदर्श स्वरूप है।

 

व्याख्या- प्रस्तुत श्लोक ‘भारतमहिमा‘ पाठ से लिया गया है। इसमें देशभक्ति की विशेषता पर प्रकाश डाला गया है।

 

कवि का कहना है कि हमारी देश भक्ति इतनी मधुर है कि विश्व इसके समक्ष नतमस्तक है। हर व्यक्ति में देशभक्ति की तीव्र भावना है। सभी देश की रक्षा के लिए तन-मन-धन से समर्पित है। इसके आर्दश आचरण के कारण हमेशा शोभनिय और पुजनिय है।

 

भारतमहिमा (Objective Questions)

प्रश्‍न 1. गायन्ति देवाः …….. पुरुषाः सुरत्वात्। यह पद्य किस पुराण से उद्दृत है ?

(A) नारद पुराण

(B) विष्णु पुराण

(C) भागवत् पुराण

(D) गरूड़ पुराण

 

उत्तर-(B) विष्णु पुराण

 

प्रश्‍न 2. भारतभूमि कैसी है ?

(A) विशाल

(B) निर्मला

(C) वत्सला

(D) तीनों

 

उत्तर-(D) तीनों

 

प्रश्‍न 3. किसके गीत देवता भी गाते हैं ?

(A) भारतवर्ष के

(B) स्वीडेन के

(C) अमेरिका के

(D) नेपाल के

 

उत्तर-(A) भारतवर्ष के

 

प्रश्‍न 4. भारतमहिमा पाठ के द्वितीय श्लोक किस पुराण से संकलित है ?

(A) विष्णु पुराण से

(B) भागवत पुराण से

(C) पद्म पुराण से

(D) वायु पुराण से

 

उत्तर-(B) भागवत पुराण से

 

प्रश्‍न 5. किस देश में देवता बार-बार जन्म लेना चाहते हैं ?

(A) भारत

(B) नेपाल

(C) भूटान

(D) यूनान

 

उत्तर-(A) भारत

 

लघु-उत्तरीय प्रश्नोनत्तर (20-30 शब्दों में) ____दो अंक स्तेरीय

प्रश्‍न 1. भारत भूमि कैसी है तथा यहाँ किस प्रकार के लोग रहते हैं ?

अथवा, भारत महिमा के अनुसार बतायें कि हमारी मातृभूमि कैसी है?

अथवा, ‘भारतमहिमा’ पाठ के आधार पर भारतभूमि कैसी है? (2012C)

अथवा, हमारी मातृभूमि कैसी है?

उत्तर-भारतवर्ष अति प्रसिद्ध देश है तथा यहाँ की भूमि सदैव पवित्र और ममतामयी है। यहाँ विभिन्न जातियों और धर्मों के लोग एकता के भाव में रहते हैं।

 

प्रश्‍न 2. देवगण भारत के गीत क्यों गाते हैं? पठित-पाठ के आधार पर उत्तर तीन से पाँच वाक्यों में लिखे। (2017A)

उत्तर-देवगण भारत देश का गुणगान करते हैं। क्योंकि, भारतीय भूमि स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त करने का साधन है। मनुष्य भारत भूमि पर जन्म लेकर भगवान हरि की सेवा के योग्य बन जाते हैं।

 

 

प्रश्‍न 3. देवता लोग किस देश का गुणगान करते हैं और क्यों?

उत्तर-देवता लोग भारत देश का गुणगान करते हैं, क्योंकि भारतीय भूमि स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त करने का साधन है। मनुष्य भारत भूमि पर जन्म लेकर भगवान हरि की सेवा के योग्य बन जाते हैं।

 

प्रश्‍न 4. भारतीयों की विशेषताओं का वर्णन करें।

उत्तर-भारत में जन्म लेकर लोग धन्य होते हैं और हरि की सेवा करते हैं। उन्हें स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त होता है। भारतीय धर्म और जाति के भेदभावों को न मानते हुए एकता के भाव से रहते हैं। सभी भारतीयों की देशभक्ति आकर्षक है और दूसरों के लिए आदर्श स्‍वरूप है।

 

प्रश्‍न 5. भारतमहिमा पाठ से हमें क्या संदेश मिलताहै? अथवा, ‘भारतमहिमा’ पाठ से क्या शिक्षा मिलती है ? पाँच वाक्यों में उत्तर दें।                           (2011C)

उत्तर-भारतमहिमा पाठ से यह संदेश मिलता है कि हमें भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए। हम भारतीयों को हरि की सेवा करने का मौका मिला है, और मोक्ष की प्राप्ति का भी अवसर मिला है। हमें देशभक्त होना चाहिए और अन्य भारतीयों से मिल-जुलकर रहना चाहिए।

 

प्रश्‍न 6. भारतमहिमा पाठ का क्या उद्देश्य है?

उत्तर-भारतमहिमा पाठ में पौराणिक और आधुनिक पद्य संकलित हैं, इन सभी पद्यों का उद्देश्य भारत और भारतीयों की विशेषताओं का वर्णन करना है। इनमें भारत की सुंदरता एवं भव्यता और भारतीयों की देशभक्ति आदि की ओर पाठक का ध्यान आकर्षित किया गया है।

 

प्रश्‍न 7. भारत महिमा पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें।

उत्तर-इस पाठ में भारत के महत्त्व के वर्णन से सम्बद्ध पुराणों के दो पद्य तथा तीन आधुनिक पद्य दिए गए हैं। हमारे देश भारतवर्ष को प्राचीन काल से इतना महत्त्व दिया गया है कि देवगण भी यहाँ जन्म लेने के लिए तरसते हैं। इसकी प्राकृतिक सुंदरता अनेक प्रदूषणकारी तथा विध्वंसक क्रियाओं के बाद भी अनुपम है। इसका निरूपण इन पद्यों में प्रस्तुत है।

 

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6. भारतीयसंस्काराः (भारतीयों के संस्कार)

6. भारतीयसंस्काराः (भारतीयों के संस्कार)

 

पाठ परिचय- भारतीय जीवन दर्शन में चौल कर्म (मुण्डन), उपनयन, विवाह आदि संस्कारों की प्रसिद्धि है। छात्रगण संस्कारों का अर्थ तथा उनके महत्व को जान सकें, इसलिए इस स्वतंत्र पाठ को रखा गया है जिससे उन्हें भारतीय संस्कृति के एक महत्वपूर्ण पक्ष का व्यवस्थित परिचय मिल सके ।

 

6. भारतीयसंस्काराः (भारतीयों के संस्कार)

 

(भारतीयसंस्कृतेः अन्यतमं वैशिष्ट्यं विद्यते यत् जीवने इह समये समये संस्कारा अनुष्ठिता भवन्ति। अद्य संस्कारशब्दः सीमितो व्यङ्ग्यरूपः प्रयुज्यते किन्तु संस्कृतेरुपकरणमिदं भारतस्य व्यक्तित्वं रचयति। विदेशे निवसन्तो भारतीयाः संस्कारान् प्रति उन्मुखा जिज्ञासवश्च। पाठेऽस्मिन् तेषां संस्काराणां संक्षिप्तः परिचयो महत्वञ्च निरूपितम्।)

भारतीय संस्कृति की अत्यधिक विशिष्टता है कि इस जीवन में समय-समय पर संस्कारों के अनुष्ठान होते हैं। आज संस्कार शब्द सीमित होकर व्यंग्य रूप में प्रयोग किए जाते हैं किन्तु संस्कृति के रूप में यह भारत के व्यक्त्वि की रचना करता है। विदेश में बसे भारतीय लोग संस्कारों के प्रति उन्मुख जिज्ञासु हैं। इस पाठ में संस्कारों का संक्षिप्त परिचय और महत्व निरूपित किये गये हैं।

 

भारतीयजीवने प्राचीनकालतः संस्काराः महत्‍वमधारयन्। प्राचीनसंस्कृतेरभिज्ञानं संस्कारेभ्यो जायते। अत्र ऋषीणां कल्पनासीत् यत् जीवनस्य सर्वेषु मुख्यावसरेषु वेदमन्त्राणां पाठः, आशीर्वादः, होमः, परिवारसदस्यानां सम्मेलनं च भवेत्।

भारतीय जीवन में प्राचीन काल से ही संस्कारों के महत्व को धारण किये हुए हैं। प्राचीन संस्कृति का ज्ञान संस्कार से होता है। यहाँ ऋषियों की कल्पना थी कि जीवन के सभी मुख्य अवसरों पर वेदमंत्रों का पाठ, बड़े लोगों का आशीर्वाद , हवन और परिवार के सदस्यो का सम्मेलन होना चाहिए।

 

 

तत् सर्वं संस्काराणामनुष्ठाने संभवति। एवं संस्काराः महत्‍वं धारयन्ति। किञ्च संस्कारस्य मौलिकः अर्थः परिमार्जनरूपः गुणाधानरूपश्च न विस्मर्यते। अतः संस्काराः मानवस्य क्रमशः परिमार्जने दोषापनयने गुणाधाने च योगदानं कुर्वन्ति।

ऐसा सभी संस्कार के अवसर पर ही संभव है। इस प्रकार संस्कार के महत्व को धारण करता है। किन्तु संस्कार का मौलिक अर्थ शुद्ध होना और गुणों का ग्रहण करना, रूप को नही भूलना चाहिए। इसलिए सभी संस्कार मानव के क्रम से शुद्ध करने में, दोषों को दूर करने में और गुणों को ग्रहण करने में योगदान करता है।

 

संस्काराः प्रायेण पञ्चविधाः सन्ति- जन्मपूर्वास्त्रयः, शैशवाः षट्, शैक्षणिकाः पञ्च, गृहस्थसंस्कारः विवाहरूपः एकः, मरणोत्तरसंस्कारश्चैकः। एवं षोडश संस्काराः भवन्ति।

संस्कार प्रायः पाँच प्रकार के हैं- जन्म से पूर्व तीन, बचपन में छः, शिक्षा काल में पाँच, गृहस्थ जीवन में संस्कार विवाह रूप एक और मरने के बाद एक संस्कार है। इस प्रकार सोलह संस्कार होते हैं।

 

 

जन्मपूर्वसंस्कारेषु गर्भाधानं पुंसवनं सीमन्तोनयनं चेति त्रयो भवन्ति। अत्र गर्भरक्षा, गर्भस्थस्य संस्कारारोपणम्, गर्भवत्याश्च प्रसन्नता चेति प्रयोजनं कल्पितमस्ति। शैशवसंस्कारेषु जातकर्म, नामकरणम्, निष्क्रमणम्, अन्नप्राशनम्, चूडाकर्म, कर्णवेधश्चेति क्रमशो भवन्ति।

जन्म से पूर्व के संस्कारों में गर्भाधान, पुंसवन और सीमांत ये तीन होते हैं। यहाँ गर्भ रक्षा, गर्भस्थ शिशु का संस्कार विधान और गर्भवती स्त्री की प्रसन्नता के लिए ये सब आयोजन किये जाते हैं। बचपन के संस्कारों में जातकर्म, नामकरण, बाहर निकलना, अन्न-ग्रहण, चूडाकर्म और कर्णवेध – ये सब क्रम से होते हैं।

 

शिक्षासंस्कारेषु अक्षरारम्भः, उपनयनम्, वेदारम्भः, केशान्तः समावत्तञ्चेति संस्काराः प्रकल्पिताः। अक्षरारम्भे अक्षरलेखनम् अंकलेखनं च शिशुः प्रारभते। उपनयनसंस्कारस्य अर्थः गुरुणा शिष्यस्य स्व गृहे नयनं भवति। तत्र शिष्यः शिक्षानियमान् पालयन् अध्ययनं करोति। ते नियमाः बह्मचर्यव्रते समाविष्टाः।

शिक्षा संस्कारों में अक्षराम्भ, उपनयन, वेदारम्भ, केशान्त और समापवर्तन संस्कार होते हैं। अक्षराम्भ में अक्षर-लेखन और अंक-लेखन बच्चा आरम्भ करता है। उपनयन संस्कार का अर्थ गुरू के द्वारा शिष्य को अपने घर में लाना होता है। वहाँ शिष्य शिक्षा नियमों का पालन करते हुए अध्ययन करते हैं। तथा ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हैं।

 

प्राचीनकाले शिष्यः ब्रह्मचारी इति कथ्यते स्म। गुरुगृहे एव शिष्यः वेदारम्भं करोति स्म। वेदानां महत्‍वं प्राचीनशिक्षायाम् उत्कृष्टं मन्यते स्म। केशान्तसंस्कारे गुरुगृहे एव शिष्यस्य प्रथमं क्षौरकर्म भवति स्म। अत्र गोदानं मुख्यं कर्म। अतः साहित्यग्रन्थेषु अस्य नामान्तरं गोदानसंस्कारोऽपि लभ्यते।

प्राचीन काल में शिष्य को ब्रह्मचारी कहा जाता था। गुरू के घर में ही शिष्य वेदारम्भ करते थे। वेदों का महत्व प्राचीन शिक्षा में श्रेष्ठ माना जाता था। केशान्त संस्कार में गुरू के घर में ही शिष्य का प्रथम मुण्डन होता था। इसमें गोदान मुख्य कर्म होता था। अतः साहित्य ग्रंथों में इसका दूसरा नाम गोदान संस्कार भी मिलता है।

 

समापवर्त्तनसंस्कारस्योद्देश्यं शिष्यस्य गुरुगृहात् गृहस्थजीवने प्रवेशः। शिक्षावसाने गुरुः शिष्यान् उपदिश्य गृहं प्रेषयति। उपदेशेषु प्रायेण जीवनस्य धर्माः प्रतिपाद्यन्ते। यथा- सत्यं वद, धर्मं चर, स्वाध्यायान्मा प्रमदः इत्यादि।

समापवर्तन संस्कार का उद्देश्य शिष्य का गुरू के घर से अलग होकर गृहस्थ जीवन में प्रवेश करना होता था। शिक्षा की समाप्ति पर गुरू शिष्यां को उपदेश देकर भेजते थे। उपदेशों में प्रायः जीवन के कर्तव्यों को बताया जाता था। जैसे- सत्य बोलो, धर्म का आचरण करो, अपनी विद्वता पर घमंड मत करो इत्यादि।

 

 

विवाहसंस्कारपूर्वकमेव मनुष्यः वस्तुतो गृहस्थजीवनं प्रविशति। विवाहः पवित्रसंस्कारः मतः यत्र नानाविधानि कर्मकाण्डानि भवन्ति। तेषु वाग्दानम्, मण्डपनिर्माणम्, वधूगृहे वरपक्षस्य स्वागतम्, वरवध्वोः परस्परं निरीक्षणम्, कन्यादानम्, अग्निस्थापनम्, पाणिग्रहणम्, लाजाहोमः, सप्तपदी, सिन्दूरदानम् इत्यादि।

विवाह संस्कार होने के बाद ही व्यक्ति गृहस्थ जीवन आरंभ करता है। विवाह को पवित्र संस्कार माना गया है, इसमें अनेक प्रकार के कर्मकांड होते हैं। उनमें वाक्दान, मण्डपनिर्माण, वधू के घर वरपक्ष का स्वागत, वर-वधू का निरीक्षण, कन्यादान, अग्नि की स्थापना, पाणिग्रहण, धान के लावे से हवन, सप्तपदी, सिन्दूरदान आदि।

 

सर्वत्र समानरूपेण विवाहसंस्कारस्य प्रायेण आयोजनं भवति। तदनन्तरं गर्भाधानादयः संस्काराः पुनरावर्तन्ते जीवनचक्रं च भ्रमति। मरणादनन्तरम् अन्त्येष्टिसंस्कारः अनुष्ठीयते। एवं भारतीयजीवनदर्शनस्य महत्त्वपूर्णमुपादानं संस्कारः इति।

वैवाहिक परंपरा सभी जगह एक जैसा ही है। इसके बाद गर्भाधान संस्कार तथा अन्य संस्कार होते हैं। मृत्यु के बाद दाह-संस्कार किया जाता है। इस प्रकार भारतीय जीवन दर्शन का महत्वपूर्ण स्त्रोत ये संस्कार हैं।

 

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6.भारतीय संस्काराः (Objective Questions)

 

प्रश्‍न 1. शिक्षा संस्कार का प्रथम संस्कार कौन है ?

(A) अक्षरारम्भ

(B) वेदारम्भ

(C) उपनयन

(D) समावर्त्तन

 

उत्तर-(A) अक्षरारम्भ

 

प्रश्‍न 2. चरित्र का निर्माण किससे होता है ?

(A) संस्कारों से

(B) वैर भावना से

(C) अशांति से

(D) इनमें कोई नहीं

 

उत्तर-(A) संस्कारों से

 

प्रश्‍न 3. साहित्य ग्रंथों में केशांत संस्कार का नामान्तर क्या है?

(A) उपनयन

(B) समावर्त्तन

(C) वेदारम्भ

(D) गोदान

 

उत्तर-(D) गोदान

 

प्रश्‍न 4. पाणिग्रहण किस संस्कार में होता है ?

(A) शैक्षणिक संस्कार

(B) शैशव संस्कार

(C) विवाह संस्कार

(D) जन्म से पूर्व संस्कार

 

उत्तर-(C) विवाह संस्कार

 

प्रश्‍न 5. प्राचीन संस्कृति की पहचान किससे होती है ?

(A) धर्मों से

(B) संस्कारों से

(C) कर्मों से

(D) धन से

 

उत्तर-(B) संस्कारों से

 

प्रश्‍न 6. सीमन्तोनयन किस प्रकार की संस्कार है ?

(A) जन्मपूर्व संस्कार

(B) शैशव संस्कार

(C) शैक्षणिक संस्कार

(D) इनमें कोई नहीं

 

उत्तर-(A) जन्मपूर्व संस्कार

 

प्रश्‍न 7. प्राचीन काल में शिष्यों को क्या कहा जाता था ?

(A) छात्र

(B) ब्रह्मचारी

(C) धनुर्धारी

(D) अन्तेवासी

 

उत्तर-(B) ब्रह्मचारी

 

प्रश्‍न 8. जन्मपूर्व कितने संस्कार है ?

(A) षट्

(B) पंच

(C) एकः

(D) त्रयः

 

उत्तर-(D) त्रयः

 

प्रश्‍न 9. सप्तपदी क्रिया किस संस्कार में होती है ?

(A) जातकर्म

(B) निष्क्रमण

(C) विवाह

(D) समावर्त्तन

 

उत्तर-(C) विवाह

 

प्रश्‍न 10. विवाह संस्कार के अंदर क्या नहीं आता है ?

(A) गोदान

(B) वाग्दान

(C) कन्यादान

(D) सिन्दूरदान

 

उत्तर-(A) गोदान

 

प्रश्‍न 11. ‘भारतीय संस्कार‘ कितने हैं ?

(A) 24

(B) 20

(C) 18

(D) 16

 

उत्तर-(D) 16

 

प्रश्‍न 12. बचपन में कितने संस्कार है ?

(A) षट्

(B) पंच

(C) एकः

(D) त्रयः

 

उत्तर-(A) षट्

 

Bihar Board Sanskrit Bhartiya sanskara in hindi

लघु-उत्तरीय प्रश्नो्त्तर (20-30 शब्दों) में) ____दो अंक स्त रीय

 

प्रश्‍न 1. शैक्षणिक संस्कार कौन-कौन से हैं? (2018A)

उत्तर- शैक्षणिकसंस्कार में अक्षरारंभ, उपनयन, वेदारंभ, मुंडन, समावर्त्तनसंस्कार आदि होते हैं।

 

 

प्रश्‍न 2. ‘भारतीयसंस्काराः‘.पाठ के आधार स्पष्ट करें कि संस्कार कितने हैं तथा उनके नाम क्या है ?(2017A)

अथवा, संस्कार कितने प्रकार के हैं और कौन-कौन ?

अथवा, सभी संस्कारों के नाम लिखें। (2018C)

उत्तर- संस्कार कुल सोलह हैं । जन्म से पूर्व तीन हैं- गर्भाधान, पुंसवन और सीमन्तोनयन संस्कार होते हैं। शैशवावस्था में छः संस्कार होते हैं- जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूडाकर्म और कर्णबेध । पाँच शैक्षणिक संस्कारहैं- अक्षरारम्भ, उपनयन, वेदारम्भ, केशान्त और समावर्तन । यौवनावस्था में विवाह संस्कार होता है तथा व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका अन्त्येष्टि संस्कार किया जाता है।

 

प्रश्‍न 3. संस्कार किसे कहते हैं ? विवाह संस्कार का वर्णन करें। पाँच वाक्यों में उत्तर दें। (2012C)

उत्तर- व्यक्ति में गुणों के धारण को संस्कार कहते हैं। संस्कापर का वास्ततविक अर्थ ‘शुद्ध होना’ है। वैसे कुल सोलह संस्कार माने गए हैं। विवाह संस्कार होने पर ही वस्तुतः मनुष्य गृहस्थजीवन में प्रवेश करता है। विवाह एक पवित्र संस्कार है जिसमें अनेक प्रकार के कर्मकाण्ड होते हैं। उनमें वचन देना, मंडप बनाना, वधू के घर वरपक्ष का स्वागत, वर-वधू का एक-दूसरे को देखना, कन्यादान, अग्निस्थापना, पाणिग्रहण, लाजाहोम, सप्तपदी, सिन्दूरदान आदि मुख्य हैं। 

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प्रश्‍न 4. ‘भारतीयसंस्कारा:’ पाठ में लेखक क्या शिक्षा देना चाहता है ?

उत्तर-लेखक इस पाठ से हमें यह शिक्षा देना चाहता है कि संस्कारों के पालन से ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है। संस्कारों का उचित समय पर पालन करने से गुण बढ़ते हैं और दोषों का नाश होता है। भारतीय संस्कृति की विशेषता संस्कारों के कारण ही है। लेखक हमें संस्कारों का पालन करने का संदेश देते हैं।

 

प्रश्‍न 5. भारतीय जीवन में संस्कार का क्या महत्व है?

उत्तर-भारतीय जीवन में प्राचीन काल से ही संस्कार ने अपने महत्व को संजोये रखा है। यहाँ ऋषियों की कल्पना थी कि जीवन के सभी मुख्य अवसरों में वेदमंत्रों का पाठ, बड़ों का आशीर्वाद, हवन एवं परिवार के सदस्यों का सम्मेलन होना चाहिए। संस्कार दोषों को दूर करता है। भारतीयजीवन दर्शन का महत्वपूर्ण स्रोत स्वरूप संस्कार है।

 

प्रश्‍न 6 केशान्त संस्कार को गोदान संस्कार भी कहा जाता है, क्यों? (2018A)

उत्तर- केशान्त संस्कार में गुरु के घर में ही शिष्य का प्रथम क्षौरकर्म (हजामत) होता था। इसमें गोदान मुख्य कर्म था। अतः साहित्यिक ग्रंथों में इसका दूसरा नाम गोदान संस्कार भी प्राप्त होता है।

 

प्रश्‍न 7. ‘भारतीयसंस्काराः’पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें।

उत्तर- ‘भारतीय संस्काराः’पाठ भारतीय संस्कारों का महत्व बताता है। भारतीय जीवन-दर्शन में क्षौरकर्म (मुण्डन), उपनयन, विवाह आदिसंस्कारों की प्रसिद्धि है। छात्रगण संस्कारों का अर्थ तथा उनके महत्त्व को जान सकें, इसलिए इस स्वतंत्र पाठ को रखा गया है। इससे दोष दूर होता है तथा गुण प्राप्त होता है।

 

प्रश्‍न 8. ‘भारतीयसंस्कारा; पाठ के आधार पर बताएं कि संस्कार कितने हैं। तथा जन्मपूर्व संस्कारों का नाम लिखें। (2016C)

उत्तर- भारतीयसंस्कारः पाठ के आधार पर संस्कार 16 प्रकार के होते हैं। जन्मपूर्व संस्कार तीन हैं- गर्भाधान, (2) पुंसवन और (3) सीमान्तोनयन।

 

 

प्रश्‍न 9. ‘भारतीयसंस्काराः’ पाठ में लेखक का क्या विचार है?

उत्तर- भारतीयसंस्कारा: पाठ में लेखक का विचार है कि मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण सुसंस्कार से ही होता है। इसलिए विदेशों में भी सुसंस्कारों के प्रति उन्मुख और जिज्ञासु हैं।

 

प्रश्‍न 10. विवाहसंस्कार का वर्णन करें। अथवा, विवाह संस्कार में कौन-कौन से मुख्य कार्य किये जाते है? (2015A)

अथवा, विवाह संस्कार का वर्णन अपने शब्दों में करें। (2018A)

उत्तर- विवाहसंस्कार से ही लोग गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते हैं। विवाह को एक पवित्र संस्कार माना गया है, जिसमें अनेक प्रकार के कर्मकाण्ड होते हैं। उनमें वाग्दान, मण्डप-निर्माण, वधू के घर में वर पक्ष का स्वागत, वर-वधू का परस्पर निरीक्षण, कन्यादान, अग्निस्थापन, पाणिग्रहण, लाजाहोम, सिन्दुरदान इत्यादि कई कर्मकांड शामिल हैं। सभी क्षेत्रों में समान रूप से विवाहसंस्कार का आयोजन होता है।

 

प्रश्‍न 11. शिक्षासंस्कार का वर्णन करें।

अथवा, शैक्षणिकसंस्कार कितने है ? (2014C)

उत्तर- शिक्षासंस्कारों में अक्षरारंभ, उपनयन, वेदारंभ, मुण्डन संस्कार और समावर्तन संस्कार आदि आते हैं। अक्षरारंभ में बच्चा अक्षर-लेखन और अंक-लेखन आरंभ करता है। उपनयन संस्कार में गुरु के द्वारा शिष्य को अपने घर में लाना होता है। वहाँ शिष्य शिक्षा नियमों का पालन करते हए अध्ययन करते हैं। केशान्त (मुण्डन) संस्कार में गुरु के घर में प्रथम क्षौरकर्म अर्थात् मुण्डन होता है तथा समावर्तन संस्कार का उद्देश्य शिष्य का गुरु के घर से अलग होकर गृहस्थ जीवन में प्रवेश करना होता है।

 

प्रश्‍न 12. भारतीय संस्कार का वर्णन किस रूप में हुआ है ?

उत्तर-भारतीय संस्कृति अनूठी है। जन्म के पूर्व संस्कार से लेकर मृत्यु के बाद अन्त्येष्टि संस्कार तक 16 संस्कारों का अनुपम उदाहरण संसार के अन्य देशों में नहीं है। यहाँ की संस्कृति की विशेषता है कि जीवन में यहाँ समय-समय पर संस्कार किये जाते हैं। आज संस्कार सीमित एवं व्यंग्य रूप में प्रयोग किये जा रहे हैं। संस्कार व्यक्तित्व की रचना करता है। प्राचीन संस्कृति का ज्ञान संस्कार से ही उत्पन्न होता है। संस्कार मानव में क्रमशः परिमार्जन (शुद्धिकरण), दोषों को दूर करने और गुणों के समावेश करने में योगदान करते हैं।

 

प्रश्‍न 13. पठित पाठ के आधार पर भारतीय संस्कारों का वर्णन अपनी मातृभाषा में करें।

उत्तर-भारतीय जीवन में प्राचीनकाल से ही संस्कारों का महत्त्व है। संस्कारों के सम्बन्ध में ऋषियों को कल्पना थी कि जीवन के प्रमुख अवसरों पर वेदमंत्रों का पाठ, गुरुजनों के आशीर्वाद, होम और परिवार के सदस्यों का सम्मेलन होना चाहिए। इन संस्कारों के उद्देश्य हैं मानव जीवन से दुर्गुणों को दूर करना और सद्गुणों का आह्वान करना। जन्म पूर्व तीन- गर्भाधान, पुंसवन और सीमन्तोनयन, संस्कार होते हैं, शैशवावस्था में छ: संस्कार होते हैं-जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूडाकर्म और कर्णवेधा पाँच शैक्षणिक संस्कार हैं- अक्षरारम्भ, उपनयन, वेदारम्भ, केशान्त और समावर्तन । यौवनावस्था में विवाह संस्कार होता है तथा व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका अन्त्येष्टि संस्कार किया जाता है। इस प्रकार भारतीय जीवन में कुल सोलहसंस्कारों का प्रावधान किया गया है। 

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प्रश्‍न 14. “संस्काराः प्राय: पञ्चविधाःसन्ति। जन्मपूर्वाः त्रयः। शैशवाः षट्, शैक्षणिकाः पञ्च, गृहस्थ-संस्कार-विवाहरूपःएकः मरणोत्सर संस्कारश्चैकः।”

(i) यह उक्ति किस पाठ की है?

(ii) जन्मपूर्व संस्कार कितने हैं?

(iii) ‘गृहस्थ-संस्कार’ कौन हैं? (2016A)

उत्तर-(i) यह उक्ति भारतीयसंस्कारा: पाठ की है।

(ii) जन्मपूर्व संस्कार तीन हैं।

(iii) ‘गृहस्थ-संस्कार’ विवाह है।

 

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7. नीतिश्लोकाः (नीति संबंधी श्लोक)

7. नीतिश्लोकाः (नीति संबंधी श्लोक)

 

पाठ परिचय- इस पाठ में व्यास रचित महाभारत के उद्योग पर्व के अन्तर्गत आठ अध्यायों की प्रसिद्ध विदुरनीति से संकलित दस श्लोक हैं। महाभारत युद्ध के आरम्भ में धृतराष्ट्र ने अपनी चित्तशान्ति के लिए विदुर से परामर्श किया था। विदुर ने उन्हें स्वार्थपरक नीति त्याग कर राजनीति के शाश्वत पारमार्थिक उपदेशक दिये थे। इन्हें ‘विदुरनीति‘ कहते हैं। इन श्लोकों में विदुर के अमूल्य उपदेश भरे हुए हैं।

 

#Niti_sloka #class10_sanskrit_chapter_7

(अयं पाठः सुप्रसिद्धस्य ग्रन्थस्य महाभारतस्य उद्योगपर्वणः अंशविशेष (अध्यायाः 33-40) रूपायाः विदुरनीतेः संकलितः। युद्धम् आसन्नं प्राप्य धृतराष्ट्रो मन्त्रिप्रवरं विदुरं स्वचित्तस्य शान्तये कांश्चित् प्रश्नान् नीतिविषयकान् पृच्छति। तेषां समुचितमुत्तरं विदुरो ददाति। तदेव प्रश्नोत्तररूपं ग्रन्थरत्नं विदुरनीतिः। इयमपि भगवद्गीतेव महाभारतस्यङ्गमपि स्वतन्त्रग्रन्थरूपा वर्तते।)

यह पाठ सुप्रसिद्ध ग्रन्थ महाभारत के उद्योगपर्व के अंश विशेष (अध्याय 33-40) रूप में विदुरनीति से संकलित है। युद्ध निकट पाकर धृतराष्ट्र ने मंत्री श्रेष्ठ विदुर को अपने चित की शन्ति के लिए कुछ प्रश्न पुछे। पूछे गये प्रश्नों का उत्तर विदुरनीति देते हैं। वहीं प्रश्नोत्तर रूप ग्रन्थरत्न विदुरनीति है। यह भी भगवद् गीता की तरह महाभारत का अंग स्वतंत्र ग्रन्थ रूप में है।

 

 

यस्य कृत्यं न विघ्नन्ति शीतमुष्णं भयं रतिः।

समृद्धिरसमृद्धिर्वा स वै पण्डित उच्यते।। 1।।

 

जिसके कर्म को शर्दी, गर्मी, भय, भावुकता, समपन्नता अथवा विपन्नता बाधा नहीं डालता है, उसे ही पंडित कहा गया है।

 

तत्वज्ञः सर्वभूतानां योगज्ञः सर्वकर्मणाम् ।

उपायज्ञो मनुष्याणां नरः पण्डित उच्यते ।। 2।।

 

सभी जीवों के आत्मा के रहस्य को जानने वाले, सभी कर्म के योग को जानने वाले और मनुष्यों में उपाय जानने वाले व्यक्ति को पंडित कहा जाता है।

 

अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहुभाषते ।

अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधमः ।। 3।।

 

 

जो व्यक्ति बिना बुलाए किसी के यहाँ जाता है, बिना पूछे बोलता है और अविश्वासीयों पर विश्वास कर लेता है, उसे मुर्ख कहा गया है।

 

एको धर्मः परं श्रेयः क्षमैका शान्तिरुत्तमा।

विद्यैका परमा तृप्तिः अहिंसैका सुखावहा ।। 4।।

 

एक ही धर्म सबसे श्रेष्ठ है। क्षमा शांति का उतम उपाय है। विद्या से संतुष्टि प्राप्त होती है और अहिंसा से सुख प्राप्त होती है।

 

 

 

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः ।

कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत् त्रयं त्यजेत् ।। 5 ।।

 

नरक के तीन द्वार है- काम, क्रोध और लोभ। इसलिए इन तीनों को त्याग देना चाहिए।

 

षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता ।

निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता ।। 6 ।।

 

एश्वर्य चाहने वाले व्यक्ति को निद्रा (अधिक सोना), तन्द्रा (उंघना), डर, क्रोध, आलस्य और किसी काम को देर तक करना । इन छः दोषों को त्याग देना चाहिए।

 

सत्येन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते ।

मृजया रक्ष्यते रूपं कुलं वृत्तेन रक्ष्यते ।। 7।।

 

सत्य से धर्म की रक्षा होती है। अभ्यास से विद्या की रक्षा होती है। श्रृंगार से रूप की रक्षा होती है। अच्छे आचरण से कुल (परिवार) की रक्षा होती है।

 

 

सुलभाः पुरुषा राजन् सततं प्रियवादिनः ।

अप्रियस्य तु पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः ।। 8।।

 

हे राजन! सदैव प्रिय बोलने वाले और सुनने वाले पुरूष आसानी से मिल जाते हैं, लेकिन अप्रिय ही सही उचित बोलने वाले कठिन है ।

 

पूजनीया महाभागाः पुण्याश्च गृहदीप्तयः ।

स्त्रियः श्रियो गृहस्योक्तास्तस्माद्रक्ष्या विशेषतः ।। 9।।

 

स्त्रियाँ घर की लक्ष्मी होती हैं। इन्ही से परिवार की प्रतिष्ठा बढ़ती है। यह महापुरूषों को जन्म देनेवाली होती है। इसलिए स्त्रियाँ विशेष रूप से रक्षा करने योग्य होती है।

 

अकीर्तिं विनयो हन्ति हन्त्यनर्थं पराक्रमः ।

हन्ति नित्यं क्षमा क्रोधमाचारो हन्त्यलक्षणम् ।। 10।।

 

विनम्रता बदनामी को दुर करती है, पौरूष या पराक्रम अनर्थ को दुर करता है, क्षमा क्रोध को दुर करता है और अच्छा आचरण बुरी आदतों को दुर करता है। 

Niti sloka class 10 sanskrit chapter 7

 

नीतिश्लोकाः (Objective Questions)

प्रश्‍न 1. परम तृप्ति देने वाली क्या है ?

(A) विद्या

(B) लोभ

(C) क्रोध

(D) दीर्घसूत्रता

 

उत्तर-(A) विद्या

 

प्रश्‍न 2. अपनी उन्नती चाहने वालों को कितने दोषों को त्याग देना चाहिए ?                                 

(A) सात

(B) छः

(C) पाँच

(D) आठ

उत्तर-(B) छः

 

प्रश्‍न 3. नीतिश्लोकाः पाठ किस ग्रंथ से संकलित है ?

(A) विदुरनीति से

(B) नीतिशतक से

(C) चाणक्यनीति दर्पण से

(D) शुक्र नीति से

 

उत्तर-(A) विदुरनीति से

 

प्रश्‍न 4. ‘विदुरनीति‘ किस ग्रंथ का अंश विशेष है ?

(A) रामायण का

(B) महाभारत का

(C) उपनिषद् का

(D) वेद का

 

उत्तर-(B) महाभारत का

 

प्रश्‍न 5. धर्म की रक्षा किससे होती है ?

(A) सत्य से

(B) विद्या से

(C) वृक्ष से

(D) इनमें से कोई नहीं से

 

उत्तर-(A) सत्य से

 

प्रश्‍न 6. नर्क के द्वार कितने प्रकार के हैं, जिनसे व्यक्ति का नाश होता है ?                                 

(A) चार प्रकार के

(B) पाँच प्रकार के

(C) तीन प्रकार के

(D) सात प्रकार के

 

उत्तर-(C) तीन प्रकार के

 

प्रश्‍न 7. विनय को कौन मारता है ?

(A) सुकीर्ति

(B) अपकृति

(C) अकीर्ति

(D) अनाकीर्ति

 

उत्तर-(C) अकीर्ति

 

प्रश्‍न 8. कैसे पुरूष सभी जगह सुलभ होते हैं ?

(A) सत्यवादी

(B) कटुवादी

(C) प्रियवादी

(D) यथार्थवादी

 

उत्तर-(C) प्रियवादी

 

प्रश्‍न 9. किसके प्रश्न उत्तर विदुर देते हैं ?

(A) दुशासन

(B) कृष्ण

(C) अर्जुन

(D) धृतराष्ट्र

 

उत्तर-(D) धृतराष्ट्र

 

लघु-उत्तरीय प्रश्नोजत्तर (20-30 शब्दोंत में) ____दो अंक स्तरीय

प्रश्‍न 1. नीतिश्लोकाः पाठ के आधार पर पण्डित के लक्षण बताएँ ?                                              (2018A)

उत्तर- जिसके कर्म को शर्दी, गर्मी, भय, भावुकता, समपन्नता अथवा विपन्नता बाधा नहीं डालता है, उसे ही पंडित कहा गया है तथा सभी जीवों के आत्मा के रहस्य को जानने वाले, सभी कार्यों को जानने वाला और मनुष्यों के उपाय को जानने वाले व्यक्ति को पंडित कहा जाता है।

 

प्रश्‍न 2. अपनी प्रगति चाहनेवाले को क्या करना चाहिए? (2018A)

उत्तर-अपनी प्रगति चाहनेवाले को निद्रा, तंद्रा, भय, क्रोध, आलस और देर से काम करने की आदत को त्याग देना चाहिए ।

 

 

प्रश्‍न 3. नीतिश्लोकाः पाठ के आधार पर मुर्ख का लक्षण लिखें।                                                (2018C)

उत्तर- ‘नीतिश्लोकाः’ पाठ में महात्मा विदुर ने मूर्ख मनुष्य के तीन लक्षण बतलाए हैं। ऐसा व्यक्ति जो बिना बुलाए आता है तथा बिना पूछे ही अधिक बोलता है और अविश्वासी पर विश्वास करता है।

 

प्रश्‍न 4. ‘नीतिश्लोकाः‘ पाठ में नरक के कितने द्वार हैं? उसका नाम लिखें।

उत्तर- ‘नीतिश्लोका:’ पाठ के आधार पर नरक के तीन द्वार हैं – काम, क्रोध और लोभ।

 

प्रश्‍न 5. नरकस्य त्रिविधं द्वारं कस्य नाशनम् ? हिन्दी में उत्तर दें।                                              (2014A)

उत्तर- नरक जाने के तीन रास्ते हैं- काम, क्रोध तथा लोभ। इनसे आत्मा नष्ट हो जाती है। इन तीनों को छोड़ देना चाहिए।

 

प्रश्‍न 6. नीतिश्लोकाः पाठ के अनुसार कौन-सा तीन वस्तु त्याग देना चाहिए ? (2013A)

उत्तर-नीतिश्लोक पाठ के अनुसार नरक के तीन द्वार काम, क्रोध और लोभ हैं। इसे त्याग देना चाहिए।

 

प्रश्‍न 7. नीच मनुष्य कौन है? पठित पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।

उत्तर- जो बिना बुलाये हुए प्रवेश करता है, बिना पूछे हुए बहुत बोलता है, अविश्वा्सी पर विश्वास करता है ऐसा पुरुष ही नीच श्रेणी में आता है।

 

प्रश्‍न 8. ‘नीतिश्लोकाः‘ पाठ के आधार पर स्त्रियों की क्या विशेषताएँ हैं?

उत्तर- स्त्रियाँ घर की लक्ष्मी हैं। ये पूजनीय तथा महाभाग्यशाली हैं। ये महापुरूषों को जन्म  देनेवाली होती है। इसलिए स्त्रियाँ विशेष रूप से रक्षा करने योग्य होती हैं ।

 

प्रश्‍न 9. नीतिश्लोकाः के आधार पर कैसा बोलने वाले व्यक्ति कठिन से मिलते हैं?

उत्तर- नीतिश्लोकाः पाठ में कहा गया है कि सत्य (कल्याणकारी) लेकिन अप्रिय बातों को कहनेवाले और सुननेवाले व्यक्ति इस संसार में बड़ी कठिनाई से मिलते हैं।

 

प्रश्‍न 10. ‘नीतिश्लोकाः‘ पाठ के आधार पर नराधम के लक्षण लिखें ।                                      (2012C)

उत्तर- बिना बुलाए हुए प्रवेश करता है, बिना पूछे हुए बहुत बोलता है, अविश्वसनीय व्यक्ति पर विश्वास करता है। ये नराधम के लक्षण हैं। अर्थात् मनुष्यों में नीच होते हैं।

 

प्रश्‍न 11. ‘नीतिश्लोकाः‘ पाठ के आधार पर सुलभ और दुर्लभ कौन है ?

उत्तर- सदा प्रिय बोलनेवाले, अर्थात जो अच्छा लगे वही बोलनेवाले मनुष्य सुलभ हैं। अप्रिय ही सही उचित वचन बोलने वाले तथा सुननेवाले मनुष्य दोनों ही प्रायःदुर्लभ हैं।

 

प्रश्‍न 12. ‘नीतिश्लोकाः‘ पाठ में मुढचेता नराधम किसे कहा गया है? (2011A, 2014A)

उत्तर-जिन व्यक्तियों का स्वाभिमान मरा हुआ होता है, जो बिना बुलाए किसी के यहाँ जाता है, बिना कुछ पूछे बक-बक करता है। जो अविश्वसनीय पर विश्वास करता है ऐसा मूर्खहृदयवाला मनुष्यों में नीच होता है। अर्थात् ऐसे ही व्यक्ति को ‘नीतिश्लोकाः’ पाठ में मूढचेता नराधम कहा गया है।

 

 

प्रश्‍न 13. ‘नीतिश्लोकाः‘ पाठ से हमें क्या संदेश मिलता है?

उत्तर- ‘नीतिश्लोकाः’ पाठ महात्माविदुर-रचित ‘विदुर-नीति’ से उद्धृत है। इसमें महाभारत से लिया गया चित्त को शांत करनेवाला आध्यात्मिक श्लोक हैं। इन श्लोकों में जीवन के यथार्थ पक्ष का वर्णन किया गया है। इससे संदेश मिलता है कि सत्य ही सर्वश्रेष्ठ है। सत्य मार्ग से कभी विचलित नहीं होना चाहिए ।

 

प्रश्‍न 14. ‘नीतिश्लोकाः पाठ के आधार पर मनुष्य के षड् दोषों का हिन्दी में वर्णन करें।

अथवा, अपना विकास चाहने वाले को किन-किन दोषों को त्याग देना चाहिए?

अथवा, छ: प्रकार के दोष कौन हैं? पठित पाठ के आधार पर वर्णन करें। (2016A, 2012A, 2014C)

उत्तर-मनुष्य के छ: प्रकार के दोष निद्रा, तन्द्रा, भय, क्रोध, आलस्य तथा दीर्घसूत्रता ऐश्वर्य (विकास) प्राप्ति में बाधक बननेवाले होते हैं। जो पुरुष ऐश्वर्य चाहते हैं। उन्हें इन दोषों को त्याग देना चाहिए।

 

प्रश्‍न 15. ‘नीतिश्लोकाः‘ पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर-विदुर-नीति से नीतिश्लोकाः पाठ उद्धृत है। इसमें महात्मा विदुर ने मन को शांत करने के लिए कुछ श्लोक लिखे हैं। इन श्लोकों से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सांसारिक सुख थोड़ी देर के लिए है, लेकिन आध्यात्मिक सुख स्थायी है। सुंदर आचरण से हम बुरे आचरण को समाप्त कर सकते हैं। काम, क्रोध, लोभ और मोह को नष्ट करके नरक जाने से बच सकते हैं।

 

प्रश्‍न 16.नीतिश्लोकाः पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें।

उत्तर- इस पाठ में व्यासरचित महाभारत के उद्योग पर्व के अंतर्गत विदुरनीति से संकलित दस श्लोक हैं। महाभारत युद्ध के आरंभ में धृतराष्ट्र ने अपनी चित्त  शान्ति के लिए विदुर से परामर्श किया था। विदुर ने उन्हें स्वार्थपरक नीति त्याग कर राजनीति के शाश्वत (जो कभी न बदले) पारमार्थिक (जो हमेशा एकरूप और एकरस रहे) उपदेश दिये थे। इन्हें ‘विदुरनीति’ कहते हैं। इन श्लोकों में विदुर के अमूल्य उपदेश भरे हुए हैं।

 

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8. कर्मवीर कथा (कर्मवीर की कहानी)

8. कर्मवीर कथा (कर्मवीर की कहानी)

कर्मवीर- परिश्रमी, कर्तव्य में वीर, कर्मवान

 

 

पाठ परिचय- इस पाठ में एक पुरूषार्थी की कथा है जो निर्धनता एवं दलित जाति में जन्म जैसे विपरित परिवेश में भी रहकर प्रबल इच्छा शक्ति तथा उन्नति की तीव्र कामना के कारण उच्चपद पर पहुँचता है। यह कथा किशोरों में आत्मविश्वास और आत्मसम्मान उत्पन्न करती है, विजय के रथ को प्रशस्त करती है। ऐसे कर्मवीर हमारे आदर्श हैं। 

#Karmaveer_katha_sanskrit

 

(पाठेऽस्मिन् समाजे दलितस्य ग्रामवासिनः पुरुषस्य कथा वर्तते। कर्मवीरः असौ निजोत्साहेन विद्यां प्राप्य महत्पदं लभते, समाजे च सर्वत्र सत्कृतो भवति। कथाया मूल्यं वर्तते यत् निराशो न स्यात्, उत्साहेन सर्वं कर्तुं प्रभवेत्।)

(इस पाठ में समाज में दलित ग्रामवासी पुरूष की कहानी है। कर्मवीर लोग अपने उत्साह से विद्या को पाकर बहुत बड़ा पद को प्राप्त करते हैं। समाज में सब जगह उनका सत्कार होता है। कथा का वास्तविकता है कि मनुष्य को निराश नहीं होना चाहिए। उत्साह से सभी कामों में लगना चाहिए।)

 

अस्ति बिहारराज्यस्य दुर्गमप्राये प्रान्तरे ‘भीखनटोला‘ नाम ग्रामः। निवसन्ति स्म तत्रातिनिर्धनाः शिक्षाविहीनाः क्लिष्टजीवनाः जनाः। तेष्वेवान्यतमस्य जनस्य परिवारो ग्रामाद् बहिःस्थितायां कुट्यां न्यवसत्। कुटी तु जीर्णप्रायत्वात् परिवारजनान् आतपमात्राद् रक्षति, न वृष्टेः।

बिहार राज्य के दुर्गम क्षेत्र में भीखनटोला नामक एक गाँव है। वहाँ बहुत गरीब शिक्षाविहीन, कठिनाई से जीवन जीने वाले लोग निवास करते थे। उन सबों में एक व्यक्ति का परिवार गाँव से बाहर से स्थित कुटियॉ में निवास करता था। झोपड़ी टुटी जैसी थी जो परिवार वालों को केवल धुप से बचाती थी, वर्षा से नहीं।

 

 

परिवारे स्वयं गृहस्वामी, तस्य भार्या तयोरेकः कनीयसी दुहिता चेत्यासन्। तस्माद् ग्रामात् क्रोशमात्रदूरं प्राथमिको विद्यालयः प्रशासनेन संस्थापितः। तत्रैको नवीनदृष्टिसम्पन्नः सामाजिकसामरस्यरसिकः शिक्षकः समागतः। भीखनटोलां द्रष्टुमागतः स कदाचित् खेलनरतं दलितबालकं विलोक्य तस्यापातरमणीयेन स्वभावेनाभिभूतः।

परिवार में स्वयं घर का मालिक, उसकी पत्नी, उसका पुत्र और छोटी बेटी थी। उस गाँव से मात्र एक कोश दुरी पर प्राथमिक विद्यालय सरकार द्वारा स्थापित की गई। वहाँ एक नवीन विचार वाले सामाजिक समरसता के पक्षधर शिक्षक भीखनटोला देखने आए उस शिक्षक ने खेल में मग्न एक प्रमिभासम्पन्न दलित बालक को देखकर प्रभावित हो गए।

 

शिक्षकं बालकमेनं स्वविद्यालयमानीय स्वयं शिक्षितुमारभत। बालकोऽपि तस्य शिक्षणशैल्याकृष्टः शिक्षाकर्म जीवनस्य परमा गतिरिति मन्यमानो निरन्तरमध्यवसायेन विद्याधिगमाय निरतोऽभवत्। क्रमशः उच्चविद्यालयं गतस्तस्यैव शिक्षकस्याध्यापनेन स्वाध्यवसायेन च प्राथम्यं प्राप। 

शिक्षक ने उस बालक को विद्यालय में लाकर पढ़ाना शुरू कर दिए। बालक भी उनकी पढ़ाई से प्रसन्न होकर शिक्षा को जीवन का असली धन मानकर परिश्रमपूर्वक अध्ययन करने लगा। इस प्रकार उच्च विद्यालय में जाने पर शिक्षक के सहयोग तथा अपने परिश्रम के बल पर परीक्षा मे प्रथम स्थान प्राप्त किया।

 

‘छात्राणामध्ययनं तपः‘ इति भूयोभूयः स्वविद्यागुरुणोपदिष्टोऽसौ बालकः पित्रोरर्थाभावेऽपि छात्रवृŸया कनीयश्छात्राणां शिक्षणलब्धेन धनेन च नगरगते महाविद्यालये प्रवेशमलभत। तत्रापि गुरूणां प्रियः सन् सततं पुस्तकालये स्ववर्गे च सदावहितचेतसा अकृतकालक्षेपः स्वाध्यायनिरतोऽभूत्।

पढ़ाई या शिक्षा की प्राप्ति तपस्या है। अपने गुरू से बार-बार उपदेश प्राप्त करने के फलस्वरूप पिता की निर्धनता के बावजूद छात्रवृति के सहारे माध्यमिक परीक्षा के बाद नगर के महाविद्यालय में नामांकन कराया। वहाँ भी शिक्षकों का प्रिय हो गया। हमेशा पुस्तकालय तथा अपने वर्ग में सावधानी पूर्वक मन से बिना समय नष्ट किए हुए पढ़ाई में लग गया।

 

महाविद्यालयस्य पुस्तकागारे बहूनां विषयाणां पुस्तकानि आत्मसादसौ कृतवान्। तत्र स्नातकपरीक्षायां विश्वविद्यालये प्रथमस्थानमवाप्य स्वमहाविद्यालयस्य ख्यातिमवर्धयत्। सर्वत्र रामप्रवेशराम इति शब्दः श्रूयते स्म नगरे विश्वविद्यालयपरिसरे च। नाजानतां पितरावस्य विद्याजन्यां प्रतिष्ठाम्।

महाविद्यालय के पुस्तकालय में अनेक प्रकार के विषयों का अध्ययन करके याद कर लिया। स्नातक के परिक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करके महाविद्यालय की इज्जत बढ़ाई। सभी जगह विश्वविद्यालय में तथा नगर में रामप्रवेश राम सुनाई पड़ता था। पिता को कोई नहीं जानते हुए भी विद्यापुत्र के कारण प्रसिद्ध हो गए।

 

 

वर्षान्तरेऽसौ केन्द्रीयलोकसेवापरीक्षायामपि स्वाध्यवसायेन व्यापकविषयज्ञानेन च उन्नतं स्थानमवाप। साक्षात्कारे च समितिसदस्यास्तस्य व्यापकेन ज्ञानेन, तत्रापि तादृशे परिवारपरिवेशे कृतेन श्रमेणाभ्यासेन च परं प्रीताः अभूवन्।

वर्ष के अन्त में, इन्होंने केन्द्रीय लोकसेवा की परीक्षा में अपने परिश्रम और व्यापक ज्ञान के कारण श्रेष्ठ स्थान प्राप्त किया। साक्षात्कार में समिति के सदस्यों को उनके ज्ञान, आर्थिक स्थिति और कठोर परिश्रम से सभी अति प्रसन्न हुए।

 

अद्य रामप्रवेशरामस्य प्रतिष्ठा स्वप्रान्ते केन्दप्रशासने च प्रभूता वर्तते। तस्य प्रशासनक्षमतां संकटकाले च निर्णयस्य सामर्थ्यं सर्वेषामावर्जके वर्तेते। नूनमसौ कर्मवीरो व्यतीत्य बाधाः प्रशासनकेन्द्रे लोकप्रियः संजातः। सत्यमुक्तम् – उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः।

आज रामप्रवेश राम की प्रतिष्ठा अपने राज्य में और केन्द्र सरकार में बहुत है। उसका प्रशासनिक क्ष्मता और संकटकाल में निर्णय की क्षमता सबों के लिए आकर्षक है। अवश्य यह कर्मवीर बाधाओं को पार कर प्रशासन क्षेत्र में लोकप्रिय हो गया है। सत्य कहा गया है- परिश्रमी व्यक्ति को ही लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। 

#Karmaveer_katha_sanskrit

 

कर्मवीर कथा Objective Questions

प्रश्‍न 1. दलित ग्रामवासी पुरूष की कथा कौन है ?

(A) कर्मवीर कथा

(B) अलस कथा

(C) व्याघ्रपथिक कथा

(D) विश्वशांति

 

उत्तर-(A) कर्मवीर कथा

 

प्रश्‍न 2. ‘उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मीः‘ यह उक्ति किस पाठ से संकलित है ?

(A) कर्मवीर कथा

(B) व्याघ्र पथिक कथा

(C) भारतीय संस्काराः

(D) भारत महिमा

 

उत्तर-(A) कर्मवीर कथा

 

प्रश्‍न 3. कर्मवीर रामप्रवेश राम के परिवार के सदस्यों की कुल संख्या कितनी थी ?

(A) चार

(B) छह

(C) आठ

(D) दस

 

उत्तर-(A) चार

 

प्रश्‍न 4. ‘कर्मवीरकथा‘ समाज के किस वर्ग की कथा है ?

(A) धनी

(B) दलित

(C) कुलीन

(D) अल्पसंख्यक

 

उत्तर-(B) दलित

 

प्रश्‍न 5. भीखनटोला किस प्रांत में है ?

(A) बिहार

(B) उत्तर प्रदेश

(C) मध्य प्रदेश

(D) राजस्थान

 

उत्तर-(A) बिहार

 

प्रश्‍न 6. भिखन टोला देखने कौन आये ?

(A) शिक्षक

(B) राजनेता

(C) छात्र

(D) धार्मिक नेता

 

उत्तर-(A) शिक्षक

 

प्रश्‍न 7. लक्ष्मी किस प्रकार के व्यक्ति के पास आती है ?

(A) बलवान के पास

(B) ज्ञानवान के पास

(C) धूर्त के पास

(D) उद्योगी के पास

 

उत्तर-(D) उद्योगी के पास

 

प्रश्‍न 8. कर्मवीर कौन है ?

(A) रामप्रवेश राम

(B) जीतन राम

(C) बलराम

(D) जय राम

 

उत्तर-(A) रामप्रवेश राम

 

लघु-उत्तरीय प्रश्नोषत्तर (20-30 शब्दों में) ____दो अंक स्ततरीय

प्रश्‍न 1. कर्मवीरकथा का पाँच वाक्यों में परिचय दें।

उत्तर- इस पाठ में एक पुरुषार्थी की कथा है, वह निर्धन एवं दलित जाति में जन्म जैसे विपरीत परिवेश में रहकर भी प्रबल इच्छा शक्ति तथा उन्नति की उत्कट कामना के कारण उच्च पद पर पहुँचता है। यह कथा किशोरों में आत्मविश्वास और आत्मसम्मान उत्पन्न करती है, विजय के पथ को प्रशस्त करती है। ऐसे कर्मवीर हमारे आदर्श हैं।

 

प्रश्‍न 2. रामप्रवेशराम का चरित्र-चित्रण करें।

अथवा, रामप्रवेशराम की जीवनी पर प्रकाश डालें।

अथवा, कर्मवीर कौन था? उनकी सफलता की कहानी पाँच वाक्यों में लिखें।

उत्तर-रामप्रवेशराम ‘कर्मवीरकथा’ का प्रमुख पात्र हैं। इनका जन्म बिहार राज्य अन्तर्गत भीखनटोला में हुआ है। कभी खेलों में संलग्न रहनेवाले रामप्रवेशराम अध्यापक का सान्निध्य पाकर विद्या अध्ययन में जुट गए । गुरु का आशीर्वाद और मेहनत उनकी सफलता की सीढ़ी बनते गये । धन के अभाव के बीच भी उन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा । विद्यालय स्तर से लेकर प्रतियोगिता परीक्षाओं में प्रथम स्थान प्राप्त करते गए । केन्द्रीय लोकसेवा आयोग परीक्षा में उत्तीर्ण होकर उन्होंने समाज के समक्ष अपना आदर्श प्रस्तुत कर दिया। उनकी प्रशासन क्षमता और संकट काल में निर्णायक सामर्थ्य सभी को आकर्षित करते हैं।

 

 

प्रश्‍न 3. कर्मवीरकथा से हमें क्या शिक्षा मिलती है? (2014A)

अथवा, कर्मवीरकथा’ से क्या शिक्षा मिलती है? (2018A)

उत्तर-कर्मवीर शब्द से ही आभास होने लगता है कि निश्चय ही कोई ऐसा कर्मवीर है जो अपनी निष्ठा, उद्यम, सेवाभाव आदि के द्वारा उत्तम पद को प्राप्त किये हुए है। प्रस्तुत पाठ में एक ऐसे ही कर्मवीर की चर्चा है जो अभावग्रस्त जीवन-यापन करते हुए भी स्नेहिल शिक्षक का सान्निध्य पाकर विविध बाधाओं से लड़ता हुआ एक दिन शीर्ष पद को प्राप्त कर लेता है। मनुष्य कीउत्साह ही, निष्ठा, सच्चरित्रता आदि गुण उसे निश्चय ही सफलता की सीढ़ियों पर अग्रसारित करते हैं। अत:, हमें भी उत्साही, निष्ठा (दृढ़ निश्चशय)आदि को आधार बनाकर सत्कर्म पर बने रहना चाहिए।

 

प्रश्‍न 3. कर्मवीरकथा से हमें क्या शिक्षा मिलती है? (2014A)

अथवा, कर्मवीरकथा’ से क्या शिक्षा मिलती है? (2018A)

उत्तर-कर्मवीर शब्द से ही आभास होने लगता है कि निश्चय ही कोई ऐसा कर्मवीर है जो अपनी निष्ठा, उद्यम, सेवाभाव आदि के द्वारा उत्तम पद को प्राप्त किये हुए है। प्रस्तुत पाठ में एक ऐसे ही कर्मवीर की चर्चा है जो अभावग्रस्त जीवन-यापन करते हुए भी स्नेहिल शिक्षक का सान्निध्य पाकर विविध बाधाओं से लड़ता हुआ एक दिन शीर्ष पद को प्राप्त कर लेता है। मनुष्य की उत्साह ही, निष्ठा, सच्चरित्रता आदि गुण उसे निश्चय ही सफलता की सीढ़ियों पर अग्रसारित करते हैं। अत:, हमें भी उत्साही, निष्ठा (दृढ़ निश्चदय)आदि को आधार बनाकर सत्कर्म पर बने रहना चाहिए।

 

प्रश्‍न 4. रामप्रवेशराम की चारित्रिक विशेषताएँ क्या थी? (2018C)

उत्तर- कर्मवीरकथा का प्रमुख पात्र रामप्रवेश राम है। रामप्रवेशराम दलित परन्तु लगनशील और परिश्रमी बालक है। गुरु का सानिध्य पाकर, विद्याध्ययन में लग गया । गुरु का आशीर्वाद और मेहनत से सफलतारूपी सीढ़ी चढ़ने लगा। धन के अभाव में भी अध्ययनरत रहा। विद्यालय और महाविद्यालय की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। केन्द्रीय लोक सेवा आयोग की परीक्षा में उत्तीर्ण होकर समाज के समक्ष आदर्श प्रस्तुत किया। उसकी प्रशासनिक क्षमता और संकटकाल में निर्णय लेने की कुशलता सबों का ध्यानाकर्ष करता है। 

#Karmaveer_katha_sanskrit

प्रश्‍न 4. रामप्रवेशराम की चारित्रिक विशेाषताएँ क्या थी? (2018C)

उत्तर- कर्मवीरकथा का प्रमुख पात्र रामप्रवेश राम है। रामप्रवेशराम दलित परन्तु लगनशील और परिश्रमी बालक है। गुरु का सानिध्य पाकर, विद्याध्ययन में लग गया । गुरु का आशीर्वाद और मेहनत से सफलता रूपी सीढ़ी चढ़ने लगा। धन के अभाव में भी अध्ययनरत रहा। विद्यालय और महाविद्यालय की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। केन्द्रीय लोक सेवा आयोग की परीक्षा में उत्तीर्ण होकर समाज के समक्ष आदर्श प्रस्तुत किया। उसकी प्रशासनिक क्षमता और संकटकाल में निर्णय लेने की कुशलता सबों का ध्यानाकर्ष करता है।

 

प्रश्‍न 5. रामप्रवेशका जन्म कहाँ हुआ था? उन्होंने देश की सेवा से कैसे यश अर्जित की? (2016A)

उत्तर- रामप्रवेश राम का जन्म भीखनटोला नाम के गाँव में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रशासन क्षमता तथा संकट के समय निर्णय लेने की सामर्थ्य से देश की सेवा कर यश अर्जित किया ।

 

प्रश्‍न 6. रामप्रवेश राम किस प्रकार केंद्रीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में सफल हुआ?

उत्तर- रामप्रवेशराम एक कर्मवीर एवं निर्धन छात्र था। वह कष्टकारक जीवन जीते हुए अध्ययनशील था। वह पुस्तकालयों में अध्ययन किया करता था। केंद्रीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने में सफल रहा।

 

 

प्रश्‍न 7. रामप्रवेशराम की प्रारंभिक शिक्षा के विषय में आप क्या जानते हैं?

उत्तर- रामप्रवेशराम भीखनटोला गाँव का रहनेवाला एक दलित बालक था। उस बालक को एक शिक्षक ने अपने विद्यालय में लाकर शिक्षा देना प्रारंभ किया। बालक रामप्रवेशराम शिक्षक की शिक्षणशैली से आकृष्ट हुआ और शिक्षा को जीवन का परमलक्ष्य माना। विद्या अध्ययन में रात-दिन लग गया और अपने वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त करने लगा।

 

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9. स्वामी दयानन्दः

9. स्वामी दयानन्दः

 

पाठ परिचय- उन्नसवीं शताब्दी ईस्वी में महान समाजसुधारकों में स्वामी दयानन्द बहुत प्रसिद्ध हैं। इन्होंने रूढ़िग्रस्त समाज और विकृत धार्मिक व्यवस्था पर कठोर प्रहार करके आर्य समाज की स्थापना की जिसकी शाखाएँ देश-विदेश में शिक्षाव्यवस्था में गुरुकुल पद्धति का पुनरुद्धार करते हुए इन्होंने आधुनिक शिक्षा के लिए डी० ए० वी० विद्यालय जैसी संस्थाओं की स्थापना को प्रेरित किया था। इनका जीवनचरित प्रस्तुत पाठ में संक्षिप्त रूप से दिया गया है।

 

(आधुनिकभारते समाजस्य शिक्षायाश्च महान् उद्धारकः स्वामी दयानन्दः। आर्यसमाजनामक संस्थायाः संस्थापनेन एतस्य प्रभूतं योगदानं भारतीयसमाजे गृह्यते। भारतवर्षे राष्ट्रीयतायाः बोधोऽपि अस्य कार्यविशेषः। समाजे अनेकाः दूषिताः प्रथा खण्डयित्वा शुद्धतत्त्व ज्ञानस्य प्रचारं दयानन्दः अकरोत्। अयं पाठः स्वामिनो दयानन्दस्य परिचयं तस्य समाजोद्धरणे योगदानं च निरूपयति।)

(आधुनिक भारत में समाज और शिक्षा के महान उद्धारक स्वामी दयानन्द हैं। आर्यसमाज नामक संस्था की स्थापना करने में इनका बहुत बड़ा योगदान भारतीय समाज में लिया जाता है। भारत वर्ष में राष्ट्रीयता का ज्ञान कराना भी इनका कार्य-विशेष माना जाता है। समाज में अनेक दूषित प्रथाओं को खण्डित कर वास्तविकता का ज्ञान का प्रचार दयानन्द ने किया। यह पाठ स्वामी दयानन्द के परिचय और समाज उद्धार में उनका योगदान को स्पष्ट किया है।)

 

 

मध्यकाले नाना कुत्सितरीतयः भारतीयं समाजम् अदूषयन्। जातिवादकृतं वैषम्यम्, अस्पृश्यता, धर्मकार्येषु आडम्बरः, स्त्रीणामशिक्षा, विधवानां गर्हिता स्थितिः, शिक्षायाः अव्यापकता इत्यादयः दोषाः प्राचीनसमाजे आसन्। अतः अनेके दलिताः हिन्दुसमाजं तिरस्कृत्य धर्मान्तरणं स्वीकृतवन्तः।

मध्य काल में अनेक गलत रीति-रिवाजों से भारतीय समाज दूषित हो गया था। जातिवाद से किया गया विषमता, छुआ-छूत, धर्म कार्यों में आडम्बर, स्त्रियों की अशिक्षा, विधवाओं की निन्दनीय स्थिति, शिक्षा की कमी इत्यादि अनेक दोष समाज में थे। अतः अनेक दलित हिन्दू समाज अपमानित होकर धर्म परिवर्तन करना स्वीकार लिया।

 

एतादृशे विषमे काले ऊनविंशशतके केचन धर्मोद्धारकाः सत्यान्वेषिणः समाजस्य वैषम्यनिवारकाः भारते वर्षे प्रादुरभवन्। तेषु नूनं स्वामी दयानन्दः विचाराणां व्यापकत्वात् समाजोद्धरणस्य संकल्पाच्च शिखर-स्थानीयः।

इस प्रकार के विषम समय में उन्नसवीं सदी में कुछ धर्म उद्धारक, सत्य की खोज करने वाले तथा समाज की विषमता को दूर करने वाले भारतवर्ष में उत्पन्न हुए। उनमें अवश्य स्वामी दयानन्द के विचारों का व्यापक प्रभाव तथा समाज-उद्धार के संकल्प से उनका स्थान सर्वोच्च है।

 

 

स्वामिनः जन्म गुजरातप्रदेशस्य टंकरानामके ग्रामे 1824 ईस्वी वर्षेऽभूत्। बालकस्य नाम मूलशंकरः इति कृतम्। संस्कृतशिक्षया एवाध्ययनस्यास्य प्रारम्भो जातः। कर्मकाण्डिपरिवारे तादृश्येव व्यवस्था तदानीमासीत्। शिवोपासके परिवारे मूलशंकरस्य कृते शिवरात्रिमहापर्व उद्बोधकं जातम्।

स्वामी जी का जन्म गुजरात प्रदेश के ‘टंकरा‘ नामक गाँव में 1824 ई0 हुआ था। बालक का नाम ‘मूलशंकर‘ रखा गया। संस्कृत शिक्षा से ही अध्ययन प्राप्त हुआ। उस समय कर्मकाण्डी परिवार में एसी ही व्यवस्था थी। शिव के उपासक परिवार में शिवरात्रि महापर्व मूलशंकर के लिए प्रेरक सिद्ध हुआ।

 

रात्रिजागरणकाले मूलशंकरेण दृष्टं यत् शंकरस्य विग्रहमारुह्य मूषकाः विग्रहार्पितानि द्रव्याणि भक्षयन्ति। मूलशंकरोऽचिन्तयत् यत् विग्रहोऽयमकिंचित्करः। वस्तुतः देवः प्रतिमायां नास्ति। रात्रिजागरणं विहाय मूलशंकरः गृहं गतः। ततः एव मूलशंकरस्य मूर्तिपूजां प्रति अनास्था जाता। वर्षद्वयाभ्यन्तरे एव तस्य प्रियायाः स्वसुर्निधनं जातम्।

रात्री जागरण के समय मूलशंकर द्वारा देखा गया कि शिव की मूर्ति पर चढ़ाए गए प्रसाद को चूहा खा रहा है। मूलशंकर ने सोचा कि यह मूर्ति कुछ भी करने वाला नहीं है। वास्तव में देवता प्रतिमा में नहीं है। रात्री जागरण छोड़कर मूलशंकर घर चला गया। उसी समय से मूलशंकर के हृदय में मूर्ति पूजा के प्रति आस्था खत्म हो गया। दो वर्ष के अंदर ही उनके प्रिय बहन का निधन हो गया।

 

 

ततः मूलशंकरे वेराग्यभावः समागतः। गृहं परित्यज्य विभिन्नानां विदुषां सतां साधूनांच संगतौ रममाणोऽसौ मथुरायां विरजानन्दस्य प्रज्ञाचक्षुषः विदुषः समीपमगमत्। तस्मात् आर्षग्रन्थानामध्ययनं प्रारभत।

इसके बाद मूलशंकर में वैराग्य भाव आ गया। घर त्यागकर विभिन्न विद्वानों , सज्जनों और साधुओं की संगति में घूमते हुए वे मथुरा में विरजानन्द नामक अन्धा विद्वान के पास गये। उनसे वैदिक ग्रन्थों का अध्ययन प्रारम्भ कर दिया।

 

विरजानन्दस्य उपदेशात् वैदिकधर्मस्य प्रचारे सत्यस्य प्रचारे च स्वजीवनमसावर्पितवान्। यत्र-तत्र धर्माडम्बराणां खण्डनमपि च चकार। अनेके पण्डिताः तेन पराजिताः तस्य मते च दीक्षिताः।

विरजानन्द के उपदेश से उपदेशित होकर वेदिक धर्म और सत्य के प्रसार में अपने जीवन को समर्पित कर दिया। जहाँ-तहाँ धर्म-आडम्बर का खण्डन भी उन्होने किया। अनेक पंडितों ने उनसे पराजित होकर उनके मत में दीक्षा प्राप्त की।

 

स्त्रीशिक्षायाः विधवाविवाहस्य मूर्तिपूजाखण्डनस्य अस्पृश्यतायाः बालविवाहस्य च निवारणस्य तेन महान् प्रयासः विभिनैः समाजोद्धारकैः सह कृतः। स्वसिद्धान्तानां संकलनाय सत्यार्थप्रकाशनामकं ग्रन्थं राष्ट्रभाषायां विरच्य स्वानुयायिनां स महान्तमुपकारं चकार।

स्त्री-शिक्षा, विधवा-विवाह, मूर्ति-पूजा खण्डन, छुआ-छूत और बाल-विवाह निवारण का महान प्रयास उनके द्वारा विभिन्न समाज उद्धारको के साथ किया गया। अपने सिद्धांत का संकलन करने के लिए ‘सत्यार्थ प्रकाश‘ नामक ग्रन्थ को हिन्दी भाषा में रचना कर अपने अनुयायी लोगों का बहुत बड़ा उपकार किया।

 

किंच वेदान् प्रति सर्वेषां धर्मानुयायिनां ध्यानमाकर्षयन् स्वयं वेदभाष्याणि संस्कृतहिन्दीभाषयोः रचितवान्। प्राचीनशिक्षायां दोषान् दर्शयित्वा नवीनां शिक्षा पद्धतिमसावदर्शत्। स्वसिद्धान्तानां कार्यान्वयनाय 1875 ईस्वी वर्षे मुम्बईनगरे आर्यसमाजसंस्थायाः स्थापनां कृत्वा अनुयायिनां कृते मूर्त्तरूपेण समाजस्य संशोधनोद्देश्यं प्रकटितवान्।

वेदों के प्रति अनुयायियों का ध्यान आकृष्ट करने के लिए वेद का भाषा संस्कृत-हिन्दी दोनों भाषाओं में लिखा। 1875 ई0 में अपने सिद्धांत के प्रचार-प्रसार के लिए मुम्बई में आर्य-समाज की स्थापना करके अनुयायियों के समक्ष उद्देश्य प्रकट किया।

 

 

सम्प्रति आर्यसमाजस्य शाखाः प्रशाखाश्च देशे विदेशेषु च प्रायेण प्रतिनगरं वर्तन्ते। सर्वत्र समाजदूषणानि शिक्षामलानि च शोधयन्ति। शिक्षापद्धतौ गुरुकुलानां डी॰ ए॰ वी॰ (दयानन्द एंग्लो वैदिक) विद्यालयानांच समूहः स्वामिनो दयानन्दस्य मृत्योः (1883 ईस्वी) अनन्तरं प्रारब्धः तदनूयायिभिः।

वर्तमान समय में आर्यसमाज की शाखा-प्रशाखा देश तथा विदेशों के प्रायः सभी नगरों में विद्यमान है। सब जगह समाज में स्थित दोषों और गंदगियों को शुद्ध कर रहा है। शिक्षा पद्धति में गुरूकुलों का डी0 ए0 वी0 (दयानन्द-एंग्लो-वैदिक) विद्यालयों का समुह स्वामी दयानन्द की मृत्यु 1883 ई0 के बाद अनके अनुयायियों के द्वारा प्रारंभ किया गया।

 

वर्तमानशिक्षापद्धतौ समाजस्य प्रवर्तने च दयानन्दस्य आर्यसमाजस्य च योगदानं सदा स्मरणीमस्ति।

वर्तमान शिक्षा पद्धति में और समाज के परिवर्त्तन में दयानन्द और आर्य समाज का योगदान सदा स्मरणीय है। 

swami dayanand class 10 sanskrit

 

Swami dayanand class 10 Objective Questions

प्रश्‍न 1. स्वामी दयानंद ने किसके प्रचार में अपना जीवन समर्पित किया ?                               

(A) वैदिकधर्म

(B) सत्य

(C) ज्ञान

(D) शुद्धतत्त्व ज्ञान

 

उत्तर-(A) वैदिकधर्म

 

प्रश्‍न 2. स्वामी दयानंद की शिक्षा की शुरुआत किस भाषा माध्यम से हुई ?

(A) संस्कृत

(B) हिन्दी

(C) उर्दू

(D) इनमें से कोई नहीं

 

उत्तर-(A) संस्कृत

 

प्रश्‍न 3. स्वामी दयानन्द के बचपन का नाम क्या था ?

(A) शंकर

(B) शिवशंकर

(C) मूलशंकर

(D) उमाशंकर

 

उत्तर-(C) मूलशंकर

 

प्रश्‍न 4. स्वामीदयानन्द ने किस नगर में आर्यसमाज की स्थापना की ?

(A) कोलकाता

(B) मुम्बई

(C) पटना

(D) चेन्नई

 

उत्तर-(B) मुम्बई

 

प्रश्‍न 5. स्वामी दयानंद का जन्म कब हुआ था ?

(A) 1822

(B) 1824

(C) 1826

(D) 1828

 

उत्तर-(B) 1824

 

प्रश्‍न 6. गुजरात-प्रदेश स्थित टंकाराग्राम किसका जन्मस्थल है ?

(A) स्वामी विवेकानन्दः

(B) स्वामी विरजानन्दः

(C) स्वामी दयानंदः

(D) इनमें से कोई नहीं

 

उत्तर-(C) स्वामी दयानंदः

 

प्रश्‍न 7. स्वामी दयानन्द का जन्म किस ग्राम में हुआ था ?

(A) झंकारा

(B) टंकारा

(C) लंकारा

(D) भीखनटोला

 

उत्तर-(B) टंकारा

 

प्रश्‍न 8. ‘स्वामी दयानन्द‘ कौन थे ?

(A) आर्य समाज संस्थापक

(B) समग्र विकास संस्थान संस्थापक

(C) ब्रह्म समाज संस्थापक

(D) उपर्युक्त कोई नहीं

 

उत्तर-(A) आर्य समाज संस्थापक

 

प्रश्‍न 9. आर्य समाज के संस्थापक कौन थे ?

(A) स्वामी विवेकानंद

(B) स्वामी सरस्वत्यानन्द

(C) स्वामी विवेकानन्द

(D) स्वामी दयानन्द

 

उत्तर-(D) स्वामी दयानन्द

 

लघु-उत्तरीय प्रश्नो्त्तर (20-30 शब्दों में) ____दो अंक स्तरीय

प्रश्‍न 1. स्वामी दयानन्द कौन थे ? समाज सुधार के लिए उन्होंने क्या किया? (2016A)

उत्तर-स्वामी दयानन्द समाज सुधारक थे। उन्होंने समाज की गलत रीतियों को लोगों के साथ मिलकर दूर करने का प्रयास किया तथा डीएवी शिक्षण संस्था स्थापित की।

 

प्रश्‍न 2. स्वामी दयानन्द समाज के महान् उद्धारक थे, कैसे? (तीन वाक्यों में उत्तर दें।) (2014C,2015A)

अथवा, स्वामीदयानन्दःपाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें। (2011A)

अथवा, स्वामी दयानन्द का जन्म कहाँ हुआ था? समाज सुधार के लिए उन्होंने क्या किया? (2011A)

उत्तर- स्वामीदयानन्दसरस्वती का जन्म गुजरात प्रांत के टंकारा नामक गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्नीसवीं शताब्दी ईस्वी में मुख्य समाज सुधारकों में स्वामी दयानन्द अती प्रसिद्ध हैं। इन्होंने रूढ़ी ग्रस्तसमाज और विकृत धार्मिक व्यवस्था पर कठोर प्रहार करके आर्य समाज की स्थापना की। जिसकी शाखाएँ देश-विदेश में शिक्षा सुधार के लिए भी प्रयत्नशील रही है। शिक्षा व्यवस्था में गुरुकुल पद्धति का पुनरुद्धार करते हुए इन्होंने आधुनिक शिक्षा के लिए डीएवी (दयानन्दक एंग्लो  वैदिक) विद्यालय जैसी संस्थाओं की स्थापना की। 

 

 

प्रश्‍न 3. स्वामी दयानन्द ने अपने सिद्धांतों के कार्यान्वयन हेतु क्या किया? (2018C)

उत्तर- आधुनिक भारत के समाज और शिक्षा के महान उद्धारक स्वामी दयानंद भारतीय समाज में फैली हुई अस्पृश्यता, धर्मकार्यों में आडम्बर आदि अनेक विषमताओं को दूर करने का प्रयास किया। भारतवर्ष में इन्होंने राष्ट्रीयता को लक्ष्य बनाकर भारतवासियों के लिए पथ प्रदर्शक का काम किया। दूषित प्रथा को खत्म कर शुद्धतत्व ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया । वैदिक धर्म एवं सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रंथ की रचना कर भारतवासियों को एक नई शिक्षा नीति की ओर अभिप्रेरित किया।

 

प्रश्‍न 4. वैदिक धर्म के प्रचार के लिए स्वामी दयानन्द ने क्या किया?

उत्तर- वैदिकधर्म और सत्य के प्रचार के लिए स्वामी दयानन्द ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया । वेदों के प्रति सभी अनुयायियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए उन्होंने वेदों के उपदेशों को संस्कृत एवं हिंदी में लिखा ।

 

प्रश्‍न 5.मध्यकाल में भारतीय समाज में फैली कुरीतियों का वर्णन अपने शब्दों में करें। (2018A)

उत्तर- मध्यकाल में अनेक गलत रीति-रिवाजों से भारतीय समाज दूषित हो गया था । जातिवाद, छूआछूत, अशिक्षा, विधवाओं की दुर्गति आदि अनेक उदाहरण थे, जो भारतीय समाज को अंधेरा की ओर ले जा रहे थे। दलित हिन्दुओं ने समाज में अपमानित होकर धर्मपरिवर्तन शुरू कर दिये थे।

 

प्रश्‍न 6. स्वामी दयानन्द ने समाज के उद्वार के लिए क्या किया? (2015A)

उत्तर- स्वामीदयानन्द ने समाज के उद्धार के लिए स्त्री शिक्षा पर बल दिया और विधवा विवाह हेतु समाज को प्रोत्साहित किया। उन्होंने बाल विवाह समाप्त करवाने, मूर्तिपूजा का विरोध और छुआछूत समाप्त कराने का प्रयत्न किया।

 

प्रश्‍न 7. आर्यसमाज की स्थापना किसने की और कब की? आर्य समाजके बारे में लिखें।

उत्तर- आर्यसमाज की स्थापना स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1885 में मुंबई नगर में की। आर्यसमाज वैदिकधर्म और सत्य के प्रचार पर बल देता है। यह संस्था मूर्तिपूजा का विरोध करती है ।आर्यसमाज ने नवीन शिक्षा-पद्धति को अपनाया । डी. ए. वी. नामक विद्यालयों के समूह की स्थापना की। आज इस संस्था की शाखाएं-प्रशाखाएँ देश-विदेश के प्रायः हरेक प्रमुख नगर में अवस्थित हैं।

 

प्रश्‍न 8. स्वामीदयानन्द मूर्तिपूजा के विरोधी कैसे बने? (2013A, 2015C)

अथवा, स्वामी दयानन्द को मूर्तिपूजा के प्रति अनास्था कैसे हुई? (2018A)

उत्तर- स्वामीदयानन्द के माता-पिता भगवान शिव के उपासक थे। महाशिवरात्रि के दिन शिव-पार्वती की पूजा इनके परिवार में विशेष रूप में मनाई जाती थी। एक बार महाशिवरात्रि के दिन इन्होंने देखा कि एक चूहा भगवान शंकर की मूर्ति के ऊपर चढ़कर उनपर चढ़ाए हुए प्रसाद को खा रहा है। इससे उन्हें विश्वास हो गया कि मूर्ति में भगवान नहीं होते। इस प्रकार वे मूर्तिपूजा के विरोधी हो गए।

 

प्रश्‍न 9. महाशिवरात्रि पर्व स्वामी दयानन्द के जीवन का उदबोधक कैसे बना? (2018C)

उत्तर-एक बार महाशिवरात्रि के दिन शिव-उपासना के समय इन्होंने देखा कि एक चूहा भगवान शंकरकी मूर्ति के ऊपर चढ़कर उनपर चढ़ाए हुए प्रसाद को खा रहा है। इससे उन्हें विश्वास हो गया कि मूर्ति में भगवान नहीं होते । इस प्रकार वे मूर्तिपूजा के विरोधी हो गए और वेदों का अध्ययन कर सत्य का प्रचार करने लगे। इस प्रकार शिवरात्रि पर्व उनके जीवन का उद्बोधक बना ।

 

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10. मन्दाकिनीवर्णनम् (मन्‍दाकिनी का वर्णन)

10. मन्दाकिनीवर्णनम् (मन्‍दाकिनी का वर्णन)

 

पाठ परिचय- वाल्मीकीय रामायण के अयोध्याण्ड की सर्ग संख्या-95 से संकलित इस पाठ में चित्रकुट के निकट बहनेवाली मन्दाकिनी नामक छोटी नदी का वर्णन है।

 

(प्रस्तुतः पाठः वाल्मीकीयरामायणस्य अयोध्याकाण्डस्य पंचनवति (95) तमात् सर्गात् संकलितः। वनवासप्रसंगेः रामः सीतया लक्ष्मेणेन च सह चित्रकूटं प्राप्नोति।)

प्रस्तुत पाठ वाल्मीकी रामायण के अयोध्या काण्ड के पंचानवें सर्ग से संकलित किया गया है। वनवास प्रसंग में राम-सीता और लक्ष्मण के साथ चित्रकुट पहुँचते हैं।

 

 

तत्र स्थितां मन्दाकिनीनदीं वर्णयन् सीतां सम्बोधयति। इयं नदी प्राकृतिकैरुपादानैः संवलिता चित्तं हरति। अस्याः वर्णनं कालिदासो रघुवंशकाव्येऽपि (त्रयोदशसर्गे) करोति। अनुष्टुप्छनदसि महर्षिः वाल्मीकिः मन्दाकिनीवर्णने प्रकृतेः यथार्थं चित्रणं करोति।

यहाँ स्थित मन्दाकनी नदी का वर्णन करते हुए सीता को कहते हैं। यह नदी प्राकृतिक संपदाओं से घिरी होने के कारण मन को आकर्षित करती है। इसका वर्णन कालीदास ने रघुवंश काव्य में भी (तेरहवें सर्ग में) किये हैं। अनुष्ठुप छन्द में महर्षि वाल्मीकी मन्दाकिनी वर्णन में प्रकृति का यथार्थ चित्रण करते हैं।

 

पाठ 10 मन्दाकिनीवर्णनम् (मन्‍दाकिनी का वर्णन)

 

विचित्रपुलिनां रम्यां हंससारससेविताम्।

कुसुमैरुपसंपन्नां पश्य मन्दाकिनीं नदीम्।।1।।

 

हे सीते! फुलों से परिपुर्ण हंस-सारस से सेवित और रंग-विरंगी तटों वाली सुंदर मन्दाकनी नदी को देखों।

 

 

नानाविधैस्तीररुहैर्वृतां पुष्पफलद्रुमैः।

राजन्तीं राजराजस्य नलिनीमिव सर्वतः।।2।।

 

हे सीते! अनेक प्रकार के फल-फुलों के वृक्षों से घिरा हुआ किनारा राजाओं के सरोवर के समान सभी जगह प्रतीत हो रहा है।

 

 

मृगयूथनिपीतानि कलुषाम्भांसि साम्प्रतम्।

तीर्थानि रमणीयानि रतिं संजनयन्ति मे।।3।।

 

हे सीते! अभी हरिणों के समुह द्वारा पीए गए जल गंदे हो गये जो मन को मोहित करने वाले तीर्थों के प्रति मेरे मन को जगा रहे हैं। अर्थात् यहाँ की सुंदरता, पवित्रता एवं प्राकृतिक सौन्दर्य को देखकर मेरे मन में प्रेम रस का संचार करने लगे हैं।

 

जटाजिनधराः काले वल्कलोत्तरवाससः।

ऋषयस्त्ववगाहन्ते नदीं मन्दाकिनीं प्रिये।।4।।

 

हे प्रिय सीते! जटा और मृगचर्म धारण करने वाले और पेड़ की छाल को वस्त्ररूप में धारण करने वाले ऋषिगण तो इसी मंदाकनी नदी में स्नान करते हैं।

 

आदित्यमुपतिष्ठनते नियमादूर्ध्वबाहवः।

एते परे विशालाक्षि मुनयः संशितव्रताः।।5।।

 

हे विशाल नयन वाली सीते! ये श्रेष्ठ तथा प्रशंसनीय व्रत रखने वाले मुनी लोग अपनी बाँहों को ऊपर किये हुए सुर्य की उपासना में लगे हैं।

 

 

मारुतोद्धूतशिखरैः प्रनृत्त इव पर्वतः।

पादपैः पुष्पपत्राणि सृजद्भिरभितो नदीम्।।6।।

 

हे सीते! नदी के चारों ओर फुल एवं पत्तों से युक्त एवं हवा में चलायमान शिखर से पर्वत झुमते हुए जैसे लग रहे हैं।

 

क्वचिन्मणिनिकाशोदां क्वचित्पुलिनशालिनीम्।

क्वचित्सिद्धजनाकीर्णां पश्य मन्दाकिनीं नदीम्।।7।।

 

हे सीते! मणि जैसे निर्मल जलवाली मन्दाकनी को देखो-जिसकी कहीं तटें सजी-धजी हैं तो कहीं ऋषि-मुनियों से भरी हुई हैं।

 

निर्धूतान् वायुना पश्य विततान् पुष्पसंचयान्।

पोप्लूयमानानपरान्पश्य त्वं जलमध्यगान्।।8।।

 

हे सीते! वायु द्वारा उड़ाये गये फुल समुहों को देखो और दुसरी तरफ जल के बीच में तैरते हुए फुलों के ढ़ेरों को देखो।

 

 

 

तांश्चातिवल्गुवचसो रथांगह्वयना द्विजाः।

अधिरोहन्ति कल्याणि निष्कूजन्तः शुभा गिरः।।9।।

 

हे कल्याणी! अत्यन्त मीठी वाणी वाला चकवा-चकई पक्षी को देखो जो मधुर आवाज से मन्दाकनी की शोभा को बढ़ा रहे हैं।

 

दर्शनं चित्रकूटस्य मन्दाकिन्याश्च शोभने।

अधिकं पुरवासाच्च मन्ये तव च दर्शनात्।।10।।

 

 

हे शोभने! यहाँ चित्रकुट और मंदाकनी के दृश्यों का दर्शन जो हो रहा है। यह दृश्य तुम्हारे द्वारा किया गया अन्य दृश्यों के दर्शन से अधिक सुंदर माना जायेगा। Mandakini varnan in hindi

 

मन्दाकिनीवर्णनम् Objective Questions

 

प्रश्‍न 1. महर्षि बाल्मीनकि ने किस नदी का वर्णन किया है ?

(A) बूढ़ी गंगा

(B) मन्दाकिनी

(C) यमुना

(D) कावेरी

 

उत्तर-(B) मन्दाकिनी

 

प्रश्‍न 2. बाल्मीकि रामायण से कौन-सा पाठ संकलित है ?

(A) विश्वशांतिः

(B) कर्णस्य दानवीरता

(C) नीतिश्लोकाः

(D) मन्दाकिनी वर्णनम्

 

उत्तर-(D) मन्दाकिनी वर्णनम्

 

प्रश्‍न 3. मन्दाकिनी वर्णनम् रामायण के किस काण्ड से संग्रहीत है ?

(A) अरण्यकाण्ड से

(B) अयोध्याकाण्ड से

(C) किष्किन्धा काण्ड से

(D) सुन्दर काण्ड से

 

उत्तर-(B) अयोध्याकाण्ड से

 

प्रश्‍न 4. वनवास प्रसंग में राम-सीता लक्ष्मण के साथ कहाँ पहुँचते हैं ?

(A) विचित्रकुट

(B) चित्रकुट

(C) स्वर्णकुट

(D) पर्णकुट

 

उत्तर-(B) चित्रकुट

 

प्रश्‍न 5. मन्दाकिनी नदी किस पर्वत के निकट बहती है ?

(A) मलय पर्वत

(B) मन्दार पर्वत

(C) चित्रकुट पर्वत

(D) हिमालय पर्वत

 

उत्तर-(C) चित्रकुट पर्वत

 

मन्दाकिनीवर्णनम् Subjective Questions

लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर (20-30 शब्दोंश में) ____दो अंक स्तृरीय

प्रश्‍न 1.मंदाकिनी का वर्णन करने में ‘राम‘ सीता कोकिन-किन रूपों में संबोधित करते हैं?

उत्तर- ‘परमपावनी’ गंगा’ की शोभा से वशीभूत (वश में होना) ‘राम’ सीता को इसकी सुन्दरता का निरीक्षण करने के लिए अपने भाव प्रकट करते हैं; हे सीते ! प्रिये ! विशालाक्षि ! शोभने । आदि संबोधन से संबोधित करते हैं ।

 

प्रश्‍न 2. मनुष्य को प्रकृति से क्यों लगाव रखनाचाहिए?

उत्तर- प्रकृति ही मनुष्य को पालती है, अतएव प्रकृति को शुद्ध होना चाहिए। यहाँ महर्षि वाल्मीकि प्रकृति के यथार्थ रूप का वर्णन करके मनुष्य को लगाव रखने का संदेश देते हैं। इससे हमारा जीवन सुखमय एवं आनंदमय होगा ।

 

 

प्रश्‍न 3. मंदाकिनीवर्णनम् से हमें क्या संदेश मिलताहै?

उत्तर- मंदाकिनीवर्णनम् महर्षिवाल्मीकि के द्वारा रचितरामायण के अयोध्याकांड के 95 सर्ग से संकलित है। इससे हमें यह संदेश मिलता है कि प्रकृति हमारे चित्त को हर लेती है तथा इससे पर्यावरण सुरक्षित रहता है। प्रकृति की शुद्धता के प्रति हमें हमेशा ध्यान देना चाहिए ।

 

प्रश्‍न 4. मन्दाकिनी वर्णनम् पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें। अथवा, ‘मन्दाकिनी‘ का वर्णन अपने शब्दों में करें।

उत्तर- वाल्मीकीयरामायण के अयोध्याकाण्ड की सर्ग संख्या-95 से संकलित इस पाठ में चित्रकूट के निकट बहनेवाली मन्दाकिनी नामक छोटी नदी का वर्णन है। इस पाठ में आदि कवि वाल्मीकि की काव्यशैली तथा वर्णन क्षमता अभिव्यक्त हुई है। वनवास काल में जबराम, सीता और लक्ष्मण एक साथ चित्रकूट जाते हैं, तब मंदाकिनी की प्राकृतिक सुंदरता से प्रभावित हो जाते है। वे सीता से कहते हैं कि यह नदी प्राकृतिक संपदाओं से घिरी होने के कारण मन को आकर्षित कर रही है । यह नदीरंग-बिरंगी छटा वाली और हंसों द्वारा सुशोभित है। ऋषिगण इसके निर्मल जल में स्नान कर रहे हैं । श्रीराम सीता को मन्दाकिनी का वर्णन सुनाते है।

 

प्रश्‍न 5. श्रीराम के प्रकृति सौंदर्य बोध पर अपना विचार लिखें। (2020A І)

उत्तर- वनवास काल में जब राम, सीता और लक्ष्मण एक साथ चित्रकूट जाते हैं, तब श्रीराम मंदाकिनी की प्राकृतिक सुंदरता से प्रभावित हो जाते है। वे सीता से कहते हैं कि यह नदी प्राकृतिक संपदाओं से घिरी होने के कारण मन को आकर्षित कर रही है । यह नदीरंग-बिरंगी तटों वाली और हंसों द्वारा सुशोभित है । ऋषिगण इसके निर्मल जल में स्नान कर रहे हैं। श्रीराम सीता को मन्दाकिनी का वर्णन सुनाते है।

 

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11. व्याघ्रपथिककथा (बाघ और पथिक की कहानी)

11. व्याघ्रपथिककथा (बाघ और पथिक की कहानी)

 

पाठ परिचय- यह कथा नारायण पंडित रचित प्रसिद्ध नीतिकथाग्रन्थ ‘हितोपदेश‘ के प्रथम भाग ‘मित्रलाभ‘ से संकलित है। इस कथा में लोभाविष्ट व्यक्ति की दुर्दशा का निरूपण है। आज के समाज में छल-छद्म का वातावरण विद्यमान है जहाँ अल्प वस्तु के लोभ से आकृष्ट होकर प्राण और सम्मान से वंचित हो जाते हैं। यह उपदेश इस कथा से मिलता है कि वंचकों के चक्कर में न पड़े।

 

अयं पाठः नारायणपण्डितरचितस्य हितोपदेशनामकस्य नीतिकथाग्रन्थस्य मित्रलाभनामकखण्डात् संकलितः।

यह पाठ नारायण पंडित द्वारा रचित हितोपदेश नामक नीतिकथा ग्रन्थ के मित्रलाभ नामक खण्ड से संकलित है।

 

हितोपदेशे बालकानां मनोरंजनाय नीतिशिक्षणाय च नानाकथाः पशुपक्षिसम्बद्धाः श्राविताः।

हितोपदेश में बालकों के मनोरंजन के लिए और नीति-शिक्षा के लिए अनेक कहानियाँ पशु-पक्षी से सम्बन्धित हैं।

 

प्रस्तुत कथायां लोभस्य दुष्परिणामः प्रकटितः।

प्रस्तुत कथा में लोभ के दुष्परिणाम प्रकट किया गया है।

 

पशुपक्षिकथानां मूल्यं मानवानां शिक्षार्थं प्रभूतं भवति इति एतादृशीभिः कथाभिः ज्ञायते।

पशु-पक्षी के कहानी का महत्व मानवों की शिक्षा हेतु अचूक होता है। कहानीयों से ज्ञान होता है।

 

Chapter 11 व्याघ्रपथिककथा (बाघ और पथिक की कहानी)

 

कश्चित् वृद्धव्याघ्रः स्नातः कुशहस्तः सरस्तीरे ब्रुते- ‘भो भोः पान्थाः। इदं सुवर्णकंकणं गृह्यताम्।‘

कोई बूढ़ा बाघ स्नान कर कुश हाथ में लेकर तालाब के किनारे बोल रहा था- ‘‘ वो राही, वो राही ! यह सोने का कंगन ग्रहण करो।‘‘

 

ततो लोभाकृष्टेन केनचित्पान्थेनालोचितम्- भाग्येनैतत्संभवति। किंत्वस्मिन्नात्मसंदेहे प्रवृत्तिर्न विधेया। यतः –

इसके बाद लोभ से आकृष्ट होकर किसी राही के द्वारा सोचा गया- भाग्य से ऐसा मिलता है। किन्तु यहाँ आत्म संदेह है। आत्म संदेह की स्थिति में कार्य नहीं करना चाहिए। क्योंकि-

 

 

अनिष्टादिष्टलाभेऽपि न गतिर्जायते शुभा।

यत्रास्ते विषसंसर्गोऽमृतं तदपि मृत्यवे।।

 

जहाँ अमंगल की आशंका होती है, वहाँ जाने से व्यक्ति को परहेज करना चाहिए । लाभ वहीं होता है जहाँ अनुकूल परिवेश होता है। क्योंकि विषयुक्त अमृत पीने से भी मृत्यु प्राप्त होती है।

 

किंतु सर्वत्रार्थार्जने प्रवृतिः संदेह एव। तन्निरूपयामि तावत्।‘ प्रकाशं ब्रुते- ‘कुत्र तव कंकणम् ?‘

लेकिन हर जगह धन प्राप्ति की इच्छा करना अच्छा नहीं होता । इसलिए तब तक विचार लेता हुँ। सुनकर कहता है- ‘कहाँ है तुम्हारा कंगन?‘

 

व्याघ्रो हस्तं प्रसार्य दर्शयति।

बाघ हाथ फेलाकर दिखा देता है।

 

 

पन्थोऽवदत्- ‘कथं मारात्मके त्वयि विश्वासः ?

पथिक ने पूछा- ‘तुम हिंसक पर कैसे विश्वास किया जाए ?‘

 

व्याघ्र उवाच- ‘शृणु रे पान्थ ! प्रागेव यौवनदशायामतिदुर्वृत्त आसम्।

बाघ ने कहा- ‘हे पथिक सुनो‘ पहले युवास्था में मैं अत्यंत दुराचारी था।

 

अनेकगोमानुषाणां वर्धान्मे पुत्रा मृता दाराश्च वंशहीनश्चाहम्।

अनेक गायों तथा मनुष्यों के मारने से मेरे पुत्र और पत्नि की मृत्यु हो गई और मैं वंशहीन हो गया।

 

ततः केनचिद्धार्मिकेणाहमादिष्टः – ‘दानधर्मादिकं चरतु भवान्।‘

इसके बाद किसी धर्मात्मा ने मुझे उपदेश दिया- ‘‘ आप दान और धर्म आदि करें।

 

तदुपदेशादिदानीमहं स्नानशीलो दाता वृद्धो गलितनखदन्तो कथं न विश्वासभूमिः ? मया च धर्मशास्त्राण्यधीतानि। शृणु –

उनके उपदेश से मैं इस समय स्नानशील , दानी हुँ तथा बुढ़ा और दंतविहीन हूँ, फिर कैसे विश्वासपात्र नहीं हुँ ? मेरे द्वार धर्मशास्त्र भी पढ़ा गया है। सुनो-

 

दरिन्द्रान्भर कौन्तेय ! मा प्रयच्छेश्वरे धनम्।

व्याधितस्यौषधं पथ्यं, नीरुजस्य किमौषधेः।।

 

हे कुन्तीपुत्र ! गरीबों को धन दो, धनवानों को धन मत दो । रोगी को दवा की जरूरत होती है। नीरोगी को दवा की कोई जरूरत नहीं होती है।

 

अन्यच्च –

और दूसरी बात यह है कि-

 

 

दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।

देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्विकं विदुः ।।

 

दान देना चाहिए। दान उसी को देना चाहिए। जिससे कोई उपकार नहीं कराना हो, उचित जगह, उपयुक्त समय और उपयुक्त व्यक्ति को दिया हुआ दान सात्विक दान होता है।

 

 

तदत्र सरसि स्नात्वा सुवर्णकंकणं गृहाण।

तुम यहाँ तालाब में स्नानकर सोने का कंगन ले लो।

 

ततो यावदसौ तद्वचः प्रतीतो लोभात्सरः स्नातुं प्रविशति। तावन्महापंके निमग्नः पलायितुमक्षमः।

उसके बाद उसकी बातों पर विश्वास कर ज्योंही वह लोभ से तालाब में स्नान के लिए प्रविष्ठ हुआ त्योंहि गहरे किचड़ में डुब गया और भागने में असमर्थ हो गया।

 

पंके पतितं दृष्ट्वा व्याघ्रोऽवदत् – ‘अहह, महापंके पतिताऽसि। अतस्त्वामहमुत्थापयामि।‘

उसको किचड़ में फंसा देखकर बाघ बोला- अरे रे, तुम गहरे किचड़ में फंस गये हों। इसलिए मैं तुमको निकाल देता हुँ ।

 

इत्युक्त्वा शनैः शनैरुपगम्य तेन व्याघ्रेण धृतः स पन्थोऽचिन्तयत् –

यह कहकर धीरे-धीरे उसके निकट जाकर उस बाघ ने उस पथिक को पकड़ लिया। उस पथिक ने सोचा-

 

अवशेन्द्रियचित्तानां हस्तिस्नानमिव क्रिया।

दुर्भगाभरणप्रायो ज्ञानं भारः क्रियां विना।।

 

जिस व्यक्ति की इन्द्रियाँ और मन अपने वश में नही हो, उसकी सारी क्रियाएँ हाथी के स्नान के समान हैं। जिस प्रकार बंध्या स्त्री का पालन पोषण बेकार है, उसी प्रकार क्रिया के बिना ज्ञान भार स्वरूप है।

 

इति चिन्तयन्नेवासौ व्याघ्रेण व्यापादितः खादितश्च। अत उच्यते –

ऐसा सोचता हुआ पथिक बाघ से पकड़ा गया और खाया गया। इसलिए कहा जाता है-

 

कंकणस्य तु लोभेन मग्नः पंके सुदुस्तरे।

वृद्धव्याघ्रेण संप्राप्तः पथिकः स मृतो यथा।।

 

 

जिस प्रकार कंगन के लोभ में पथिक गहरे किचड़ में फँस गया तथा बूढ़े बाघ द्वारा पकड़कर मार दिया गया। vyaghra pathik katha in hindi

 

11 व्याघ्रपथिक कथा Objective Questions

प्रश्‍न 1. ‘इदं सुवर्ण कंकणं गृहताम्‘ किसने कहा ?

(A) पथिक 

(B) कथाकार

(C) बाघ

(D) दानी

 

उत्तर-(C) बाघ

 

प्रश्‍न 2. ‘व्याघ्रपथिक कथा‘ पाठ में किसके दुष्परिणाम का वर्णन किया गया है ?

(A) क्रोध  

(B) लोभ

(C) मोह   

(D) काम

 

उत्तर-(B) लोभ

 

प्रश्‍न 3. ‘दरिद्रान्भर कौन्तेय! मा ……. नीरुजस्य किमौषधेः‘ पद्य किस पाठ से संकलित है ?

(A) अरण्यकाण्ड से       

(B) व्याघ्रपथिक कथा से

(C) किष्किन्धा काण्ड से 

(D) सुन्दर काण्ड से

 

उत्तर-(B) व्याघ्रपथिक कथा से

 

प्रश्‍न 4. ‘व्याघ्रपथिक कथा‘ किस ग्रंथ से लिया गया है ?

(A) पंचतंत्र   

(B) हितोपदेश

(C) रामायण

(D) महाभारत

 

उत्तर-(B) हितोपदेश

 

प्रश्‍न 5. कौन स्नान किए हुए हाथ में कुश लिए तालाब के किनारे बोल रहा था ?                           

(A) व्याघ्र 

(B) भालू

(C) बंदर   

(D) मनुष्य

 

उत्तर-(A) व्याघ्र

 

प्रश्‍न 6. व्याघ्र के हाथ में क्या था ?

(A) संस्कृत पुस्तक 

(B) वेद

(C) सुवर्ण कंगन     

(D) गज

 

उत्तर-(C) सुवर्ण कंगन

 

11. व्याघ्रपथिककथा Subjective Questions

लेखक- नारायण पण्डित

 

लघु-उत्तरीय प्रश्नोकत्तर (20-30 शब्दों में) ____दो अंक स्तरीय

प्रश्‍न 1. ‘व्याघ्रपथिककथा’ के आधार पर बतायें कि दान किसको देना चाहिए ? (2018A)

उत्तर- दान गरीबों को देना चाहिए । जिससे कोई उपकार नहीं कराना हो, उसे दान देना चाहिए। स्थान, समय और उपयुक्तण व्यीक्ति को ध्यान में रखकर दान देना चाहिए।

 

 

प्रश्‍न 2. सोने के कंगन को देखकर पथिक ने क्या सोचा? (2020AІІ)

उत्तर- पथिक ने सोने के कंगन को देखकर सोचा कि ऐसा भाग्य से ही मिल सकता है, किन्तु जिस कार्य में खतरा हो, उसे नहीं करना चाहिए। फिर लोभवश उसने सोचा कि धन कमाने के कार्य में खतरा तो होता ही है। इस तरह वह लोभ से वशीभूत होकर बाघ की बातों में आ गया।

 

प्रश्‍न 3. धन और दवा किसे देना उचित है ? (2020AІ)

उत्तर- व्याघ्रपथिककथा पाठ के माध्यम से बताया गया है कि धन उसे देना उचित है, जो निर्धन हो तथा दवा उसे देना उचित है, जो रोगी हो अर्थात् धनवान को धन देना और निरोग को दवा देना उचित नहीं है।

 

प्रश्‍न 4. ‘व्याघ्रपथिककथा’ कहाँ से लिया गया है? इसके लेखक कौन हैं तथा इससे क्या शिक्षा मिलती है? (2017A)

उत्तर- ‘व्याघ्रपथिककथा’ हितोपदेश ग्रंथ के मित्रलाभ खण्ड से ली गई है। इसके लेखक ‘नारायण पंडित’ जी हैं। इस कथा के द्वारा नारायणपंडित हमें यह शिक्षा देते हैं कि दुष्टों की बातों पर लोभ में आकर विश्वास नहीं करना चाहिए । सोच समझकर ही काम करना चाहिए। इस कथा का उद्देश्य मनोरंजन के साथ व्यावहारिक ज्ञान देना है।

vyaghra pathik katha in hindi

 

प्रश्‍न 5. नारायणपंडित रचित व्याघ्रपथिककथा पाठ का मूल उद्देश्य क्या है?

उत्तर- व्याघ्रपथिककथा का मूल उद्देश्य यह है कि हिंसक जीव अपने स्वभाव को नहीं छोड़ सकता। इस कथा के द्वारा नारायण पं‍डित हमें यह शिक्षा देते हैं कि दुष्ट की बातों पर लोभ में आकर विश्वास नहीं करना चाहिए । सोच-समझकर ही काम करना चाहिए। इस कथा का उद्देश्य मनोरंजन के साथ व्यावहारिक ज्ञान देना है ।

 

प्रश्‍न 6. व्याघ्रपथिककथा’ को संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए।                

अथवा, व्याघ्रपथिककथा के लेखक कौन हैं? इस पाठ से क्या शिक्षा मिलती ? पाँच वाक्यों में उत्तर दें। (2012A)

उत्तर- यह कथा नारायण पण्डित रचित हितोपदेश के नीतिकथाग्रन्थ के मित्रलाभ खण्ड से ली गयी है। इस कथा में एक पथिक वृद्ध व्याघ्र द्वारा दिये गये प्रलोभन में पड़ जाता है। वृद्ध व्याघ्र हाथ में सुवर्ण कंगन लेकर पथिक को अपनी ओर आकृष्ट करता है। पथिक निर्धन होने के बावजूद व्याघ्र पर विश्वास नहीं करता । तब व्याघ्र द्वारा सटीक तर्क दिये जाने पर पथिक संतुष्ट होकर कंगन ले लेना उचित समझता है। स्नान कर कंगन ग्रहण करने की बात स्वीकार कर पधिक महा कीचड़ में गिर जाता है और वृद्ध व्याघ्र द्वारा मारा जाता है। इसकथा में संदेश और शिक्षा यही है किनरभक्षी प्राणियों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए और अपनी किसी भी समस्या का समाधान ऐसे व्यक्ति द्वारा नजर आये तब भी उसके लोभ में नहीं फँसना चाहिए।

 

प्रश्‍न 7.व्याघ्रपथिककथा से क्या शिक्षा मिलती है? (2015A, 2015C)

अथवा, व्याघ्रपथिककथा में मूल संदेश क्या है?

उत्तर- इस कथा के द्वारा नारायण पं‍डित हमें यह शिक्षा देते हैं कि दुष्ट की बातों पर लोभ में आकर विश्वास नहीं करना चाहिए। सोच-समझकर ही काम करना चाहिए। नरभक्षी (जो मनुष्य  को आहार के रूप में खाता है।) प्राणियों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए और अपनी किसी भी समस्या का समाधान ऐसे व्यक्ति द्वारा नजर आये तब भी उसके लोभ में नहीं फँसना चाहिए। इस कथा का उद्देश्य मनोरंजन के साथ व्यावहारिक ज्ञान देना है।

 

 

प्रश्‍न 8.पथिक वृद्ध बाघ की बातों में क्यों आ गया?

उत्तर- पथिक ने सोने के कंगन की बात सुनकर सोचा कि ऐसा भाग्य से ही मिल सकता है, किन्तु जिस कार्य में खतरा हो, उसे नहीं करना चाहिए। फिर लोभवश उसने सोचा कि धन कमाने के कार्य में खतरा तो होता ही है। इस तरह वह लोभ से वशीभूत होकर बाघ की बातों में आ गया।

 

प्रश्‍न 9.व्याघ्रथिककथा पाठ का पांच वाक्यों में परिचय दें।

उत्तर- यह कथा नारायण पंडित रचित प्रसिद्ध नीति कथाग्रन्थ ‘हितोपदेश’ के प्रथम भाग ‘मित्रलाभ’ से संकलित है। इस कथा में लोभाविष्ट व्यक्ति की दुर्दशा का निरूपण है। आज के समाज में छल-कपट का वातावरण विद्यमान है, जहाँ अल्प वस्तु के लोभ से आकृष्ट होकर लोग अपने प्राण और सम्मान से वंचित हो जाते हैं। एक बाघ की चाल में फंसकर एक लोभी पथिक उसके द्वारा मारा गया।

 

प्रश्‍न 10.सात्विकदान क्या है? पठित पाठ के आधार पर उत्तर दें। (2018A)

उत्तर- उपयुक्त  स्थान, समय एवं व्‍‍यक्ति को ध्यान में रखकर दिया गया दान सात्विक होता है।

 

प्रश्‍न 11.वृद्धबाघ ने पथिकों को फंसाने के लिए किस तरह का भेष रचाया ?

उत्तर- वृद्धबाघ ने पथिकों को फंसाने के लिए एक धार्मिक का भेष रचाया । उसने स्नान कर और हाथ में कुश लेकर तालाब के किनारे पथिकों से बात कर उन्हें दानस्वरूप सोने का कंगन पाने का लालच दिया ।

 

प्रश्‍न 12.वृद्धबाघ पथिक को पकड़ने में कैसे सफल हुआ था?

अथवा, बाघ ने पथिक को पकड़ने के लिए क्या चाल चली?

उत्तर- वृद्धबाघ ने एक धार्मिक का भेष रचकर तालाब के किनारे पथिकों को सोने का कंगन लेने के लिए कहा । उस तालाब में अधिकाधिक कीचड़ था। एक लोभी पथिक उसकी बातों में आ गया। बाघ ने लोभी पथिक को स्वर्ण कंगन लेने से पहले तालाब में स्नान करने के लिए कहा । उस बाघ की बात पर विश्वास कर जब पथिक तालाब में घुसा, वह बहुत अधिक कीचड़ में धंस गया और बाघ ने उसे पकड़ लिया तथा मारकर खा गया।

 

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12. कर्णस्य दानवीरता (कर्ण की दानवीरता)

12. कर्णस्य दानवीरता (कर्ण की दानवीरता)

 

पाठ परिचय- यह पाठ संस्कृत के प्रथम नाटककार भास द्वारा रचित कर्णभार नामक एकांकी रूपक से संकलित है। इसमें महाभारत के प्रसिद्व पात्र कर्ण की दानवीरता दिखाई गई है। इन्द्र कर्ण से छलपूर्वक उनके रक्षक कवचकुण्डल को मांग लेते हैं और कर्ण उन्हें दे देता है। कर्ण बिहार के अंगराज्य ( मुंगेर तथा भागलपुर ) का शासक था। इसमें संदेश है कि दान करते हुए मांगने वाले की पृष्ठभूमि जान लेनी चाहिए, अन्यथा परोपकार विनाशक भी हो जाता है।

 

पाठ 12 कर्णस्य दानवीरता (कर्ण की दानवीरता)

 

अयं पाठः भासरचितस्य कर्णभारनामकस्य रूपकस्य भागविशेषः।

यह पाठ ‘भास‘ रचित कर्ण भार नामक नाटक का भाग विशेष है।

 

अस्य रूपकस्य कथानकं महाभारतात् गृहीतम्।

इस नाटक की कहानी महाभारत से ग्रहण किया गया है।

 

 

महाभारतयुद्धे कुन्तीपुत्रः कर्णः कौरवपक्षतः युद्धं करोति।

महाभारत युद्ध में कुन्तीपुत्र कर्ण कौरव के पक्ष से युद्ध करते हैं।

 

कर्णस्य शरीरेण संबद्ध कवचं कुण्डले च तस्य रक्षके स्तः।

कर्ण के शरीर में स्थित कवच और कुण्डल से वह रक्षित था।

 

यावत् कवचं कुण्डले च कर्णस्य शरीरे वर्तेते तावत् न कोऽपि कर्णं हन्तुं प्रभवति।

जब तक कवच और कुण्डल कर्ण के शरीर में है। तबतक कोई भी कर्ण को नहीं मार सकता है।

 

अतएव अर्जुनस्य सहायतार्थम् इन्द्रः छलपूर्वकं कर्णस्य दानवीरस्य शरीरात् कवचं कुण्डले च गृह्णाति।

इसलिए अर्जुण की सहायता के लिए इन्द्र छलपुर्वक दानवीर कर्ण के शरीर से कवच और कुण्डल लेते हैं।

 

 

कर्णः समोदम् अङ्गभूतं कवचं कुण्डले च ददाति।

कर्ण खुशी पूर्वक अंग में स्थित कवच और कुण्डल दे देता है।

 

भासस्य त्रयोदश नाटकानि लभ्यन्ते।

भास के तेरह नाटक मिले हैं।

 

तेषु कर्णभारम् अतिसरलम् अभिनेयं च वर्तते।

उनमे कर्णभारम् अति सरल अभिनय है।

 

Chapter 12 कर्णस्य दानवीरता (कर्ण की दानवीरता)

 

(ततः प्रविशति ब्राह्मणरूपेण शक्रः)

(इसके बाद प्रवेश करता है ब्राह्मण रूप में इन्द्र)

 

शक्रः- भो मेघाः, सूर्येणैव निवर्त्य गच्छन्तु भवन्तः। (कर्णमुपगम्य) भोः कर्ण ! महत्तरां भिक्षां याचे।

इन्द्र- अरे मेघों ! सुर्य से कहो आप जाएँ। (कर्ण के समीप जाकर) बहुत बड़ी भिक्षा माँग रहा हुँ।

 

 

कर्णः- दृढं प्रीतोऽस्मि भगवन् ! कर्णो भवन्तमहमेष नमस्करोमि।

कर्ण- मैं खुब प्रसन्न हुँ। कर्ण आपको प्रणाम करता है।

 

शक्रः- (आत्मगतम्) किं नु खलु मया वक्तव्यं, यदि दीर्घायुर्भवेति वक्ष्ये दीर्घायुर्भविष्यति। यदि न वक्ष्ये मूढ़ इति मां परिभवति। तस्मादुभयं परिहृत्य किं नु खलु वक्ष्यामि। भवतु दृष्टम्। (प्रकाशम्) भो कर्ण ! सूर्य इव, चन्द्र इव, हिमवान् इव, सागर इव तिष्ठतु ते यशः।

इन्द्र- ( मन में ) क्या इस व्यक्ति के लिए बोला जाए, यदि दिर्घायु हो बोलता हुँ तो दिर्घायु हो जायेगा, यदि ऐसा नहीं बालता हुँ तो मुझको मुर्ख समझेगा। इसलिए दोनों को छोड़कर क्यों न ऐसा बोलूँ आप प्रसन्न हों। ;खुलकरद्ध ओ कर्ण ! सुर्य की तरह, चन्द्रमा की तरह, हिमालय की तरह, समुद्र की तरह तुम्हारा यश कायम रहे।

 

कर्णः- भगवन् ! किं न वक्तव्यं दीर्घायुर्भवेति। अथवा एतदेव शोभनम्।

कर्ण- क्या दिर्घायु हो ऐसा नहीं बोलना चाहिए। अथवा यहीं ठीक है

 

कुतः-

क्योंकि-

 

धर्मो हि यत्नैः पुरुषेण साध्यो भुजङ्गजिह्वाचपला नृपश्रियः।

तस्मात्प्रजापालनमात्रबुद्ध्या हतेषु देहेषु गुणा धरन्ते ।।

 

व्यक्ति को धर्म की रक्षा अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि राजा का एश्वर्य साँप की जीभ की तरह चंचल होता है। इसलिए प्रजापालन करने वाले राजा प्राण देकर भी प्रजा की रक्षा करते हैं तथा यश धारण करते हैं। अतः कर्ण के कहने का भाव है कि राजा अपने सुख के लिए नहीं जते हैं, प्रजा की रक्षा करने के लिए देह धारण करते हैं। धन या एश्वर्य तो आते जाते हैं, किन्तु यश तथा सुकर्म चिर काल तक कायम रहते हैं।

 

 

भगवन्, किमिच्छसि! किमहं ददामि।

भगवन् ! आप क्या चाहते हैं ? मैं क्या दूँ ?

 

शक्रः- महत्तरां भिक्षां याचे।

इन्द्र- बहुत बड़ी भिक्षा माँगता हूँ।

 

कर्णः- महत्तरां भिक्षां भवते प्रदास्ये। सालङ्कारं गोसहस्रं ददामि।

कर्ण- मैं आपको बहुत बड़ी भिक्षा दूँगा। आभूषण सहित एक हजार गाय देता हूँ।

 

शक्रः- गोसहस्रमिति। मुहूर्तकं क्षीरं पिबामि। नेच्छामि कर्ण ! नेच्छामि।

इन्द्र- एक हजार गाय। मैं थोड़ी दुध पीऊँगा। नहीं चाहिए कर्ण, नहीं चाहता हूँ।

 

कर्णः- किं नेच्छति भवान्। इदमपि श्रूयताम्। बहुसहस्रं वाजिनां ते ददामि।

कर्ण- आप क्या चाहते हैं ? यहीं भी तो बताएँ। हजारों घोड़े आपको देता हूँ।

 

शक्रः- अश्वमिति। मुहूर्तकम् आरोहामि। नेच्छामि कर्ण! नेच्छामि।

इन्द्र- घोड़े ही। थोड़ी देर मैं सवारी करुँगा। नहीं चाहता हूँ कर्ण, नहीं चाहता हूँ।

 

कर्णः- किं नेच्छति भगवान्। अन्यदपि श्रूयताम्। वारणानामनेकं वृन्दमपि ते ददामि।

कर्ण- आप क्या चाहते हैं ? दूसरा भी सुनें ! हाथियों का अनेक समुह आपको देता हूँ।

 

शक्रः- गजमिति। मुहूर्तकम् आरोहामि। नेच्छामि कर्ण! नेच्छामि।

इन्द्र- हाथी ही। थोड़ी चढूँगा । नहीं चाहता हूँ कर्ण। नहीं चाहता हूँ।

 

 

कर्णः- किं नेच्छति भवान्। अन्यदपि श्रूयताम्, अपर्याप्तं कनकं ददामि।

कर्ण- आप क्या चाहते हैं ? और भी सुनें ! जरूरत से अधिक सोना देता हूँ।

 

शक्रः- गृहीत्वा गच्छामि। ( किंचिद् गत्वा ) नेच्छामि कर्ण! नेच्छामि।

इन्द्र- लेकर जाता हूँ। ;थोड़ी दूर जाकरद्ध मैं नहीं चाहता हूँ कर्ण। मैं नहीं चाहता हूँ।

 

कर्णः- तेन हि जित्वा पृथिवीं ददामि।

कर्ण- तो जीतकर भूमि देता हूँ।

 

शक्रः- पृथिव्या किं करिष्यामि।

इन्द्र- भूमि लेकर क्या करुँगा ?

 

कर्णः- तैन ह्यग्निष्टोमफलं ददामि ।

कर्ण- तो अग्निष्टोम फल देता हूँ।

 

शक्रः- अग्निष्टोमफलेन किं कार्यम् ।

इन्द्र- अग्निष्टोम फल लेकर क्या करुँगा।

 

कर्णः- तेन हि मच्छिरो ददामि।

कर्ण- तो मैं अपना सिर देता हूँ।

 

शक्रः- अविहा अविहा।

इन्द्र- नही-नहीं, ऐसा मत करो।

 

कर्णः- न भेतव्यं न भेतव्यम्। प्रसीदतु भवान्। अन्यदपि श्रूयताम्।

कर्ण- डरो नहीं, डरो नहीं, आप प्रसन्न हो जाएँ। और भी सुनें।

 

अङ्गै सहैव जनितं मम देहरक्षा

देवासुरैरपि न भेद्यमिदं सहस्रैः ।

देयं तथापि कवचं सह कुण्डलाभ्यां

प्रीत्या मया भगवते रुचितं यदि स्यात् ॥

 

कर्ण ब्राह्मणवेशधारी इन्द्र से कहता है कि मेरा जन्म इन कवच कुण्डलों के साथ हुआ है। यह कवच देवता और असुरों के द्वारा भेद नही है, फिर भी यदि आपको यहीं कवच और कुण्डल लेने की इच्छा है तो मैं प्रसन्नता पूर्वक देता हूँ। अर्थात् कर्ण अपने दानवीरता की रक्षा के लिए कवच कुण्डल देने को तैयार हो जाता है।

 

 

शक्र – (सहर्षम्) ददातु, ददातु।

इन्द्र- (प्रसन्नतापूर्वक) दे दीजिए।

 

कर्णः-(आत्मगतम्) एष एवास्य कामः। किं नु खल्वनेककपटबुद्धेः कृष्णस्योपायः। सोऽपि भवतु। धिगयुक्तमनुशाचितम्। नास्ति संशयः। (प्रकाशम्) गृह्यताम्।

कर्ण- (मन-ही-मन) यहीं इसकी इच्छा है। निश्चय ही कपटबुद्धिवाले श्रीकृष्ण की योजना है। वह भी हो। धिक्कार है अनुचित विचार करना। ;प्रकट रुप सुनाकरद्ध ले लीजिए।

 

शल्यः- अङ्गराज ! न दातव्यं न दातव्यम्।

शल्यराज- हे अंगराज ! मत दीजिए, मत दीजिए।

 

कर्णः- शल्यराज ! अलमलं वारयितुम् । पश्य –

कर्ण- मत रोको ! मत रोको । देखो-

 

शिक्षा क्षयं गच्छति कालपर्ययात्

सुबद्धमूला निपतन्ति पादपाः।

जलं जलस्थानगतं च शुष्यति ।

हुतं च दत्तं च तथैव तिष्ठति।

 

समय बीतने पर शिक्षा नष्ट हो जाती है। मजबुत जड़ो वाले वृक्ष गीर जाते हैं। नदी तालाब के जल सुख जाते हैं। लेकिन दिया गया दान और दी गई आहूति हमेशा स्थिर रहती है। अर्थात् हवन करने तथा दान करने से प्राप्त होनेवाले पुण्य हमेशा अमर रहता है।

 

तस्मात् गृह्यताम् (निकृत्त्य ददाति)।

ग्रहण कीजिए। (निकाल कर दे देता है।) Chapter 12 Karnasya danveerta sanskrit

 

12. कर्णस्य दानवीरता Objective Questions

प्रश्‍न 1. ‘कर्णस्य दानवीरता‘ पाठ किस ग्रंथ से संकलित है ?

(A) कर्णभार से

(B) वासवदत्त से

(C) हितोपदेश से

(D) पुरूषपरिक्षा कथा ग्रंथ से

 

उत्तर-(A) कर्णभार से

 

प्रश्‍न 2 ‘महत्तरां भिक्षा याचे‘ यह किसकी उक्ति है ?

(A) कर्ण की

(B) शल्य की

(C) कृष्ण की

(D) इन्द्र की

 

उत्तर-(D) इन्द्र की

 

प्रश्‍न 3. सूर्यपुत्र कौन था ?

(A) भीम

(B) अर्जुन

(C) कर्ण

(D) युधिष्ठिर

 

उत्तर-(C) कर्ण

 

प्रश्‍न 4. भास के कितने नाटक है ?

(A) 10

(B) 13

(C) 15

(D) 11

 

उत्तर-(B) 13

 

प्रश्‍न 5. कर्ण किसके पक्ष से युद्ध लड़ रहा था।

(A) कौरव

(B) पाण्डव

(C) राम

(D) रावण

 

उत्तर-(A) कौरव

 

प्रश्‍न 6. ब्राह्मण रूप में कौन प्रवेश किया ?

(A) इन्द्र

(B) विष्णु

(C) कृष्ण

(D) अर्जुन

 

उत्तर-(A) इन्द्र

 

प्रश्‍न 7. दानवीर कौन था ?

(A) भीम

(B) अर्जुन

(C) कर्ण

(D) युधिष्ठिर

 

उत्तर-(C) कर्ण

 

प्रश्‍न 8. कर्ण किस देश का राजा था ?

(A) अंग

(B) मगध

(C) मिथिला

(D) काशी

 

उत्तर-(A) अंग

 

प्रश्‍न 9. कर्ण किसका पुत्र था ?

(A) कुंती

(B) कौशल्या

(C) कैकेयी

(D) शकुन्तला

 

उत्तर-(A) कुंती

 

प्रश्‍न 10. भिक्षुक किस वेश में आया था ?

(A) राजा

(B) भिखारी

(C) मंत्री  

(D) ब्राह्मण

 

उत्तर-(D) ब्राह्मण

 

प्रश्‍न 11. कवच और कुण्डल किसके पास था ?

(A) इन्द्र

(B) भीष्म

(C) कृष्ण  

(D) कर्ण

 

उत्तर-(D) कर्ण

 

प्रश्‍न 12. कर्ण के कवच-कुण्डल की क्या विशेषता थी?

(A) वह बड़ा था

(B) वह सोने के था

(C) वह बहुत चमकिला था

(D) उसे भेदा नहीं जा सकता था।

 

उत्तर-(D) उसे भेदा नहीं जा सकता था।

 

12. कर्णस्या दनवीरता Subjective Questions

 

लघु-उत्तरीय प्रश्नोनत्तर (20-30 शब्दों में) ____दो अंक स्ततरीय

प्रश्‍न 1. ‘कर्णस्य दानवीरता’मेंकर्ण के कवच और कुण्डल की विशेषताएँ क्या थीं? (2018A)

उत्तर-कर्ण का कवच और कुण्डल जन्मजात था। जब तक उसके पास कवच और कुण्डल रहता, दुनिया की कोई शक्ति उसे मार नहीं सकती थी। कवच और कुण्डल उसे अपने पिता सूर्य देव से प्राप्त थे, जो अभेद्य थे।

 

प्रश्‍न 2. दानवीर कर्ण के चरित्र पर प्रकाश डालें ?

अथवा, कर्णकी चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन करें। (2020AІ, 2018A)

उत्तर- दानवीर कर्ण एक साहसी तथा कृतज्ञ (उपकार माननेवाला) आदमी था । वह सत्यवादी और मित्र का विश्वास पात्र था। दुर्योधन द्वारा किए गए उपकार को वह कभी नहीं भूला। उसका कवच-कुण्डल अभेद्य था फिर भी उसने इंद्र को दानस्वरूप दे दिया। वह दानवीर था। कुरुक्षेत्र में वीरगति को पाकर वह भारतीय इतिहास में अमर हो गया।

 

 

प्रश्‍न 3. कर्ण कौन था एवं उसके जीवन से हमें क्या शिक्षा मिलती है? (2020AІ)

उत्तर-कर्ण कुंती का पुत्र था। महाभारत के युद्ध में उसने कौरव पक्ष से लड़ाई की । इस पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दान ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है, क्योंकि केवल दान ही स्थिर रहता है। शिक्षा समय-परिवर्तन के साथ समाप्त हो जाती है। वृक्ष भी समय के साथ नष्ट हो जाता है। इतना ही नहीं, जलाशय भी सूखकर समाप्त हो जाता है। इसलिए कोई मोह किए बिना दान अवश्य करना चाहिए।

 

प्रश्‍न 4. दानवीर कर्ण ने इन्द्र को दान में क्या दिया ? तीन वाक्यों में उत्तर दें। (2011C)

अथवा, ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान की महत्ता को बताएं। (2016A)

उत्तर-दानवीर कर्ण ने इन्द्र को अपना कवच और कुण्डल दान में दिया । कर्ण को ज्ञात था कि यह कवच और कण्डल उसका प्राण-रक्षक है। लेकिन दानी स्वभाव होने के कारण उसने इन्द्ररूपी याचक को खाली लौटने नहीं दिया ।

 

प्रश्‍न 5. ‘कर्णस्यदानवीरता’ पाठ के नाटककार कौन हैं ? कर्ण किनका पुत्र था तथा उन्होंने इन्द्र को दान में क्या दिया? (2011A)

उत्तर—’कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के नाटककार ‘भास’ हैं। कर्ण कुन्ती का पुत्र था तथा उन्होंने इन्द्र को दान में अपना कवच और कुण्डल दिया।

 

प्रश्‍न 6. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर इन्द्र के चरित्र की विशेषताओं को लिखें।  (2011A,2015A)

अथवा, ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर इन्द्र की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख करें। (2018A)

उत्तर-इन्द्र स्वर्ग का राजा है किन्तु वह सदैव सशंकित रहता है कि कहीं कोई उसका पद छीन न ले। वह स्वार्थी तथा छली है। उसने महाभारत में अपने पुत्र अर्जुन को विजय दिलाने के लिए ब्राह्मण का वेश बनाकर छल से कर्ण का कवच-कुण्डल दान में ले लिया ताकि कर्ण अर्जुन से हार जाए। Chapter 12 Karnasya danveerta sanskrit

 

प्रश्‍न 7. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान की महिमा का वर्णन करें।

अथवा, ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान के महत्व का वर्णन करें। (2016A, 2018C)

उत्तर– कर्ण जब कवच और कुंडल इन्द्र को देने लगतेहैं तब शल्य उन्हें रोकते हैं। इस पर कर्ण दान की महिमा बतलाते हुए कहते हैं कि समय के परिवर्तन से शिक्षा नष्ट हो जाती है, बड़े-बड़े वृक्ष उखड़ जाते हैं, जलाशय सूख जाते हैं, परंतु दिया गया दान सदैव स्थिर रहता है, अर्थात दान कदापि नष्ट नहीं होता है।

 

प्रश्‍न 8. कर्णस्यणदानवीरता पाठ कहाँ से उद्धत है। इसके विषय में लिखें।

उत्तर- ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ भास-रचित कर्णभार नामक रूपक से उद्धृत है। इस रूपक का कथानक महाभारत से लिया गया है। महाभारत युद्ध में कुंतीपुत्र कर्ण कौरव पक्ष से युद्ध करता है। कर्ण के शरीर में स्थित जन्मजात कवच और कुंडल उसकी रक्षा करते हैं। इसलिए, इन्द्र छलपूर्वक कर्ण से कवचऔर कुंडल मांगकर पांडवों की सहायता करते हैं।

 

प्रश्‍न 9. कर्ण के प्रणाम करने पर इन्द्र ने उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद क्यों नहीं कहा?

उत्तर-इन्द्र जानते थे कि कर्ण को युद्ध में मरना अवश्य संभव है। कर्ण को यदि दीर्घायु होने का आशीर्वाद दे देते, तो कर्ण की मृत्यु युद्ध में संभव नहीं थी। वह दीर्घायु हो जाता। कुछ नहीं बोलने पर कर्ण उन्हें मूर्ख समझता। इसलिए इन्द्र ने उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद न देकर सूर्य, चंद्रमा, हिमालय और समुद्र की तरह यशस्वी होने काआशीर्वाद दिया।

 

प्रश्‍न 10. कर्ण ने कवच और कंडल देने के पूर्व इन्द्र से किन-किन चीजों को दानस्वरूपलेने के लिए आग्रह किया? (2018A)

उत्तर-इन्द्र कर्ण से बड़ी भिक्षा चाहते थे। कर्ण समझ नहीं सका कि इन्द्र भिक्षा के रूप में उनका कवच और कुंडल चाहते हैं। इसलिए कवच और कंडल देने से पूर्व कर्ण ने इन्द्र से अनुरोध किया कि वे सहस्र गाएँ, हजारों घोडें, हाथी, अपर्याप्त स्वर्ण मुद्राएँ और पृथ्वी (भूमि), अग्निष्टोम फल या उसका सिर ग्रहण करें।

 

प्रश्‍न 11. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर- ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दान ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है, क्योंकि केवल दान ही स्थिर रहता है। शिक्षा समय-परिवर्तन के साथ समाप्त हो जाती है। वृक्ष भी समय के साथ नष्ट हो जाता है। इतना ही नहीं, जलाशय भी सूखकर समाप्त हो जाता है। इसलिए कोई मोह किए बिना दान अवश्य करना चाहिए।

 

प्रश्‍न 12. कर्णस्य दानवीरता पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें। (2012C)

उत्तर-यह पाठ संस्कृत के प्रथम नाटककार भास द्वारा रचित कर्णभार नामक एकांकी रूपक से संकलित किया गया है। इसमें महाभारत के प्रसिद्ध पात्र कर्ण की दानवीरता दिखाई गयी है। इन्द्र कर्ण से छलपूर्वक उनके रक्षक कवच कुण्डल को मांग लेते हैं और कर्ण उन्हें दे देता है। कर्ण बिहार के अंगराज्य (मुंगेर तथा भागलपुर) का शासक था। इसमें संदेश है कि दान करते हुए मांगने वाले की पृष्ठभूमि जान लेनी चाहिए, अन्यथा परोपकार विनाशक भी हो जाता है।

 

प्रश्‍न 13. इन्द्र ने कर्ण से कौन-सी बड़ी भिक्षा माँगी और क्यों?

उत्तर-इन्द्र ने कर्ण से बड़ी भिक्षा के रूप में कवच और कुंडल माँगी। अर्जुन की सहायता करने के लिए इन्द्र ने कर्ण से छलपूर्वक कवच और कुंडल माँगे, क्योंकि जब तक कवच और कुंडल उसके शरीर पर विद्यमान रहता, तब तक उसकी मृत्यु नहीं हो सकती थी। चूँकि कर्ण कौरव पक्ष से युद्ध कर रहे थे, अतः पांडवों को युद्ध में जिताने के लिए कर्ण से इन्द्र ने कवच और कुंडल की याचना की।

 

प्रश्‍न 14. शास्त्रं मानवेभ्यः किं शिक्षयति? (2018A)

उत्तर-शास्त्र मनुष्य को कर्तव्य-अकर्तव्य का बोध कराता है। शास्त्र ज्ञान का शासक होता है। सुकर्म-दुष्कर्म, सत्य-असत्य आदि की जानकारी शास्त्र से ही मिलती है।

 

प्रश्‍न 15. कर्ण की दानवीरता का वर्णन अपने शब्दों में करें। (2011C,2014A,2015C)

उत्तर-कर्ण सूर्यपुत्र है । जन्म से ही उसे कवच और कुण्डल प्राप्त है। जब तक कर्ण के शरीर में कवच-कुण्डल है तब तक वह अजेय है। उसे कोई मार नहीं सकता है। कर्ण महाभारत युद्ध में कौरवों के पक्ष में युद्ध करता है। अर्जुन इन्द्रपुत्र हैं। इन्द्र अपने पुत्र हेतु छलपूर्वक कर्ण से कवच और कुण्डल माँगने जाते हैं। दानवीर कर्ण सूर्योपासना के समय याचक को निराश नहीं लौटाता है। इन्द्र इसका लाभ उठाकर दान में कवच और कुण्डल माँग लेते हैं। सब कुछ जानते हुए भी इन्द्र को कर्ण अपना कवच और कुंडल दे देता है।

 

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13. विश्वशांतिः (विश्व की शांति)

13. विश्वशांतिः (विश्व की शांति)

 

पाठ परिचय – आज विश्वभर में विभिन्न प्रकार के विवाद छिड़े हुए हैं जिनसे देशों में आन्तरिक और बाह्य अशान्ति फैली हुई है। सीमा, नदी-जल, धर्म, दल इत्यादि को लेकर स्वार्थ प्रेरित होकर असहिष्णु हो गये हैं। इससे अशांति के वातावरण बना हुआ है। इस समस्या को उठाकर इसके निवारण के लिए इस पाठ में वर्तमान स्थिति का निरूपण किया गया है।

 

(पाठेऽस्मिन् संसारे वर्तमानस्य अशान्तिवातावरणस्य चित्रणं तत्समाधानोपायश्च निरूपितौ । देशेषु आन्तरिकी वाह्या च अशान्तिः वर्तते । तामुपेक्ष्य न कश्चित् स्वजीवनं नेतुं समर्थः । सेयम् अशान्तिः सार्वभौमिकी वर्तते इति दुःखस्य विषयः। सर्वे जनाः तया अशान्त्या चिन्तिताः सन्ति । संसारे तन्निवारणाय प्रयासाः क्रियन्ते ।)

इस पाठ में वर्तमान संसार में अशांति का चित्रण और इसके समाधान को निरूपित किया गया है। देशों में आंतरिक और बाह्य अशांति है। हर कोई अपना जीवन जीने में असमर्थ है। पूरे विश्व में अशांति फैला हुआ है। यह दुख का विषय है। सभी लोग चिन्तित है। संसार में निवारण का प्रयास किया जा रहा है।

 

पाठ 13 विश्वशांतिः (विश्व की शांति)

 

वर्तमाने संसारे प्रायशः सर्वेषु देशेषु उपद्रवः अशान्तिर्वा दृश्यते । क्वचिदेव शान्तं वातावरणं वर्तते । क्वचित् देशस्य आन्तरिकी समस्यामाश्रित्य कलहो वर्तते, तेन शत्रुराज्यानि मोदमानानि कलहं वर्धयन्ति । क्वचित् अनेकेषु राज्येषु परस्परं शीतयुद्धं प्रचलति । वस्तुतः संसारः अशान्तिसागरस्य कूलमध्यासीनो दृश्यते ।

इस समय प्रायः संसार के सभी देशों में अशान्ति देखे जाते हैं। संयोग से ही कहीं शान्ति का वातावरण देखेने को मिलता है। किसी देश में आन्तरिक अव्यवस्था के कारण अशांति है तो कहीं शत्रु देश द्वारा अशांति फैलाया जा रहा है तो कहीं अनेक देशों में शीतयुद्ध चल रहा है। इस प्रकार सारा संसार ही अशांति के वातावरण में जी रहा है।

 

अशान्तिश्च मानवताविनाशाय कल्पते । अद्य विश्वविध्वंसकान्यस्त्राणि बहून्याविष्कृतानि सन्ति । तैरेव मानवतानाशस्य भयम् । अशान्तेः कारणं तस्याः निवारणोपायश्च सावधानतया चिन्तनीयौ । कारणे ज्ञाते निवारणस्य उपायोऽपि ज्ञायते इति नीतिः ।

अशांति मानवता के विनाश का कारण है। इस समय विनाशकारी अस्त्रों का निर्माण विशाल पैमाने पर हो रहा है, उससे ही मानवता के विनाश का भय बना हुआ है। अशांति के कारणों के निवारण के उपायों पर ध्यानपूर्वक विचार किया जाना चाहिए। अशांति के कारणों का पता लगाते हुए उनके समाधान के उपायों का भी पता करना चाहिए।

 

 

वस्तुतः द्वेषः असहिष्णुता च अशान्तेः कारणद्वयम् । एको देशः अपरस्य उत्कर्षं दृष्ट्वा द्वेष्टि, तस्य देशस्य उत्कर्षनाशाय निरन्तरं प्रयतते । द्वेषः एवं असहिष्णुतां जनयति । इमौ दोषौ परस्परं वैरमुत्पादयतः । स्वार्थश्च वैरं प्रवर्धयति । स्वार्थप्रेरितो जनः अहंभावेन परस्य धर्मं जाति सम्पत्तिं क्षेत्रं भाषां वा न सहते ।

वास्तव में, ईर्ष्या एवं असहनशीलता अशान्ति के मुख्य दो कारण है। एक देश दूसरे देश की उन्नति अथवा विकास देखकर जलभुन जाते हैं, और उस देश को हानि पहुँचाने का प्रयास करने लगते हैं। द्वेष ही असहनशीलता पैदा करता है। इन दोनों दोषों के कारण शत्रुता जन्म लेती हैं। स्वार्थ दुश्मनी बढ़ाती है। स्वार्थ से अंधा व्यक्ति अहंकारवश दुसरों के धार्मिक, सामाजिक और भाषाई एकता सहन नहीं कर पातें।

 

आत्मन एव सर्वमुत्कृष्टमिति मन्यते। राजनीतिज्ञाश्च अत्र विशेषेण प्रेरकाः । सामान्यो जनः न तथा विश्वसन्नपि बलेन प्रेरितो जायते । स्वार्थोपदेशः बलपूर्वकं निवारणीयः। परोपकारं प्रति यदि प्रवृत्तिः उत्पाद्यते तदा सर्वे स्वार्थं त्यजेयुः। अत्र महापुरुषाः विद्वांसः चिन्तकाश्च न विरलाः सन्ति ।

वे निजी विकास को ही उत्तम मानते हैं। इस निकृष्ट विचार के मुख्य प्रेरक राजनेता हैं। सामान्य लोग ही नहीं, विशिष्ट जन भी बलपूर्वक प्रेरित किए जाते हैं। इसलिए स्वार्थी भावना को बलपूर्वक दूर करना चाहिए। यदि परोपकार के प्रति रूचि जग जाती है तब स्वतः सारे स्वार्थ मिट जाते हैं। यहाँ महापुरूष, विद्वान तथा चिन्तकों का अभाव नहीं है।

 

 

तेषां कर्तव्यमिदं यत् जने-जने, समाजे-समाजे, राज्ये-राज्ये च परमार्थ वृत्तिं जनयेयुः । शुष्कः उपदेशश्च न पर्याप्तः, प्रत्युत तस्य कार्यान्वयनञ्च जीवनेऽनिवार्यम् । उक्तञ्च – ज्ञानं भारः क्रियां विना। देशानां मध्ये च विवादान् शमयितुमेव संयुक्तराष्ट्रसंघप्रभृतयः संस्थाः सन्ति । ताश्च काले-काले आशङ्कितमपि विश्वयुद्धं निवारयन्ति ।

उनका कर्तव्य है कि वे हर व्यक्ति, हर समाज तथा हर देश में परोपकार की भावना का प्रचार करें। थोथा उपदेश काफी नहीं है, बल्कि वैसा आचरण भी अपनाना जरूरी है। क्योंकि कहा गया है कि. क्रिया के बिना ज्ञान बोझ स्वरूप होता है। दो देशों के आपसी विवाद को खत्म करने के लिए संयुक्त राष्ट संघ आदि संस्थाएँ हैं। यहीं समय-समय पर संभावित विश्व युद्ध को दूर करती है।

 

भगवान बुद्धः पुराकाले एव वैरेण वैरस्य शमनम् असम्भवं प्रोक्तवान् । अवैरेण करुणया मैत्रीभावेन च वैरस्य शान्तिः भवतीति सर्वे मन्यन्ते ।। भारतीयाः नीतिकाराः सत्यमेव उद्घोषयन्ति –

प्राचीन काल में भगवान बुद्ध ने कहा था, दुश्मनी से दुश्मनी को खत्म करना संभव नहीं है। मित्रता एवं दया से शत्रुता भाव को शांत करना संभव है। ऐसा सबका मानना है। भारतीय नीतिज्ञों ने सच ही कहा है।

 

अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।

उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥

 

यह मेरा है, वह दुसरों का है- ऐसा नीच विचारवाले मानते हैं। उदारचित वाले अर्थात् महापुरूषों के लिए सारा संसार ही अपने परिवार जैसा है।

 

परपीडनम् आत्मनाशाय जायते, परोपकारश्च शान्तिकारणं भवति । अद्यापि परस्य देशस्य संकटकाले अन्ये देशाः सहायताराशि सामग्री च प्रेषयन्ति इति विश्वशान्तेः सूर्योदयो दृश्यते ।

दूसरों के कष्ट पहुँचाने से अपना ही नुकसान होता है और दूसरों के सहयोग से शांति मिलती है। आज भी किसी दूसरे देश के संकट में शहायता राशि भेजी जाती है। इससे विश्व शांति की आशा प्रकट होती है । 

Vishwashanti class 10 sanskrit

 

13. विश्वशांति Objective Questions

 

प्रश्‍न 1. ईर्ष्या और असहिष्णुता किसको उत्पन्न करते हैं ?

(A) शांति

(B) अशांति

(C) सुख समृद्धि

(D) प्रेम

 

उत्तर-(B) अशांति

 

प्रश्‍न 2. वैर से वैर का समन क्या है ?

(A) संभव

(B) असंभव

(C) नाम्भव

(D) मुमकिन

 

उत्तर-(B) असंभव

 

प्रश्‍न 3. दुःख का विषय क्या है ?

(A) भ्रांति

(B) शांति

(C) अशांति

(D) अहिंसा

 

उत्तर-(C) अशांति

 

प्रश्‍न 4. परपीडन किस लिए होता है ?

(A) पुण्य के लिए

(B) पाप के लिए

(C) नाश के लिए

(D) धर्म के लिए

 

उत्तर-(C) नाश के लिए

 

प्रश्‍न 5. एक देश दूसरे देश को क्यों देखकर जलता है ?

(A) अपकर्ष

(B) उत्कर्ष

(C) आकर्ष

(D) पराकर्ष

 

उत्तर-(B) उत्कर्ष

 

प्रश्‍न 6. इस समय संसार किस महासागर के कूलमध्य स्थित दिख रहा है ?                                  

(A) प्रशान्त महासागर

(B) हिन्द महासागर

(C) अशांति महासागर

(D) अटलांटिक महासागर

 

उत्तर-(C) अशांति महासागर

 

प्रश्‍न 7. विश्वशांति पाठ में किस वातावरण का चित्रण किया गया है ?                                       

(A) अशांति

(B) शांति

(C) देशभक्ति

(D) वैज्ञानिक

 

उत्तर-(A) अशांति

 

प्रश्‍न 8. अशांति मानवता का क्या कर रही है ?

(A) उन्नति

(B) विनाश

(C) ऊपर

(D) नीचे

 

उत्तर-(B) विनाश

 

विश्वशान्तिः Subjective Questions

लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर (20-30 शब्दों में) ____दो अंक स्तरीय

प्रश्‍न 1. “विश्वशान्तिः’ पाठ का मुख्य उद्देश्य क्या है ?

अथवा, “विश्वशान्तिः’ पाठ से हमें क्या शिक्षामिलती है? (2014A)

उत्तर— विश्वशान्ति शब्द का शाब्दिक अर्थ ‘विश्व की शान्ति’ है। शान्ति भारतीय दर्शन का मूल तत्व है। इस पाठ का उद्देश्य व्यक्ति, समाज और राष्ट्रों  को आपसी द्वेष, असंतोष आदि से दूर कर शान्ति, सहिष्णुवता आदि का पाठ पढाना है।

 

प्रश्‍न 2. राष्ट्र्संघ की स्थापना का उद्देश्यि स्पंष्ट करें (2020AІ)

उत्तर- राष्ट्र्संघ की स्था्पना का उद्देश्यर दो देशों के बीच संभावित विश्व युद्ध को रोकना है। यह समय-समय पर दो देशों के तनाव को रोकता है।

 

 

प्रश्‍न 3. विश्वाशांति का सूर्योदय कब होता है ?  (2020AІ)

उत्तर- जब शंकटकाल में फंसे एक देश दूसरे देश की मदद करते हैं तथा राहत साम्रगी भेजते हैं, तो विश्व शांति का सूर्योदय होता है।

 

प्रश्‍न 4. ‘विश्वशान्तिः’ पाठ के आधार पर उदार-हृदयपुरुष का लक्षण बतावें। (2016A)

उत्तर- ‘विश्वशान्तिः’ पाठ के अनुसार उदार-हृदय पुरुष का लक्षण है कि वह किसी को पराया नहीं समझता, जबकिउसके लिए सारी धरती ही अपनी है। उदार-हृदय वाले के लिए सारा संसार कुटुम्ब  के सामान है।

 

प्रश्‍न 5. विश्वशान्तिः पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें।

उत्तर—आज विश्वभर में विभिन्न प्रकार के विवाद छिड़े हुए हैं। देशों में आंतरिक और बाह्य अशांति फैली हुई है। सीमा, नदी-जल, धर्म, दल इत्यादि को लेकर लोग स्वार्थप्रेरित होकर असहिष्णु हो गये हैं। इससे अशांति का वातावरण बना हआ है। इस समस्या को उठाकर इसके निवारण के लिए पाठ में वर्तमान स्थिति का निरूपण किया गया है। 

Vishwashanti class 10 sanskrit

 

प्रश्‍न 6. विश्व में शांति कैसे स्थापित हो सकती है?

उत्तर-विश्व में शांति का आधार एकमात्र परोपकार है। परोपकार की भावना मानवीय गुण है। संकटकाल में सहयोग की भावना रखना ही लक्ष्य हो, तभी हम निर्वैर, सहिष्णुता और परोपकार से शांति स्थापित कर सकते हैं।

 

प्रश्‍न 7. वर्तमान में विश्व की स्थिति का वर्णन करें?

उत्तर—आज संसार के प्रायः सभी देशों में अशान्ति व्याप्त है। किसी देश में अपनी आन्तरिक समस्याओं के कारण कलह है तो कहीं बाहरी। एक देश के कलह से दूसरे देश खुश होते हैं। कहीं अनेक राज्यों में परस्पर शीत युद्ध चल रहा है। वस्तुतः इस समय संसार अशान्ति के सागर में डूबता-उतरता नजर आ रहा है। आज विश्व विनाशक शस्त्रों के ढेर पर बैठा है।

 

 

प्रश्‍न 8. अशांति के मूल कारण क्या हैं ?

अथवा, विश्व अशान्ति का क्या कारण है? तीन वाक्यों में उत्तर दें। (2011A, 2015A, 2017A)

उत्तर– वास्तव में अशांति के दो मूल कारण हैं- द्वेष और असहिष्णुता । एक देश दुसरे देश की उन्नति देख जलते हैं, और इससे असहिष्णुता पैदा होती है। ये दोनों दोष आपसी वैर और अशांति के मूल कारण हैं।

 

प्रश्‍न 9. संसार में अशांति कैसे नष्ट हो सकती है?

उत्तर-अशांति के मूल कारण हैं- द्वेषऔरअसहिष्णुता । स्वार्थ से ही अशांति बढती है।अशांति को वैर से नहीं रोका जा सकता। करुणा और मित्रता से ही वैर नष्ट कर संसार में शांति लाई जा सकती है।

 

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14. शास्त्रकाराः

14. शास्त्रकाराः (शास्त्र रचयिता)

 

पाठ परिचय- यह पाठ नवनिर्मित संवादात्मक है जिसमें प्राचीन भारतीय शास्त्रों तथा उनके प्रमुख रचयिताओं का परिचय दिया गया है। इससे भारतीय सांस्कृतिक निधि के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न होगी- यही इस पाठ का उद्देश्य है।

 

(भारते वर्षे शास्त्राणां महती परम्परा श्रूयते। शास्त्राणि प्रमाणभूतानि समस्तज्ञानस्य स्रोतःस्वरूपाणि सन्ति। अस्मिन् पाठे प्रमुखशास्त्राणां निर्देशपूर्वकं तत्प्र वर्तकानाञ्च निरूपणं विद्यते। मनोरञ्जनाय पाठेऽस्मिन् प्रश्नोत्तरशैली आसादिता वर्तते।)

भारतीय शास्त्रों की बहुत बड़ी परम्परा सुनी जाती है। शास्त्र प्रमाण स्वरूप समस्त ज्ञान का स्त्रोत स्वरूप है। इस पाठ में प्रमुख शास्त्रों का निर्देशपूर्वक उसके प्रवर्त्तकों का निरूपण है। इस पाठ में मनोरंजन के लिए प्रश्नोत्तर शैली अपनायी गयी है।

 

14. शास्त्रकाराः (शास्त्र रचयिता)

 

(शिक्षकः कक्षायां प्रविशति, छात्राः सादरमुत्थाय तस्याभिवादनं कुर्वन्ति ।)

(शिक्षक वर्ग में प्रवेश करते हैं छात्र लोग, आदरपूर्वक उठकर उनका अभिवादन करते हैं।)

 

शिक्षकः- उपविशन्तु सर्वे। अद्य युष्माकं परिचयः संस्कृतशास्त्रैः भविष्यति।

शिक्षकः- सभी लोग बैठ जाएँ। आज आपलोगों का परिचय संस्कृत शास्त्रों से होगा।

 

 

युवराजः- गुरुदेव । शास्त्रं किं भवति ?

युवराजः- गुरुदेव ! शास्त्र क्या होता है।

 

शिक्षकः- शास्त्रं नाम ज्ञानस्य शासकमस्ति। मानवानां कर्त्तव्याकर्त्तव्यविषयान् तत् शिक्षयति। शास्त्रमेव अधुना अध्ययनविषयः (Subject) कथ्यते, पाश्चात्यदेशेषु अनुशासनम् (discipline) अपि अभिधीयते। तथापि शास्त्रस्य लक्षणं धर्मशास्त्रेषु इत्थं वर्तते –

शिक्षकः- शास्त्र नाम का चीज ज्ञान का शासक है। मनुष्य के कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य विषयों की वह सीख देता है। शास्त्र ही आजकल अध्ययन विषय कहा जाता है। पश्चिमी देशों में अनुशासन भी कहा जाता है । इसके बाद भी शास्त्र का लक्षण धर्मशास्त्रों में है-

 

प्रवृत्तिर्वा निवृत्तिर्वा नित्येन कृतकेन वा।

पुंसां येनोपदिश्येत तच्छास्त्रमभिधीयते।

 

 

मनुष्यों को जिससे सांसारिक विषयों में अनुरक्ति अथवा विरक्ति अथवा मानव रचित विषयों का उचित ज्ञान मिलता है, उसे धर्म शास्त्र कहा जाता है। तात्पर्य यह कि जिस शास्त्र से किस आचरण को अपनाया जाए तथा किस आचरण को त्यागा जाए का ज्ञान प्राप्त हो, उसे धर्मशास्त्र कहते हैं।

 

Shastrakara class 10 Sanskrit

 

अभिनवः- अर्थात् शास्त्रं मानवेभ्यः कर्त्तव्यम् अकर्तव्यञ्च बोधयति। शास्त्रं नित्यं भवतु वेदरूपम्, अथवा कृतकं भवतु ऋष्यादिप्रणीतम्।

अभिनवः- अर्थात् शास्त्र मानवों के कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य का बोध कराता है। वेदरूप शास्त्र नित्य होता है अथवा ऋषियों द्वारा रचित शास्त्र कृत्रिम होता है।

 

शिक्षकः- सम्यक् जानासि वत्स ! कृतकं शास्त्रं ऋषयः अन्ये विद्वांसः वा रचितवन्तः। सर्वप्रथम षट् वेदाङ्गानि शास्त्राणि सन्ति। तानि – शिक्षा, कल्पः, व्याकरणम्, निरुक्तम्, छन्दः ज्योतिषं चेति।

शिक्षकः- सही जाने वत्स ! कृत्रिम शास्त्र ऋषियों या अन्य विद्वानों से रचा गया है। सर्वप्रथम वेद के अंग स्वरूप छः शास्त्र हैं- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छन्द और ज्योतिष।

 

इमरानः- गुरुदेव ! एतेषां विषयाणां के-के प्रणेतारः ?

इमरानः- गुरुदेव। इन विषयों के कौन- कौन रचयिता हैं।

 

शिक्षकः- शृणुत यूयं सर्वे सावहितम्। शिक्षा उच्चारणप्रक्रियां बोधयति। पाणिनीयशिक्षा तस्याः प्रसिद्धो ग्रन्थः। कल्पः कर्मकाण्डग्रन्थः सूत्रात्मकः। बौधायन-भारद्वाज-गौतम वसिष्ठादयः ऋषयः अस्य शास्त्रस्य रचयितारः। व्याकरणं तु पाणिनिकृतं प्रसिद्धम्।

शिक्षकः- तुमलोग सावधान होकर सुनो। शिक्षा उच्चारण क्रिया का ज्ञान कराता है। पाणिनी शिक्षा उसका प्रसिद्ध ग्रन्थ है। कल्प सूत्रात्मक कर्मकाण्ड ग्रन्थ है। बौद्धायन- भारद्वाज-गौतम-वसिष्ठ आदि ऋषि इस शास्त्र के रचनाकार हैं। व्याकरण तो पाणिनीकृत प्रसिद्ध है।

 

 

निरुक्तस्य कार्य वेदार्थबोधः। तस्य रचयिता यास्कः। छन्दः पिङ्गलरचिते सूत्रग्रन्थे प्रारब्धम्। ज्योतिषं लगधरचितेन वेदाङ्गज्योतिषग्रन्थेन प्रावर्तत।

निरुक्त का कार्य वेद के अर्थ को बोध कराना है। उसके रचयिता यास्क हैं। छन्दशास्त्र पिङ्गल रचित ग्रन्थ है। ज्योतिषशास्त्र को लगध के द्वारा रचित वेदांग ज्योतिष ग्रन्थ से लिखा गया।

 

अब्राहमः- किमेतावन्तः एव शास्त्रकाराः सन्ति ?

अब्राहमः- क्या ये सब ही शास्त्रकार लोग हैं।

 

शिक्षकः- नहि नहि। एते प्रवर्तकाः एव। वस्तुतः महती परम्परा एतेषां शास्त्राणां परवर्तिभिः सञ्चालिता। किञ्च, दर्शनशास्त्राणि षट् देशेऽस्मिन् उपक्रान्तानि।

शिक्षकः- नहीं नहीं ! ये सभी संस्थापक ही हैं। वस्तुतः बहुत बड़ी परम्परा इन शास्त्रों को पूर्व के लोगों के द्वारा चालायी गयी है। क्योंकि इस देश में छः दर्शनशास्त्र को चलाया गया।

 

श्रुतिः- आचार्यवर ! दर्शनानां के-के प्रवर्तकाः शास्त्रकाराः ?

श्रुतिः- आचार्य श्रेष्ठ ! दर्शनशास्त्र को चलाने वाले कौन-कौन शास्त्रकार हैं।

 

शिक्षकः- सांख्यदर्शनस्य प्रवर्तकः कपिलः। योगदर्शनस्य पतञ्जलिः। एवं गौतमेन न्यायदर्शनं रचितं कणादेन च वैशेषिकदर्शनम्। जैमिनिना मीमांसादर्शनम्, बादरायणेन च वेदान्तदर्शनं प्रणीतम्। सर्वेषां शताधिकाः व्याख्यातारः स्वतन्त्रग्रन्थकाराश्च वर्तन्ते।

शिक्षकः- सांख्य दर्शन को चलाने वाले कपिल हैं। योगदर्शन के पतंजलि हैं। उसी प्रकार गौतम के द्वारा न्याय दर्शन को रचा गया, कनाद के द्वारा वैशेषिक दर्शन की रचना हुई। जैमिनि के द्वारा मीमांशा दर्शन की रचना हुई और बादरायण के द्वारा वेदांत दर्शन लिखा गया। सबों में सौ से अधिक व्याख्याता और स्वतंत्र ग्रन्थाकार हैं।

 

गार्गी- गुरुदेव ! भवान् वैज्ञानिकानि शास्त्राणि कथं न वदति ?

गार्गी- गुरुदेव ! वैज्ञानिक शास्त्र के बारे में क्यों नहीं बोलते हैं ?

 

 

शिक्षकः- उक्तं कथयसि । प्राचीनभारते विज्ञानस्य विभिन्नशाखानां शास्त्राणि प्रावर्तन्त। आयुर्वेदशास्त्रे चकरसहिता, सुश्रुतसंहिता चेति शास्त्रकारनाम्नैव प्रसिद्ध स्तः। तत्रैव रसायनविज्ञानम्, भौतिकविज्ञानञ्च अन्तरर्भू स्तः। ज्योतिषशास्त्रेऽपि खगोलविज्ञानं गणितम् इत्यादीनि शास्त्राणि सन्ति। आर्यभटस्य ग्रन्थः आर्यभटीयनामा प्रसिद्धः ।

शिक्षकः- कहा जाता है । प्राचीन भारत में विज्ञान के विभिन्न शाखाओं के शास्त्रों को रचा गया। आयुर्वेद शास्त्र में चरक संहिता और सुश्रुतसंहिता शास्त्रकार के नाम से दोनों प्रसिद्ध हैं। उसमें ही रसायन विज्ञान और भौतिक विज्ञान समाहित है। ज्योतिष शास्त्र में भी खगोल विज्ञान गणित इत्यादि शास्त्र हैं। आर्यभट का ग्रन्थ आर्यभटीयनामा प्रसिद्ध हैं।

 

एवं वराहमिहिरस्य बृहत्संहिता विशालो ग्रन्थः यत्र नाना विषयाः समन्विताः। वास्तुशास्त्रमपि अत्र व्यापक शास्त्रमासीत्। कृषिविज्ञानं च पराशरेण रचितम्। वस्तुतो नास्ति शास्त्रकाराणाम् अल्पा संख्या।

वास्तुशास्त्र भी यहाँ बहुत बड़ा शास्त्र था। और कृषि विज्ञान को पराशर के द्वारा रचना की गयी। इसी प्रकार वराहमिहिर का वृहतसंहिता विशाल ग्रन्थ है जिसमें अनेक विषय समन्वित हैं।

 

वर्गनायकः- गुरुदेव ! अद्य बहुज्ञातम्। प्राचीनस्य भारतस्य गौरवं सर्वथा समृद्धम्।

वर्गनायकः- गुरुदेव! आज बहुत जानकारी हुई। प्राचीन भारत का गौरव हमेशा समृद्ध रहा है।

 

(शिक्षकः वर्गात् निष्क्रामति। छात्राः अनुगच्छन्ति)

(शिक्षक वर्ग से निकलते हैं। उनके पीछे-पीछे छात्र भी निकलते हैं।) 

Chapter 14 Shastrakara class 10 sanskrit

 

 

शास्त्रकाराः Objective Questions

 

प्रश्‍न 1. न्यायदर्शन के प्रवर्तक कौन हैं?

(A) कपिल

(B) गौतम

(C) कणाद

(D) पतंजली

 

उत्तर-(B) गौतम

 

प्रश्‍न 2. आर्य भट्टीयम किसकी रचना है?

(A) पराशर की

(B) चरक की

(C) सुश्रुत की

(D) आर्यभट्ट की

 

उत्तर-(D) आर्यभट्ट की

 

प्रश्‍न 3. शास्त्र मानवों को किसका बोध कराता है?

(A) समझ

(B) कर्तव्याकर्तव्य

(C) मन

(D) चिंता

 

उत्तर-(B) कर्तव्याकर्तव्य

 

प्रश्‍न 4. वेदरूपी शास्त्र क्या होता है?

(A) अनित्य

(B) नित्य

(C) कृत्य

(D) भृत्य

 

उत्तर-(B) नित्य

 

प्रश्‍न 5. वराहमिहिर द्वारा रचित ग्रंथ कौन-सा है?

(A) आचार संहिता

(B) विचार संहिता

(C) वृहतसंहिता

(D) मंत्रसंहिता

 

उत्तर-(C) वृहतसंहिता

 

प्रश्‍न 6. ऋषयादि प्रणीत को क्या कहते हैं?

(A) भृतक

(B) मृतक

(C) कृतक

(D) हृतक

 

उत्तर-(C) कृतक

 

प्रश्‍न 7. ऋषि गौतम ने किस दर्शन की रचना की?

(A) सांख्य दर्शन

(B) न्याय दर्शन

(C) योग दर्शन

(D) चन्द्र दर्शन

 

उत्तर-(B) न्याय दर्शन

 

प्रश्‍न 8. निरुक्त का क्या कार्य है?

(A) यथार्थ बोध

(B) वेदार्थ बोध

(C) अर्थ बोध

(D) तत्त्व बोध

 

उत्तर-(B) वेदार्थ बोध

 

प्रश्‍न 9. शास्त्र किसके लिए कर्त्तव्यों और अकर्तव्य का विधान करते हैं?

(A) दानवों के लिए

(B) मानवों के लिए

(C) छात्रों के लिए

(D) पशुओं के लिए

 

उत्तर-(B) मानवों के लिए

 

प्रश्‍न 10. मीमांसा दर्शन के रचनाकार कौन हैं?

(A) जैमिनी

(B) पाणिनी

(C) पराशर

(D) सुश्रुत

 

उत्तर-(A) जैमिनी

 

प्रश्‍न 11. महर्षि यास्क द्वारा रचित ग्रंथ का क्या नाम है?

(A) निरूक्तम्

(B) शुल्ब सूत्र

(C) न्यायदर्शन

(D) चरक संहिता

 

उत्तर-(A) निरूक्तम्

 

प्रश्‍न 12. भारतवर्ष में किसकी महती परम्परा सुनी जाती है?

(A) पुस्तक

(B) ग्रंथ

(C) शास्त्र

(D) कोई नहीं

 

उत्तर-(C) शास्त्र

 

प्रश्‍न 13. वर्ग में कौन प्रवेश करता है?

(A) शिक्षक

(B) छात्र

(C) प्राचार्य

(D) लिपिक

 

उत्तर-(A) शिक्षक

 

प्रश्‍न 14. किसके छः अंग हैं?

(A) रामायण

(B) महाभारत

(C) पुराण

(D) वेद

 

उत्तर-(D) वेद

 

प्रश्‍न 15. छात्र किसका अभिवादन करते हैं?

(A) शिक्षक

(B) बालक

(C) राजा

(D) छात्र

 

उत्तर-(A) शिक्षक

 

प्रश्‍न 16. किसका व्याकरण प्रसिद्ध है?

(A) व्यास

(B) पाणिनी

(C) चाणक्य

(D) आर्यभट्ट

 

उत्तर-(B) पाणिनी

 

प्रश्‍न 17. वेदांग कितने हैं?

(A) तीन

(B) पाँच

(C) छः

(D) चार

 

उत्तर-(C) छः

 

प्रश्‍न 18. ज्योतिष के रचयिता कौन हैं?

(A) व्यास

(B) पाणिनी

(C) लगधर

(D) यास्क

 

उत्तर-(C) लगधर

 

प्रश्‍न 19. कर्मकांड के रचनाकार कौन हैं?

(A) व्यास

(B) गौतम

(C) चाणक्य

(D) यास्क

 

उत्तर-(B) गौतम

 

प्रश्‍न 20. छंद के रचयिता कौन हैं?

(A) व्यास

(B) पाणिनी

(C) पिंगल

(D) यास्क

 

उत्तर- (C) पिंगल

 

14.शास्त्र कारा: (शास्त्र रचयिता) Subjective Questions

लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर (20-30 शब्दों में) ____दो अंक स्तरीय

प्रश्‍न 1. शास्त्रमानवेभ्यः किं शिक्षयति?  (2018A)

उत्तर- शास्त्र मनुष्य को कर्तव्य-अकर्तव्य का बोध कराता है। शास्त्र ज्ञान का शासक होता है। सुकर्म-दुष्कर्म, सत्य-असत्य आदि की जानकारी शास्त्र से ही मिलती है।

 

 

प्रश्‍न 2. षट् वेदांगों के नाम लिखें। (2020AІІ)

उत्तर- षट् वेदांग हैं- शिक्षा, कल्प , व्याकरण, निरूक्तम, छन्द और ज्योतिष ।

 

प्रश्‍न 3. भारतीय दर्शनशास्त्र और उनके प्रवर्त्तकों की चर्चा करें।  (2020AІ)

उत्तर- भारतीय दर्शनशास्त्र छः हैं । सांख्य-दर्शन के प्रवर्तक कपिल, योग-दर्शन के प्रवर्तक पतञ्जलि, न्याय-दर्शन के प्रवर्तक गौतम, वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक कणाद, मीमांसा-दर्शन के प्रवर्तक जैमिनी तथा वेदांत-दर्शन के प्रवर्तक बादरायण ऋषि हैं।

 

प्रश्‍न 4. ज्योतिषशास्त्र के अन्तर्गत कौन-कौन शाखा तथा उनके प्रमुख ग्रन्थ कौन से हैं? (2018A)

उत्तर-ज्योतिषशास्त्र के अन्तर्गत खगोलविज्ञान, गणित आदि शास्त्र हैं। आर्यभटीयम, वृहत्संहिता आदि उनके प्रमुख ग्रन्थ हैं।

 

प्रश्‍न 5.कल्प ग्रन्थों के प्रमुख रचनाकारों का नामोल्लेख करें।  (2018A)

उत्तर- कल्पग्रन्थों के प्रमख रचनाकार बौधायन, भारद्वाज, गौतम, वशिष्ठ आदि हैं।

 

प्रश्‍न 6. शास्त्र मनुष्यों को किन-किन चीजों का बोध कराता है? (2013A,2014A)

उत्तर-शास्त्र मनुष्यों को कर्तव्य और अकर्तव्य का बोध कराता है। यह सत्य-असत्य और सही काम तथा गलत कामों के बारे में जानकारी देता है।

 

प्रश्‍न 7.वेदांग कितने हैं? सभी का नाम लिखें। (2013A, 2015C)

अथवा, वेद कितने हैं? सभी के नाम लिखें। (2014C)

अथवा, वेदांगों के नाम लिखें। (2018A)

उत्तर- वेदांग छह हैं- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष ।

 

प्रश्‍न 8. शास्वकाराः पाठ में किस विषय पर चर्चा की गई है?  (2013A)

उत्तर-शास्त्रकारा: पाठ में शास्त्रों के माध्यम से सदगुणों को ग्रहण करने की प्रेरणा है । इससे हमें अच्छे संस्कार की सीख मिलती है। यश प्राप्त करने की शिक्षा भी मिलती है।

 

प्रश्‍न 9. शास्त्रकाराः’ पाठ के आधार पर संस्कृत की विशेषता बताएँ। (2016A)

उत्तर- ‘शास्त्रकाराः’ पाठ के अनुसार भारतीय ज्ञान-विज्ञान संस्कृत शास्त्रों में वर्णित है। संस्कृत में ही वेद, वेदांग, उपनिषद् तथा दर्शनशास्त्र रचित हैं। इस प्रकार संस्कृत लोगों को कर्तव्य-अकर्तव्य, संस्कार, अनुशासन आदि की शिक्षा देता है ।

 

प्रश्‍न 10. ‘शास्वकारा:’ पाठ के आधार पर शास्त्र की परिभाषा अपने शब्दों में लिखें।  (2017A)

उत्तर-सांसारिक विषयों से आसक्ति या विरक्ति, स्थायी, अस्थायी या कृत्रिम उपदेश जो लोगों को देता है उसे शास्त्र कहतेहैं । यह मानवों के कर्तव्य और अकर्तव्य का बोध कराता है । यह ज्ञान का शासक है ।

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